Udaipur. राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने कहा कि हिंदी के निर्माण में राजस्थानी भाषा और समाज का बहुत योगदान रहा है। हिंदी का आदिकाल व मध्यकाल राजस्थानी भाषा का साहित्य है तथा राजस्थानी भाषा जिसे हम कहते है उसी में सृजित है।
हमारी राष्ट्रीय लिपि देवनागरी है जो राजस्थानी लिपि मुडिया का आधुनिक स्वरुप है। वे डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा हिंदी दिवस पर आयोजित परिसंवाद को संबोधित कर रहे थे। डॉ. बारहठ ने कहा कि हिंदी को देश में प्रतिष्ठापित करने वाले संस्थान, पत्र-पत्रिकाएं एवं फिल्मों के निर्माण में राजस्थानी समाज अग्रणी रहा है। हिंदी को राष्ट्रीय संपर्क भाषा बनाने में राजस्थानियों का एतिहासिक योगदान भुलाया नहीं जा सकता।
मोट्यार परिषद् राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष शिवदान सिंह जोलावास ने कहा कि राष्ट्र भाषा हिंदी के विकास में क्षेत्रीय बोलियों का त्याग रहा है। हिंदी को राजस्थानी भाषा ने सबसे बड़ा समर्थन दिया है। हिंदी विश्व में बोली जानेवाली चुनिंदा भाषाओं में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। ऐसे में अपनी मातृ भाषा के ऋण को चुकाने के लिए प्रादेशिक बोलियों को भी संरक्षित रखना होगा।
युवा नाट्यकर्मी शिवराज सोनवाल ने कहा कि आधुनिक शिक्षण व्यवस्था में हिंदी का लोप होना निराशाजनक है। हिंदी मात्र एक भाषा नहीं वरन संस्कृति है। हिंदी का इतिहास पुराना है तथा लोकोक्तियों में बसा हुआ है।भारत के जन मानस को अंग्रेजी नहीं वरन हिंदी बोलने पर गर्व करने की जरुरत है। बच्चो में हिंदी के प्रति लगाव पैदा करने की जरुरत है। चांदपोल नागरिक समिति के अध्यक्ष तेजशंकर पालीवाल ने भी विचार व्यीक्तल किए। संचालन ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने किया।