Udaipur. सर्वऋतु विलास स्थित अंतर्मना सभागार में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रसन्न सागर ने कहा कि सम्पूर्ण ब्रह्म द्रव्यों में रमण रूप या ममत्वरूप या आसक्ति रूप संयोग संग को त्याग करके शुद्घ निश्चय चिन्मय स्वरूप अनन्त सुख के धाम स्वरूप ब्रह्मरस में लीन होना ब्रह्मचर्य धर्म है।
अपनी ब्रह्म स्वरूप आत्मा में रमण करना या चर्या करना ही ब्रह्मचर्य धर्म है अथवा उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का अर्थ है। आत्मा के अतिरिक्त पर पदार्थों का तीन योगों से (मन, वचन, काया) त्याग करके या ममत्व रूप परिणामों का भी परिहार करके अपनी आत्मा में ही रमण करना, अपने स्वरूप में या स्वभाव में लीन हो जाना। भगवान महावीर ने कहा कमल कीचड़ में खिलता है, लेकिन कीचड़ में जीने व मरने के लिए नहीं, कीचड़ के ऊपर उठकर आकाश में खिलने के लिये। काम से पैदा होना आदमी की मजबूरी है।
मुनि ने युवा पीढी़ को इंगित करते हुए कहा कि जीवन में सुखी रहने के लिये सोच समझकर कार्य करें। भावुकता में लिये गये निर्णय कभी-कभी जीवन को नर्क बना देते है। अपने चरित्र को हमेशा उज्जवल बनाकर उसे सम्भाल कर रखो ताकि उस पर कोई दाग नहीं लगे। अपने माता-पिता का ध्यान रखते हुए कुल और वंश को कलंक लगे, ऐसा कार्य कभी मत करना। आज प्रेम विवाह अधिक होते हैं और असफल भी। प्रेम करना बुरा नहीं है, लेकिन प्रेम में अन्धे होकर वासना में डूब जाना गलत है। वर्तमान में मोबाईल संस्कृति पनप गई है, युवा लडके-लडकियां एक-दूसरे को मोबाइल पर अश्लील चित्र और संवाद भेजते है। यह सब आधुनिक सुविधाओं का दुरूपयोग करते हुए उनके माध्यम से ऐसी चीजें परोसी जाती है, जो कभी भी सार्वजनिक होने पर आपके जीवन को बर्बाद कर देगी। इसलिए जीवन को सदाचार और संस्कारों से परिपूर्ण करते हुए अपने आपको स्व’छ और बेदाग बनाओ तथा वैवाहिक जीवन में भी एक-दूसरे के प्रति संतुष्टि का भाव रखते हुए अपने जीवन को सफल करो।
संघस्थ मुनि पीयूष सागर ने कहा कि व्यक्ति जब इस संसार में आता है तो जन्म लेता है, परन्तु वह उसका पहला जन्म है, जब वह बडा़ होकर परमात्मा की शरण में आध्यात्म का पाठ पढ़कर अपने गुरु के सान्निध्य में दीक्षा लेता है, वही उसका धर्म के संसार में वास्तविक जन्म है। उन्होंने कहा कि मेरे गुरू मुनि प्रसन्न सागर की अनुकम्पा से उनके बताये मार्ग पर चलते हुए पूज्य आचार्य पुष्पदन्त सागर से दिगम्बरत्व की दीक्षा लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उसी दिन मेरा सच्चा जन्म हुआ था और इस धर्म का पालन करने वाले साधकों के लिये आनन्द का पर्व है। जहां आप सबने अपनी तपस्या, आराधना को सानन्द सम्पन्न किया है।
तपस्वियों का पारणा आज : डॉ. मोहन नागदा ने बताया कि 19 सितम्बर को सभी तपस्वियों का पारणा अंतर्मना सभागार सर्वऋतु विलास में होगा। समाज का स्वामी वात्सल्य 11.00 बजे से टाउन हॉल में होगा।