आवारा मवेशियों ने किया नाक में दम
फतहनगर. नगर में इन दिनों आवारा मवेशियों की भरमार है। गली मोहल्लों और बाजारों में जगह-जगह मवेशियों के झुण्ड दिखाई दे जाते हैं। हालात ये होते हैं कि कई बार रास्ते जाम हो जाते हैं तथा राहगीरों तक को निकलने में परेशानी हो जाती है। बाजार में विचरण करते मवेशी दुकानों पर जरा सा ध्यान चूके नहीं कि मुंह मारने से भी नहीं चूकते।
दुकानों से सामान ही खींच कर नहीं ले जाते अपितु किसी भी खड़े वाहन की डिककी अथवा थेले तक को नहीं छोड़ते। कई बार सामान खींचने के दौरान मवेशी आपस में उलझ पड़ते हैं। ऐसे में दुकानदार यदि सावचेत नहीं रहा तो मवेशी झगड़ते हुए दुकान के सामान पर आ गिरते हैं। ऐसे में नुकसान होना स्वाभाविक है। ऐसा अनेकों बार हो चुका है। इतना ही नहीं सुबह के समय सब्जी मण्डी के यहां मवेशी वेस्ट सब्जी पर टूट पड़ते हैं तथा झगड़ते हुए सडक़ पर भी आ जाते हैं। पहले से ही रास्ता व्यस्ततम होने से कई बार लोग चोटिल हो चुके हैं। चरागाह लुप्त हुए: दो दशक पहले मवेशियों को गौ पालक समूह में जंगल में ले जाते थे तथा शाम को पुन: घरों को लौट आते। धीरे-धीरे चरागाहों पर लोग काबिज होते गए और आज हालात यह है कि एक इंच जमीन भी गौ चारण के लिए नहीं बची है। हालांकि ऐसे चरागाहों पर बस्तियां आबाद तो हो गई लेकिन उन्हें भी आज दिन तक पट्टे मुनासिब नहीं हो पाए हैं। गौ चारण के लिए तालाब क्षेत्र में भी काफी जमीन थी लेकिन वहां भी लोग काबिज हो गए तथा तालाब भी सिमट कर तलैया बन गया। इसके पीछे प्रशासनिक उदासीनता है। आज भी कई लोग बेशकिमती जमीनों पर काबिज हैं लेकिन उन्हें हटाने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। यही वजह है कि जिन मवेशियों को जंगल में होना चाहिए था वे अब गली मोहल्लों एवं बाजारों में विचरण करते हैं।
काइन हाउस बीते जमाने की बात: एक समय था जब आवारा मवेशी बाजार में दिखाई दे जाता या किसी के खेत में घुस जाता तो उसे काइन हाउस का रास्ता दिखा दिया जाता। उसमें मवेशी के मालिक से पैसा वसूल करने के बाद काइन हाउस से छोड़ा जाता। लेकिन तीन दशक से काईन हाउस का कोई नामलेवा तक नहीं है। ऐसे में स्वच्छन्द विचरण करते मवेशियों को कौन रोके। नगर में गौ शाला भी है लेकिन उसकी क्षमता भी इतनी नहीं है कि बाजार में घूमने वाले मवेशियों का भार वहन कर सकें।