कटारिया ने खुद को साबित किया ‘मेवाड़ का शेर’
उदयपुर। जैसी कि आशंका थी, परिणाम रोमांचक होंगे, वही हुआ। दिल्ली से चला ‘आप’ का झाडू़ राजस्थान तक कांग्रेस का सफाया कर गया। कांग्रेस तो कांग्रेस, भाजपा को भी उम्मीद नहीं थी कि इतनी सीटें एक साथ आ जाएंगी। मेवाड़ में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। उदयपुर की 8 में से 6 सीटें भाजपा, एक कांग्रेस को तथा एक परोक्ष रूप से भाजपा को यानी वल्लभनगर से भाजपा के बागी रणधीरसिंह भींडर को गई।
इन चुनावों से कई सारे समीकरण साफ हुए। मेवाड़ में कटारिया की ही चली और अब भी चलेगी। कटारिया का खुलकर विरोध करने वाले अब सामने नहीं आ रहे हैं। ब्राह्मण और राजपूत विरोधी होने का आरोप झेलने के बावजूद कटारिया एक बार फिर मेवाड़ का शेर होने का गौरव बनाये रखे हैं। कटारिया के विजयी होने तथा मेवाड़ में भाजपा का परचम लहराते ही कटारिया विरोधियों की पेशानी पर बल पड़ गए हैं कि अब क्या़ होगा। पार्टी में उनका क्या स्थान रहेगा? कटारिया के टिकट वितरण का सशक्त विरोध यूं तो धरियावद में भी हुआ लेकिन वल्लभनगर सीट हॉट रही और वहां से भाजपा के बागी के रूप में रणधीरसिंह भींडर निर्वाचित हुए। भले ही यह मोदी की लहर हो या केन्द्र की नीतियों का विरोध… खामियाजा गहलोत को भुगतना पड़ा। साथ ही साथ डॉ. सी. पी. जोशी अपने घर की सीट नाथद्वारा को भी नहीं बचा पाये।
अगर देखा जाए तो भाजपा की असली जीत मध्य प्रदेश में हुई है। जहां पहले भी भाजपा की सरकार थी और अब वापस बहुमत से सत्ताम में आई है। दिल्ली में 15 वर्ष से कांग्रेस शासन कर रही थी वहीं राजस्थान में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की तर्ज पर इस बार वापस भाजपा को सत्ता में आने का मौका मिला। दिल्ली में आप पार्टी जमकर उभरी। वह बहुमत में नहीं आई लेकिन दोनों प्रमुख दलों के सामने उसने आम आदमी को खड़ा जरूर कर दिया।
सभी की नजरें जयपुर के जनपथ पर होने वाले शपथग्रहण समारोह पर टिकी हैं। कांग्रेस में मेवाड़ से इतने विधायक देने के बावजूद सिर्फ ढाई मंत्री देने का हवाला देने वाले कटारिया मेवाड़ से कितने विधायकों को मंत्री बनवा पाते हैं, यह देखने वाली बात है। राजसमंद से विजयी विधायक किरण माहेश्वरी का मंत्री बनना तय माना जा रहा है।