उदयपुर। प्रारम्भ से ही राजस्थान में राजनीतिक दल चुनाव मे जातियों के आधार पर चुनावी रणनीति बनाती रहे हैं लेकिन पन्द्रह-बीस वर्षो में जातिगत ध्रुवीकरण अधिक हुआ है। यह स्थिति ठीक नही है। शिक्षा का विस्तार एवं आर्थिक सम्पन्नता हालांकि जातिगत संकीर्णता को कम करेगी फिर भी जाति आधारित चुनावी रणनीति वास्तविकता बनी रहेगी।
डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट, इलेक्शन वोच उदयपुर व गांधी स्मृति मन्दिर के द्वारा आयोजित विधान सभा चुनाव- जातिवाद एवं उसके सबब विषयक संवाद में ये तथ्यव आए। अध्यक्षीय उदबोधन में राजनीतिक के प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने कहा कि चुनाव किसी एक जाति के प्रभुत्व से नहीं जीते जा सकते लेकिन उदयपुर में अपवाद त्रिलोक पूर्बिया को छोड़कर मुख्यतया जैन एवं ब्राह्मण वर्गों के प्रत्याशी ही मुख्यतया जीते हैं।
नब्बे के दशक में चुनावों में विचार धारा (आईडियोलोजी) तथा आर्थिक स्थिति, सम्पन्नता (इक्कोनोमिक बेसिस) क्षीण हो गये तथा जाति हावी हो गई। राजनैतिक दलों के लिए यह जातियों के आधार पर मतदाताओं को जुटाना आसान तरीका बन गया। इसका समाधान यही है कि राजनैतिक दलों में अच्छे लोग सम्मिलित हो एवं राजनैतिक दल बुद्धिजिवियों व नैतिक मूल्यों को स्थान दें। संचालन करते हुए विद्याभवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने अफसोस जताया कि पूरे राजस्थान में चुनाव जातियों के इर्द-गिर्द घूमते रहे। यहा तक कि बुद्धि जीवी वर्ग भी जातियों में बटा रहा। उदयपुर में जैन समुदाय के कई लोग जो कांग्रेसी विचारधारा से जुडे़ हैं। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नही बनने चाहिए, भाजपा राज्य में नही जीतनी चाहिए लेकिन हम वोट भाजपा प्रत्याशी को देंगे क्योंकि वह हमारे समुदाय से आता है। दूसरी तरफ ब्राह्मण समुदाय में भाजपा विचारधार के लोग नरेन्द्र मोदी को चाहते है, भाजपा की सरकार चाहते है किन्तु कांग्रेस प्रत्याशी को वोट देंगे क्योंकि वह हमारे समुदाय से आता है। राजनैतिक विचारधारा को भी जातियों ने ध्वंस कर दिया है।
समाज विज्ञानी डॉ. श्रीराम आर्य, आस्था संस्थान के अश्विनी पालीवाल एवं गांधी मानव कल्याण सोसायटी के मदन नागदा ने बढ़ते जातिवाद को समाज के लिए खतरा बतलाते हुए कहा कि विकास प्रमुख मुद्दा होना चाहिए। एसटी सीटों पर यद्यपि इसी वर्ग कें प्रत्याशी थे लेकिन उसमें भी सबकास्टद और गौत्र मुद्दे बने। वहां उपजातियों व गौत्रो के नाम पर मतदाताओं को संगठित किया जाता है। यहां विचारधाराओं एवं मुल्यों का अभाव स्पष्ट है। पॉलीटेक्निक के प्राध्यापक जे. पी. श्रीमाली ने कहा कि जाति समाज का हिस्सा है, जातिगत ध्रुवीकरण को सकारात्मक रूप से लेना चाहिए।
चर्चा का संयोजन करते हुए डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के संचिव नन्दकिशोर शर्मा ने चुनाव आयोग की चुनाव की व्यवस्थाओं एवं बढे हुए मतदान पर खुशी जताते हुए कहा कि यह आश्चर्य जनक है कि उदयपुर में परमपरागत रूप से हावी रहने वाले मुद्दे विकास, राष्ट्रवाद, धर्म निरपेक्षता, मंहगाई तथा स्थानिय मुद्दो की जगह जातिगत समीकरणों ने ले ली। संवाद में इंजी. अब्दुल अजीज खान, राजेश चौधरी, एकलव्य नन्दवाना, हाजी सरदार मोहम्मद, प्रकाश तिवारी, राधेश्याम शर्मा, सुशिल दशोरा, भंवर सिंह राजावत, नितेश सिंह आदि ने भी विचार व्यक्त किये। अन्त में अफ्रिका के महान नेता एवं गांधीवादी नॉबल पुरूस्कार से सम्मानित नेलसन मंडेला के निधन पर शोक व्यक्त किया गया तथा नेलसन मंडेला एवं बी.आर. अम्बेडकर को दो मिनट मोन रख कर श्रंद्धाजंली ज्ञापित की गई।