मुनि प्रसन्न सागर के सान्निध्य में मनाया भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण महोत्सव
Udaipur. सर्वऋतु विलास स्थित अंतर्मना सभागार में भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण महोत्सव पर 24 तीर्थंकरों की एक साथ पूजन-अभिषेक सहित आराधना, 24 जोड़ों से इन्द्र-इन्द्राणी के वेश में की गई। भगवान पार्श्वनाथ को 23 किलो का लड्डू निर्वाण के रूप में चढा़या गया। आयोजन अंतर्मना मुनि प्रसन्न सागर के सान्निध्य में हुआ।
राजेश भोगीलाल शाह परिवार ने इसका लाभ प्राप्त किया। विशेष पूजा के भव्य कार्यक्रम में हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्घालुओं ने भाग लिया। विशेष प्रवचन में मुनि श्री ने कहा भगवान पार्श्वंनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हुए हैं, जिन्होंने सम्मेदशिखर पर जाकर मोक्ष पथ को प्राप्त किया। भगवान की वाणी में कहा गया है कि जो भीतर जाता है, वह भी-तर जाता है। तुमने कभी ख्याल किया, जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां हमेशा ध्यान मग्न मिलती है, क्यों? तीर्थंकर भी खुद के भीतर चले गए, खुद के ध्यान में खोकर ध्यानमग्न हो गये और फिर जो असली था, सत्य था, वह पा गए। ध्यान का मार्ग आंख बंद कर लेने का मार्ग है, खुली आंखों से दुनिया का सत्य दिखता है, परन्तु जीवन का सत्य देखना है तो बाहर की आंखों का बंद होना जरूरी है, ध्यान मग्न होना जरूरी है, यही संदेश जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं से मिलता है।
हिन्दुस्तान में जितने भी जैन तीर्थ है, तीर्थंकरों की निर्वाण भूमियां है, वे सभी ऊँचाई लिये पहाड़ों पर है। सभी तीर्थंकरों ने ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर बैठकर तप किया और मोक्ष पाया। एक बडे़ पत्थर को पहाड़ पर ले जाना कितना कठिन है और पुरूषार्थ भरा कार्य है। उसी पत्थर को पहाड़ से नीचे गिराने के लिए एक धक्का मारो, वही काफी है। इसी प्रकार मन को भी फिसलने, गिरने और पड़ने में वक्त नहीं लगता है।
प्रचार-प्रसार मंत्री महावीर प्रसाद भाणावत ने बताया कि मुनिश्री ने आज रजत वर्षायोग स्वर्णिम यात्रा उदयपुर से पारसनाथ के बारे में बताया और कहा कि यह यात्रा अविस्मरणीय, ऐतिहासिक और अनूठी होगी। आपको सिर्फ बाराती बनकर जाना है। आगे की सारी व्यवस्था पदमप्रभ: गुरु भक्त परिवार के सदस्यों की होगी।