दर्शन की सामाजिक भूमिका पर शुरू हुआ मंथन
Udaipur. अखिल भारतीय दर्शन परिषद् का तीन दिवसीय 58 वां अधिवेशन चिन्तनधारा : नायमात्मा प्रवचनेन लक्ष्यी सुखाडि़या विश्वविद्यालय के सभागार में शुक्रवार को सुबह अतिथियों के दीप प्रज्जवलन के साथ शुरू हुआ।
मुख्य अतिथि मोहनलाल सुखाडि़या विवि के कुलपति आई. वी. त्रिवेदी ने कहा कि अखिल भारतीय दर्शन परिषद द्वारा काफी वृहद रूप से इस सम्मेिलन का आयोजन किया गया है। अधिवेशन के विर्मश का केन्द्र नायमात्मा प्रवचनेन की अवधारणा प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण हैं। भारतीय चिंतकों ने अपनी गहन चिंतनदृष्टि एवं रचनात्मक संवाद द्वारा हमारे जीवन को अंधेरे से प्रकाश की ओर जाने में सदैव रोशनी प्रदान की है। उन्होंने कहा कि अधिवेशन में इस दार्शनिक विरासत को आगे बढा़ने व उसे बहुआयामी बनाने संबधी विमर्श विवि के अकादमिक जीवन में अहम् योगदान प्रदान करेगा।
मुख्य अतिथि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. पी. एस. वर्मा ने कहा कि चिन्तन शिक्षा का सर्वोपरि विषय हैं। जब हम विषयों का गंभीरता से अवलोकन करते हैं तो उसमें काफी कुछ संभावनाएं पाते हैं। अधिवेशन के दौरान परिषद् की और से प्रो. अंबिकादत्त शर्मा, महासचिव ने दर्शन शास्त्र को माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने के प्रस्ताव पर पी.एस. वर्मा ने कहा कि कोप्से की बैठक में इस विषय को माध्यमिक पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव रखूंगा तथा पूर्ण कोशिश करूगां कि दर्शन शास्त्र को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया जाए।
विशिष्ट अतिथि राजस्थान लोकसेवा आयोग के सचिव डॉ. के. के. पाठक ने दर्शन शास्त्र पर अपने प्रभावी उद्बोधन में कहा कि दर्शन के सामने सबसे बडी चुनौती वैश्विक परिदृश्य से जुड़ने की, जब भी विश्व में धर्म संकट आया तब भारत ने उन्हे शरण दी तथा धर्मों को जीवन्त रखा। उन्होने कहा कि विश्व में जो भी धर्म संकट हुए वो एक दिन में पैदा नहीं हुए हैं। भाषाओं का विभाजन हुआ हैं जिसके चलते धीरे-धीरे धर्म संकट पैदा हुउए। उन्होंने कहा कि धर्म दर्शन पवित्रता का क्षेत्र हैं। दर्शन शास्त्र ही एक ऐसा शास्त्र हैं जिसमें हर ओर सीखने को मिलता है, गुरुत्व है।
परिषद के महासचिव प्रो. अंबिकादत्त शर्मा ने कहा कि मनुष्य होने का मतलब भाषा में होना हैं, और भाषा में होने का मतलब अपनी संस्कृति में होना हैं और दर्शन शास्त्र ही एक ऐसा शास्त्र हैं जिसके कारण संस्कृति में रहते हुए एक सुसंगठित व समग्र राष्ट्र को बनाने को प्रयास दर्शन शास्त्र अद्र्ध-शताब्दी से करता रहा हैं। अपने उद्बोधन में शर्मा ने दर्शन शास्त्र को माध्यमिक पाठ्यक्रम में शामिल करने का आहृवान भी किया।
अखिल भारतीय दर्शन परिषद के अध्य क्ष प्रो. जटा शंकर शर्मा ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि परिषद् का उद्भव व विकास की शुरूआत में वर्ष 1954 में प्रथम अधिवेशन हुआ, पिछले 58 वर्षों में परिषद में अनेक उतार-चढाव हुए, कई अधिवेशन में सम्पूआर्ण भारत से दर्शन के मनीषी भी उपस्थित हुए, ऐसे भी अधिवेशन हुए जिसमे न्यूनतम सुविधाओं के साथ इस शैक्षिक गति को जारी रखा। उन्होने कहा कि आज परिषद् इस स्तर पर पहुच चुका हैं कि आगामी अधिवेशन के लिए पहले से रणनीतियाँ बन चुकि हैं। विगत वर्षो में परिषद् द्वारा ऐसे प्रकाशन तैयार किये गये हैं जिससे ज्ञान का कोष बढा हैं तथा शौधार्थियों के लिए शौध हेतु काफी उपलब्धियां हाँसिल की हैं।
परिषद की स्थानीय संयोजक डॉ. सुधा चौधरी द्वारा अधिवेशन की चिन्तन धारा के बारे में बताया गया कि दर्शन शास्त्र विभाग मे अधिवेशन का अयोजन करने की नींव जनार्दन राय नागर द्वारा 1960 में रखी थी। उन्होने बताया कि इस तीन दिवसीय बोद्धिक उत्सव में संवाद व चर्चा के साथ धरती से ब्रहृमाण्ड तक की रचना एवं उसमें दर्शन की महत्ता पर मंथन किया जायेगा। उन्होने कहा कि हर युग में दर्शन जीवन का आधार रहा हैं, गर्व की बात हैं कि दर्शन हमे परमात्मा से मिला हैं। कला महाविद्यालय के अधिष्ठामता प्रो. शरद श्रीवास्तव ने कहा कि कोई भी स मेलन, अधिवेशन तब तक पूर्ण नही जब तक उसका कोई लक्ष्य ना हो।
अधिवेशन के सभापति प्रो. महेश सिंह ने मुख्य। उद्बोधन में गीता का विज्ञान सहित ज्ञानयोग पर भाषण प्रस्तुत किया। अधिवेशन के प्रथम सत्र में ही परिषद द्वारा अतिथियों के हाथो अधिवेशन की स्मारिका का विमोचन एवं पुस्तक का विमोचन किया गया। साथ ही परिषद द्वारा प्रतिवर्ष दिये जोने वाले पुरस्कार भी प्रदान किये गए। अधिवेशन के प्रथम सत्र में धन्यवाद अधिवेशन की समन्वयक प्रो. निर्मला जैन द्वारा ज्ञापित किया गया तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ प्रथम दिन के प्रथम सत्र का समापन हुआ।
तकनीकी सत्रों में हुआ मंथन : अधिवेशन के द्वितीय सत्र में दो समानान्तर सत्रों का आयोजन हुआ जिसमें पहले सत्र के अध्यक्ष प्रो. आर.के देशवाल एवं समन्वयक डॉ. दिलीप चारण की उपस्थिति में मंथन हुआ जिसमें वक्तागण के रूप मे डॉ. अमरनाथ झा, दरभंगा, डॉ. मधुबाला मिश्रा, सीवान, डॉ. संजय प्रताप सिंह , कानपुर, डॉ. सुनील कुमार सिंह, हाजीपुर, डॉ विजय कुमार सिन्हा, वाराणसी एवं डॉ. रमा रानी, इलाहबाद ने अपने व्या यान प्रस्तुत किये। इसी तरह दूसरे तकनीकी सत्र में अध्यक्ष प्रो. महेश सिंह, आरा व समन्वयक डॉ. किस्मत कुमार सिंह, आरा की उपस्थिति में मंथन हुआ जिसमें डॉ. मिथलेश कुमार, पटना, प्रो.एस.आर. व्यास, उदयपुर, डॉ. ई. आर. मठवले, पूर्णा, डॉ. अविनाश कुमार श्रीवास्तव, नालन्दा, डॉ. पूनमसिंह, पटना एवं डॉ. हेमन्त नामदेव, उज्जेन ने अपने व्याख्याेन प्रस्तुत किए।