धर्मनारायण जोशी ने लिखा कटारिया को पत्र
पत्र में बताया अहंकारी
Udaipur. शहर विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी एवं राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की समस्याएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। कहने को पार्टी के साथ आ गए धर्मनारायण जोशी ने सीधे कटारिया को पत्र लिखकर गंभीर आरोप लगाते हुए संघ के नाम का अनावश्यक उपयोग करने को गलत बताया है। मांगीलाल जोशी के तेवर ठंडे भी नहीं पड़े कि अब धर्मनारायण जोशी ने भी उनको सीधे पत्र लिखकर गंभीर आरोप लगाए हैं। कटारिया के विरोध में पर्चे भी बांटे गए हैं जिसे छल के आंसू शीर्षक दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि भींडर का टिकट काटने का आरोप झेल रहे कटारिया सभी ओर से नित नई समस्या्ओं का सामना कर रहे हैं। पहले भींडर ने उन्हें आरोपों के घेरे में लिया फिर मावली से प्रबल दावेदार मांगीलाल जोशी ने उन पर गंभीर आरोप लगाए। अब तक शांत बैठे धर्मनारायण जोशी ने भी सीधे कटारिया को पत्र लिखा है। पत्र को उनके सहयोगी विजय प्रकाश विप्लवी ने मीडिया में जारी किया।
पाठकों की सुविधा के लिए पत्र हुबहू प्रकाशित किया जा रहा है :
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धर्मनारायण जोशी 2-ग-11, सेक्टर-13,
उदयपुर 313002
मो.न. 9414158141
दिनांक 25 -11-2013
आदरणीय गुलाब जी,
सादर प्रणाम।
पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आपके कथनों को पढ़ा। क्षोभ के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि आपकी कथनी और करनी में आकाश-पाताल का अन्तर है। आपके शब्दों में जो मक्खन है हम लोगों को विष लग रहा है, क्योंकि हम यथार्थ से परिचित है। यथार्थ की धरती उबड़-खाबड़ व खुरदरी है, वह किसी महरम से चिकनी नहीं बन सकती। आपको यथार्थ की धरती से परिचित कराने के लिये मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। यह कोई व्यथा-कथा नहीं कह रहा हूँ और न ही उत्तेजित व आक्रोशित होकर के लिख रहा हूँ । कृपा करके लोगों की आंखों में धूल न झोकों ये धूल आपको ही धूल-धूसरित कर देगी। जिसके आप स्वयं व्यक्तिगत रूप से उŸारदायी होगें।
सार्वजनिक जीवन में कथनी और करनी का अंतर अंततोगत्वा समाज में अपनी प्रतिष्ठा को आघात करता हैं। आपका वक्तव्य मैं अखबार में पढकर दंग रह गया। आपने कहा धरियावद में गौतम भाई का विरोध हैं, पार्टी के लोग नारायण भाई के साथ लग गये हैं। पार्टी संगठन के अधिकृत व बागी का मापदण्ड धरियावद में अलग निर्धारित किया गया हो तो कृपया मुझे भी अवगत करावें। आपको राजसमन्द व उदयपुर में पार्टी का जिलाध्यक्ष व संगठन सर्वोपरि दिखता हैं, प्रतापगढ व धरियावद में ये पैमाना अलग क्यों हो जाता हैं ?
मैं अपनी मातृ-संस्था संघ के बारे में इस पत्र में कुछ लिखना नहीं चाह रहा था। लेकिन आप बार-बार इस नाम का अनावष्यक उपयोग कर रहे हो। यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हैं। जैसे सूर्य का उजाला चीखकर नहीं कहता, अभी दिन हैं। हम राजनैतिक मंच पर क्यों कहे, हम स्वयंसेवक हैं ?
मुझे दुःख है आप जैसा व्यक्ति उदयपुर के वार्डों में उलझ कर रह गया। बडा बनने के लिये मन भी बडा रखना पडता हैं।
छोटे मन से कोई बडा नहीं होता।
टूटे मन से कोई खडा नहीं होता।।
मैनें आपके बारे में कभी भी मंच पर भाषण या समूह की बातचीत में टिप्पणी नहीं की। मुझे दुःख हुआ आपने मेरे स्वयंसेवक होने तक पर प्रष्नचिन्ह लगाने का प्रयास किया।
मैं संकल्प व्यक्त करता हूं मैं जीवन में जिस विचार व सिद्धान्त को लेकर चला हूं, कभी अपना मार्ग बदलने का विचार तक नहीं करुंगा। मार्ग के अवरोध मुझे मार्गच्युत नहीं कर पायेंगें। मैं जानता हूं सत्य का मार्ग कठिन हैं लेकिन मैं हर परीक्षा से गुजरने को तैयार हूं।
भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की 99 गालियां सुनी थी। आपने यह हद भी पार कर दी है। हम कृष्ण जितने महान भी नहीं है। जो इतनी सहनषक्ति रख लें, जो आपकी अहंकारी उपेक्षावृत्ति जो अब व्यक्तिगत घृणा में बदल चुकी हैं, को सहन करते चले जायें। आपकी करणी के पन्ने मेरे छोटे से पत्र में नहीं समा पायेंगें, फिर भी सारभूत व बिन्दुशः आपको लिख रहा हूँ –
01. .आप सौगन्ध खा रहे हैं आपने मेरा टिकट नहीं कटवाया। शायद सबकी अन्तरात्मा में भगवान आया होगा जो बता रहा होगा कि मैं विद्रोही हूँ या फिर किसी के मन में भय खा रहा होगा कि एक कर्मठ कार्यकर्ता जिसने दल के विभिन्न पदों पर काम करते हुए दल को नई ऊँचाइयों तक पहूंचाया वह कल को हमारे लिये नई चुनौती न बन जाये। क्या और कैसे हुए सब जानते है आँखें मूंदने से विपŸिा छिप नहीं जाती। क्या यह सत्य नहीं है कि दिनांक 1 व 2 नवम्बर (धनतेरस व रूप चौदस) के दिन आपने मावली सहित जिले की विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के अपने गुट के लोगों को उदयपुर पार्टी कार्यालय में बुलाकर कहा 4 नवम्बर को दिल्ली जा रहा हूँ। आप मुझे पत्र लाकर दो, वहाँ कोशिश करूंगा, धर्मनारायण जोशी को टिकट न मिले। इसके बाद मावली में आपसे प्रेरित हुए लोग हस्ताक्षर अभियान में जुट गये।
02. आप चुनाव के पांच वर्ष बाद अगले चुनाव के नामांकन के बाद कह रहे है धर्मनारायण जोशी को श्री मांगीलाल जी जोशी (गुरूजी) ने चुनाव हरवाया। यदि आपको यह ध्यान में था तो आपने इस बात को पार्टी मंच पर पहले क्यों नहीं कहा? अब श्री मांगीलाल जी पर आरोप लगाने का आपको क्या नैतिक अधिकार है ? पिछली बार के चुनाव में मुझे हराने में कौन आनन्दित हो रहा था ये जगजाहिर है। किसके हित के साधन हो रहे थे और कौन किसको निपटा रहा था। इसकी कहानी न ही खुलवाये तो ही अच्छा है। क्योंकि उससे दल को कलंक लग रहा है, जो मैं कभी नहीं चाहूंगा।
03. उक्त बातों की चिन्ता मैनें कभी नहीं की। पिछले 5 वर्ष से मावली क्षेत्र को अपना समझते हूए मैनें उस क्षेत्र के उसी प्रकार से दौरे किये जैसे एक जीता हआ एम.एल.ए. करता है, शायद उससे भी अधिक। आप इससे भलीभांति परिचित हो। इसलिये शायद आपने मेरी दावेदारी की पैरवी की होगी कि घोषित प्रत्याशी श्री दलीचन्द डांगी के नामांकन के दिन उनके साथ उपस्थित था और आपको यह भी आपको खल गया। आपकी पसन्द और नापसन्द की सूची मेरे पास नहीं थी। मैं सिर्फ दल के हित में काम करता हूँ। आप जैसे महात्यागी तपस्वी जिन्होनें श्री मांगीलाल जोशी के लिये वनवास भोगा हो ऐसे की तो भगवान राम को भी पूजा करनी चाहिये। कुछ शर्म रखते शब्दों को बोलते समय। अपनी स्वार्थ सिद्धी के अलावा आपका कोई लक्ष्य नहीं। आप रणछोड़दास भी बनते हो अपने स्वार्थ देखकर किन्तु शब्दों में तपस्या का भाव प्रकट करते हो। वैसे श्री मांगीलाल जी ने आपको सही उŸार दे दिया है। चाणक्य जैसे कूटनीतिज्ञ बनने की प्रतिस्पर्धा में आपकी नीति अपनों को मारने का ही काम करती है।
04. आप उदयपुर से बडीसादडी क्यों गये? बड़ीसादड़ी से उदयपुर क्यों आये? यह किसी से छिपा नहीं है। आप बडीसादडी से लड़ते है तो उदयपुर में श्री मांगीलाल जी हार जाते है और आप उदयपुर से लडते है तो बड़ीसादड़ी में श्रीमती भगवतीदेवी जी झाला चुनाव हार जाती है। क्या ये आपके दस वर्षीय कार्यकाल की उपलब्धि मानी जानी चाहिये कि गत दस वर्ष बडीसादडी में कांग्रेस का विधायक है ?
05. आप सन 1977, 1980, 1985, 1993, 1998, 2003, 2008 में विधानसभा चुनाव व सन 1989 व 1991 में लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद सन 2013 में 10वां चुनाव लड़ रहे है। आप विधानसभा हारते है तो लोकसभा लड़ते है लोकसभा हार जाते है तो फिर विधानसभा लडते है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनकर अगली कार्यकारिणी में प्रदेश महामंत्री बन जाते है। बिना पद व टिकट के रहने की सीख भाषण में कार्यकर्ताओं के लिये और आप लगातार संगठन व सरकार के पदों पर बने रहे। लालबत्ती में घूमते रहे। क्या यह जीवन का आदर्श है।
06. आपने भाषण में कहा मैनें श्री शिवकिशोर सनाढ्य को यू.आई.टी. का चैयरमेन, श्री रवीन्द्र श्रीमाली को सभापति, श्री दिनेश भट्ट को जिलाध्यक्ष बनाया। या तो आप मेवाड के नए महाराणा बन गये है, जो अपने कृपापात्रों को जागीरियां बक्शा रहे हो या मेवाड की भाजपा में जो भी होगा आपकी कृपा से होगा। आपको और हम सभी को नेता संगठन, कार्यकर्ता व जनता ने बनाया हैं।
07. श्री शिवकिशोरजी को यू.आई.टी. का अध्यक्ष बनाने के विरोध में आपकी अगुवाई में भाजपा शहर जिला की बैठक भाजपा कार्यालय में हुई। आप गृहमंत्री पद पर आसीन थे बैठक में तय किया गया जिला भाजपा प्रदेश की वसुन्धरा सरकार व प्रदेश भाजपा के कार्यक्रम का बहिष्कार करेगी। आज आप कह रहे है श्री शिवकिशोरजी को मैनें बनवाया। क्या ये वचन और कर्म का दोहरापन नहीं है। वेैसे इसका उतर षिव जी ने स्वयं भी दिया हैं।
08. इसी दौरान प्रदेशाध्यक्ष श्री महेश जी शर्मा के उदयपुर आगमन पर उनका भाजपा शहर जिला ने बैठक रखना तो दूर रेल्वे स्टेशन पर स्वागत भी नहीं किया।
09. आप यू.आई.टी. की घोषणा के बाद सांवलिया जी में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति व कोटा में मंत्रिमण्डल की बैठक में नहीं गये। क्या अनुशासन केवल छोटे कार्यकर्ताओं के लिये है या आप पार्टी से बड़े हैं ?
10. कोटा में गृहकर माफ करने वाली मंत्रीमण्डल की बैठक का आपने बहिष्कार किया। उदयपुर में आपने गृहकर माफ करने की उपलब्धि पर अपना नागरिक अभिनन्दन करवा लिया।
11. सांवलिया जी की प्रदेष कार्यसमिति में जाने के लिये लालकृष्ण जी आडवाणी डबोक एयरपोर्ट आये। आप उदयपुर में होते हुए उनके स्वागत में नहीं गये। प्रेस ने जब पूछा तो आपने कहा यहीं मान लो नहीं गया और जानबूझकर नहीं गया।
12. आपके भावुक भाषण व झूठी कसमों से मैं अपरिचित नहीं हूंॅ। मेरे जयपुर के एक राजनैतिक मित्र आपके गंगाजली उठाकर कसम खानें की आपकी घटना बता रहे थे।
13. आप मौके को भांपने के माहिर व्यक्ति हो, चुनाव के समय सारी गलतियां स्वीकार लेते हो। आखिर भोले-भाले लोगों से ऐसी बातें आखिर कब तक…..?
14. आपने सदैव अपनी व्यक्तिगत पसन्द-नापसन्द को पार्टी पर थोपनें का प्रयास किया। भानुकुमार जी शास्त्री ,मदन जी धुप्पड, नरेन्द्रसिंह जी लिखारी, मदनलाल जी मून्दडा, हीरालाल जी कटारिया, जोधसिंह जी चौहान, किरण जी माहेष्वरी, हरिसिंह जी चौहान , वीरेन्द्र जी बापना, ताराचन्द जी जैन, मांगीलाल जी जोषी, दुल्हेंसिंह जी सारंगदेवोत, महेन्द्रसिंह जी शेखावत, दिग्विजय जी श्रीमाली ,घनष्याम जी चावला जैसे पार्टी के दिखते हुए लोगों से आपका दुराभाव क्यों हैं? हर व्यक्ति आपका विरोधी क्यों हो जाता हैं ?
15. आपने संगठन चुनाव में व नगर परिषद चुनाव में शंकरसिंह सोलंकी को प्रभारी बनवाकर जो किया, किसी से छिपा नहीं हैं। मैने पारस सिंघवी, दिनेष गुप्ता, विजय प्रकाश विप्लवी, कैलाश शर्मा, मनोहर चौधरी, विजयराज माहेश्वरी जैसे स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं को मण्डल अध्यक्ष बनाने की कोशिशश् की। आपने जिनको बनवाया तब वे अच्छे लग रहे थे आज बुरे क्यों लग रहें हैं ?
16. नगर परिषद चुनाव में उदयपुर में नियम बनाये वार्ड नहीं बदलेगा। जिस वर्ग का प्रत्याषी होगा उसी वर्ग के वार्ड में चुनाव लडेगा। यह नियम बताकर आपने मांगीलाल जी व दिनेश जी भट्ट तक का टिकट काट दिया। उदयपुर के उपकार का बदला चुकाने के लिये डूंगरपुर में शंकरसिंह सोलंकी को डूंगरपुर में सभी नियम तोड़कर चैयरमैन बनवा दिया।
17. क्या यह सत्य नहीं हैं कि आपने मेरे व रणधीरसिंह जी भीण्डर के विरुद्ध 2008 के विधानसभा चुनाव में प्रचार करने वाले कार्यकर्ताओं को अपने साथ मंच पर बिठाकर और पार्टी में पद व जिम्मेदारी दिलाकर सम्मानित किया ? क्या ये पार्टी की निष्ठा और अनुषासन हैं।
18. आप मांगीलाल जी पर मुझे मावली से हराने का आरोप लगा रहे हैं। मेरे चुनाव में मेवाड के नेता व प्रदेष गृहमंत्री के नाते 2008 में मावली सीट पर आपका क्या योगदान रहा ? क्या इस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए ?
19. आप भाषण में स्वयंसेवक होने की दुहाई देतें हैं, तो कभी सांगानेर में क्षैत्रिय विधायक के विरोध के बावजूद हज हाउस के शिलान्यास में चले जाते हैं ? आखिर वचन व व्यवहार में यह दोहरापन क्यों ?
20. राजसमन्द जिला प्रमुख के चुनाव में भाजपा के आठ वोट क्रास हो गये। कांग्रेस का जिला प्रमुख बन गया। आपने किसी पर कार्यवाही करवानें की पहल क्यों नहीं की ? कांग्रेस को जिला प्रमुख बनवाने वाले को आखिर पार्टी में किसका प्रश्रय हैं ? आप अनुशासन की वकालात करते हुए स्वयं को सत्यवादी हरिशचन्द्र बताते हो तो इस विषय पर मौन क्यों ?
21. आपने सुन्दरसिंह जी भण्डारी के नाम से ट्रस्ट बनाकर पार्टी कार्यालय को भी उसके अन्तर्गत ले लिया। ट्रस्ट में मांगीलाल जी जोशी सदस्य नहीं जिनके जिलाध्यक्ष कार्यकाल में कार्यालय बना। मुझे तो आपकी बनाई ट्रस्टियों की सूची में नाम होने की अपेक्षा कभी हो नहीं सकती लेकिन षिवकिषोर जी सनाढय, रवीन्द्र जी श्रीमाली, नारायण जी शर्मा, मदनलाल जी मून्दडा, दलपत जी सुराणा, किशनलाल जी शर्मा, ताराचन्द जी जैन व दिनेश जी भट्ट जैसे व्यक्तियों को आपने ट्रस्ट में नहीं रखा, जिनका कार्यालय की भूमि आवंटन से निर्माण तक महत्वपूर्ण योगदान हैं। देश को चलाने का सामर्थ्य रखने वाली पार्टी भाजपा का जिलाध्यक्ष व उसकी टीम अपने कार्यालय की जिम्मेदारी के लायक भी नहीं हैं, जो इन पर भी हमें ट्रस्ट व ट्रस्टियों का पहरा लगाना पडे़गा।
22. उदयपुर में हुए भाजपा संगठन के चुनाव में भोज व बाड़ाबंदी के अलावा आपने क्या किया ? पत्र में लिखना भी उचित नहीं हैं। येन-केन पार्टी संगठन व सत्ता पर काबिज रहना क्या हम संघ व भाजपा में यहीं उद्देश्य लेकर गये थे।
23. आपने कार्यालय में दिये भाषण में विस्मयपूर्ण व्यंग्य किया मैं मावली में भाजपा प्रत्याशी का नामांकन का भराने कैसे चला गया ? क्या मेरा यह कदम आपकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं था। विपक्ष का नेता बनने की आपकी व्याकुलता किससे छिपी हैं ? अपने जैसा सभी को समझना मानवीय स्वभाव है।
आपकी झांकियों का दिग्दर्शन करते ही आपकी सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि समझ में आ जाती हैं, जिसमें पब्लिक को सुनाने के सिद्धान्त अलग होते हैं। वे इस प्रकार लगते है, जैसे नीति शास्त्र की व्याख्या हो रहीं हैं। किन्तु आपकी संत वाणी के पीछे आपकी करणी का विषदण्ड जो हैं वह अपने-अपने निकट के लोगों को निपटाने का ही दृष्टिकोण रखता हैं।
दलहित और मर्यादाएं आपके लिये मात्र भाषण के विषय हैं। त्याग तपस्या का आदर्श मात्र कार्यकर्ताओं के लिये होता हैं। स्वयं के आचरण में अनीति की पराकाष्ठा हैं। आप जैसे बोओगे वही फल मिलेगा। उस समय साथ ढूंढते रह जाओगे, भगवान भी साथ नहीं आयेगा।
आप तो समझ से ज्यादा समझदार हो। न आपको समझाऊगां, न कोई अनुरोध करुगां और न प्रार्थना, क्योंकि उन सबको व्यर्थ होते हुए मैनें देखा हैं।
भवदीय
(धर्मनारायण जोशी )
प्रतिष्ठार्थ,
श्रीमान् गुलाब चन्द जी कटारिया
141, माछला मगरा, उदयपुर
Satta ke lobhi Mananiya Katariya ne karmath karyakartao ko darkinar kiya..sangh to rashtrabhakti ke liye prerit karat hai to ek varistha swayamsewak esa lobhi aur irshalu aacharan…. ek chinta ka vishay…..