‘प्रभु मेरो नाम’ का विमोचन
उदयपुर। भारतीय चिन्तन परम्परा में व्यंग्य भाषा को धारदार बनाता है। साहित्यकर्मी का दायित्व है कि वे भाषा को जीवनन्तता प्रदान करे। व्यंग्य भाषा को निरन्तर मांझता रहता है। उक्त विचार मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के हिन्दी के विभागाध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि डॉ. माधव हाड़ा ने व्यंग्य लेखक डॉ. कमलेश शर्मा की पुस्तक ‘‘प्रभु मेरो नाम’’ के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए।
डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट एवं युगधारा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में अध्यकक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नंद चतुर्वेदी ने कहा कि कबीर, तुलसी जैसे गम्भीर कवियों ने भी शब्द की व्यंजना शक्ति का प्रयोग कर काव्य को प्रभावी बनाया है। कभी-कभी भाषा को कड़वा शब्द बोलना पड़ता है जो समाज निर्माण के लिए आवश्यक है। व्यंग्यकार आस्था की भाषा बोलते है समाज से अलग होकर साहित्य की रचना नही हो सकती। सामाजिक विसंगतियां हमे समझ में नही आती और समाज जब विसंगतियों के साथ जीना शुरू कर देता है ऐसी स्थिति में साहित्य में व्यंग्य नव समाज की रचना का मार्ग दिखाता है।
पुस्तक लेखक डॉ. कमलेश शर्मा ने कहा कि साहित्य वर्तमान समाज का आईना है। साहित्य को किसी दूसरे माध्यम में उतारना मुश्किल है चाहे वह नाट्यविधा हो या फिल्म। पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए साहित्यकार डॉ. रेणु देवपुरा ने कहा कि लेखकीय खोज लेखकीय खाज पर सुन्दर व्यंग्यात्मक टिप्पणियां ‘प्रभु मेरो नाम’ में की गई है। पुस्तक की समीक्षा करते हुए तारा दीक्षित ने कहा कि साहित्य की विधा में निबन्ध विधा को सबसे कठिन कहा जाता है और व्यंग्यविधा उससे भी मुश्किल है। उन्होंने पुस्तक की सराहना की और कहा कि ज्ञान प्रशंसा का भूखा होता है। इस युक्ति को व्यंग्यकार ने बखूबी व्यंग्य में काता है। विशिष्ट अतिथि लोक कला मर्मज्ञ डॉ. महेन्द्र भाणावत ने कहा कि वर्तमान व उहापोह के माहोल में व्यंग्य की बहुत जरूरत है साहित्य की सारी धाराएं क्षीण हो रही है। चहुंओर मूल्यों का हास हो रहा है। इसमें कृति का नाम प्रभु तेरो नाम होना चाहिए था लेखक या कवि का चर्चित होना पाठक पर निर्भर है। साहित्यकार देवेन्द्र इंद्रेश ने कहा कि व्यंग्य का लेखक और पाठक का एक वर्ग होता है। व्यंग्य का आरम्भ आक्रोश से होता है और कड़वाहट पर समाप्त होता है। व्यंग्य हमेशा विसंगतियों को चिह्नित करता है। कवियत्री डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हास्य जहां खत्म होता है, वहीं व्यंग्य शुरू होता है। साहित्य में व्यंग्य की अपनी विधा नहीं है। युगधारा के अध्यक्ष भगवतीलाल व्यास ने कहा कि आज के माहौल में जीना ही अपने आप में व्यंग्य है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्जवलन एवं मार्ल्यापण किया। लेखक का परिचय डॉ. रेखा शर्मा ने देते हुए तो लेखक के व्यक्ति एवं कृतित्व का परिचय दिया। पुस्तक विमोचन समारोह में युगधारा के संस्थापक डॉ. ज्योतिपुंज, कवि श्रेणीदान चारण, डॉ. इन्द्रप्रकाश श्रीमाली, सोहनलाल तम्बोली सहित शहर की गणमान्य साहित्यकारों ने भाग लिया। धन्यवाद ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने दिया।