जलवायु परिवर्तन, टिकाउ विकास तथा आपदा प्रबंधन पर कार्यशाला प्रारम्भ
Udaipur. प्रकृति व पर्यावरण से अंधाधुंध छेड़छाड़ ने आपदाओं को बढ़ाया है। जलवायु परिवर्तन की समस्या भी विकास की लालचपूर्ण व अनियंत्रित दौड़ से पैदा हुई है। ऐसे में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय व मानवीय आयामों पर आधारित समग्र व समावेशी प्रगति के लिए समानता व सहभागितापूर्ण विकास की चेतना जागृत करनी होगी एवं उसी अनुरूप विकास योजनाएं बनानी होगी।
ये तथ्य मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (नाईटर), चण्डीगढ़ की और से विद्याभवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय में आयोजित पांच दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन उभरकर आए। जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल विकास व आपदा प्रबंधन विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम में राजस्थान, दिल्ली,, हरियाणा व पंजाब से प्रतिभागी भाग ले रहे है। उद्घाटन करते हुए विद्याभवन सोसायटी के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने कहा कि वर्तमान विकास की प्रक्रिया ने प्रकृति व पर्यावरण को आत्महत्या (इकोसाइड) की स्थिति में पहुंचा दिया है। ऐसे में गांधी दर्शन पर आधारित सम्यक सोच व कार्यों से ही प्रकृति व मानव बच सकेंगे।
राजनीतिक चिंतक प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने विकास को परिभाषित करते हुए कहा कि विकल्पों का विस्तार ही विकास प्रक्रिया के हर स्तर पर नागरिकों की सहभागिता जरूरी है। ग्रामीण विकास विभाग, नाइटर चण्डीगढ़ के प्रो. यू.एन.राय ने कहा कि जिस तरह से जलवायु परिवत्रन हो रहा है, भारत के योजनाकारो व वैज्ञानिकों द्वारा परिभाषित पन्द्रह एग्रोक्लाइमेट जोन का नवीन परिस्थितियों के अनुरूप पुर्ननिर्धारण करना जरूरी है। संस्था के प्राचार्य अनिल मेहता ने बताया कि पांच दिनों में प्रतिभागी जल संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण तथा बाढ़ व सूखा सहित अन्य आपदाओं के प्रबंधन एवं समग्र विकास पर विचार विमर्ष करेंगे।