झीलों, तालाबों के मुद्दों पर राज्यपाल को ज्ञापन
Udaipur. राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना का उद्देश्य झीलों को छोटा करना नहीं है। झील विकास प्राधिकरण भी झीलों के समग्र संरक्षण के लिए है लेकिन दोनों में सरकारी विभागों द्वारा झीलों की अपूर्ण व अवैज्ञानिक, पर्यावरण विरोधी नई परिभाषा गढ़ी गई है, जो अस्वीकार्य है। इससे झीलें सिकुडेंगी, साथ ही उनका पारिस्थितिकी तंत्र भी समाप्त हो जाएगा।
झीलों की समग्र परिभाषा तय करने के आग्रह को लेकर झील संरक्षण समिति के अनिल मेहता, तेज राजदान के नेतृत्वर में प्रतिनिधि राज्यापाल से मिले और ज्ञापन दिया। मेहता ने अल्वा को बताया कि जिन झीलों की सीमा व जल भराव क्षेत्र सिंचाई विभाग व राजस्व विभाग पूर्व में तय कर नोटिफाइ्र कर चुके है। अब उन्हें नई परिभाषा के तहत छोटा किया जा रहा है। झीलों के जल भराव क्षेत्र में चौड़ी सड़कें बनाकर उन्हें स्वीमिंग पूल की तरह बांधा जा रहा हैं। झीलों के प्राकृतिक किनारे, पक्षियों के आवास इससे नष्ट हुए हैं तथा इससे झीलों की पारिस्थितिकी व पर्यावरणीय व्यवस्था को गंभीर नुकसान होगा।
झीलों की परिभाषा के मुद्दे पर राज्यपाल ने जानना चाहा कि क्या स्वैच्छिक संगठनों ने पर्यावरण मंत्रालय एवं अन्य जिम्मेदार ऐजेन्सियों के समक्ष इस मुद्दे को रखा है? मेहता ने बताया कि उक्त मुद्दे को सरकार ओर प्रशासन के हर स्तर पर उठाया जा चुका है। आला अधिकारी नागरिकों की आपत्तियों पर मातहत सरकारी अधिकारियों से जवाब तलब करते है। इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों के अलग-अलग तर्क व आग्रह होने से समाधान नहीं निकलता। राज्यपाल से आग्रह किया गया कि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर संबंधित सभी पक्षों को आमने-सामने बिठाकर संवाद की प्रक्रिया प्रारम्भ होनी जरूरी है। मेहता ने राज्यपाल से कहा कि झीलों की जल गुणवत्ता में सुधार, जल ग्रहण क्षेत्र के उपचार एवं मूल स्वरूप का कायम होना ही झीलों का संरक्षण है जिस पर कोई ध्यान नहीं है। मेहता ने राज्यपाल को राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना की क्रियान्विति की स्थिति व विश्लेषण संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत किये।
राज्यपाल को समाचार पत्रों की क्लिपिंग प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि जब झीलें भरी होती है तब झीलों का पानी सिवरेज में व्यर्थ बहता है तथा जब झीलें खाली होती है तो सिवरेज झील जल एवं भूजल को घोर रूप से प्रदूषित करता हैं। इससे जनस्वास्थ्य को भी गंभीर खतरा है। राज्यपाल ने कहा कि वे संभागीय आयुक्त से बात करेंगी। राज्यपाल स्वयं देश में झीलों व तालाबों की सीमाओं के सिकड़ने पर व्यथित दिखी। उन्होंने अन्य राज्यों का भी हवाला देते हुए कहा कि कन्स्ट्रक्शन वेस्ट व अन्य भराव डालकर झीलों, तालाबों को छोटा करना उचित नहीं है। मेहता ने उदयपुर में नागरिकों स्वैच्छिक संस्थाओं उद्योग समूहों तथा प्रशासन की सम्मिलित सहभागिता से आयड़ नदी में लगी ग्रीन ब्रिज तकनीकी एवं हुए सुधार का प्रगति दस्तावेज भी राज्यपाल को प्रस्तुत किया। प्रतिनिधिमंडल में अरूण जकारिया, डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के नन्दकिशोर शर्मा, चाँदपोल नागरिक समिति के तेजशंकर पालीवाल, ज्वाला जनजागृति संस्थान भंवरंिसह राजावत, झील हितेषी मंच के हाजी सरदार मोहम्मद इत्यादि झील प्रेमियों की ओर से राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को शुक्रवार को ज्ञापन प्रस्तुत किया।