शिक्षा उपनिदेशक ने दी सिद्धांतत: सहमति
आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह
Udaipur. शिक्षा उपनिदेशक भरत मेहता ने कहा कि विद्यालयों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इनमें नैतिक संस्कारों की कमी होती जा रही है। विद्यालयों में संतों के सान्निध्य में नैतिक शिक्षा और संस्कार मिले, विभाग इसके लिए तैयार है।
वे आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह के तहत श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा एवं सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के जैनोलोजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कर्मवाद का सिद्धांत और हमारा भविष्य विषयक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज के बच्चों का मुख्य उद्देश्य परिणाम रह गया है लेकिन बच्चों को नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। यह शिक्षा विभाग के लिए गौरव की बात है कि संतों के सान्निध्य में बच्चों को नैतिक शिक्षा मिले। विद्यालयों में नैतिक शिक्षा की कार्यशालाओं का आयोजन साधु-संतों और सभा के सहयोग से किया जाएगा।
इससे पहले शासन श्री मुनि रवीन्द्र कुमार ने कहा कि जैन दर्शन वीतरागता का दर्शन है। आत्मवादी दर्शन है और कर्मों का दर्शन है। कर्म तो क्रिया की प्रतिक्रिया है। शुभ से भी कर्म बंधते हैं और अशुभ से भी। वीतराग के भी कर्म बंधते हैं। मुक्त आत्मा को परमात्मा कहते हैं। सुख दुख की अनुभूति कर्मों के आधार पर होती है। मुख्य रूप से चार कर्म होते हैं। इनमें दुख का मूल स्रोत मोह कर्म है। उन्होंने कहा कि पुरुषार्थ से कर्मों को बदला जा सकता है। नेपोलियन अपनी संकल्प शक्ति के बल पर फ्रांस का राजा बना। आचार्य तुलसी ने जीवन जीने की कला सिखाई। अपने व्यवहार से कर्मों का अल्पीकरण करें।
मुनि पृथ्वीराज ने कहा कि धर्म के रास्ते पर चलने से स्वत: शुभ कार्य होते हैं। मेघकुमार के जीव ने हाथी के भव में खरगोश के प्रति करुणा रखते हुए कष्ट सहन कर शुभ कर्म का संचय किया जिससे वह राजकुमार बना। व्यक्ति अपना भविष्य स्वयं अपने सकारात्मक भावों से शुभ बनाता है और अशुभ भाव अशुभ कर्मों से दुखमय भविष्य बनाता है। कुछ विचारक ईश्वर कृतित्व का प्रतिपादन करते हैं। जैन सिद्धांत कर्मवाद को मानता है। इससे ईश्वर कृतत्व का स्थान नहीं है। मुनि श्री दिनकर एवं मुनि शांतिप्रियजी ने भी विचार व्यक्त किए।
विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी खेलशंकर व्यास ने कहा कि बच्चों को समाज और संतों के सान्निध्य व सहयोग से नैतिक शिक्षा मिलेगी जो निश्चय ही उनके भविष्य व जीवन में हमेशा काम आएगी।
सम्माननीय अतिथि के रूप में अहमदाबाद राजस्थान हॉस्पिटल के ट्रस्टी एवं समाजसेवी मांगीलाल विनायकिया ने कहा कि आत्मा का पुनर्जन्म कर्म सिद्धांत पर आधारित है। राम ने बाली का वध किया। इस कर्म बंध का ऋण कृष्ण जन्म में बहेलिया द्वारा श्रीकृष्ण के रूप में चुकाया।
मुख्य वक्ता एन. एल. कच्छारा ने कहा कि मन, वचन, काया की प्रवृत्ति को योग कहा जाता है। भाग्य निर्धारित करने वाले पांच कारक आत्मा का स्वभाव, परिस्थितियां, काल, कर्म एवं पुरुषार्थ हैं। पांचों का समूह भाग्य है। भगवान महावीर ने पुरुषार्थ पर बहुत जोर दिया। उन्होंने खुद ने पुरुषार्थ के माध्यम से अपना कल्याण किया। आचार्य तुलसी ने भी कहा कि हम कर्मों का विस्तार भले ही न करें लेकिन कम से कम पापकर्म तो नहीं करें।
विषय वक्ता जैनोलोजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन ने कहा कि कर्म एक पुद्गल है जो सुख दुख के रूप में आत्मा के साथ जुड़ता है। व्यक्ति का कर्म संयमित होगा तो समाज जीवन भी शुद्ध होगा। अनैतिक कर्मों का फल समाज जीवन में प्रतिबिम्बित होता है। जो व्यवहार हम अपने प्रति नहीं चाहते, वैसा व्यवहार दूसरों के प्रति भी नहीं करें।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सभा अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह के तहत वर्ष भर विविध आयोजन होंगे। मंगलाचरण शशि चव्हाण, मीनल इंटोदिया, ममता सोनी, किरण चपलोत, दीपा इंटोदिया ने प्रस्तुत किया। संचालन उपाध्यक्ष छगनलाल बोहरा ने किया। आभार सुबोध दुग्गड़ ने जताया।