उदयपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अपने पूर्व के फैसले पर अटल है कि मीसा बंदियों को दी जाने वाली पेंशन वे नहीं लेंगे। माकपा नेताओं का कहना है कि जनतंत्र के लिए संघर्ष का कोई मुआवजा नहीं होता। उल्लेनखनीय है कि आपातकाल में जिला कमेटी के दो नेता बीएल सिंघवी एवं ऑयलदास बंद थे। इनमें ऑयलदास का देहांत हो चुका है।
मीसा में बंद रहे सिंघवी ने कहा कि माकपा पार्टी के नेताओं ने आजादी के संघर्ष में लम्बी जेल काटने पर भी एक भी नेता ने पेंशन नहीं ली और ना कोई राजकीय इनाम लिया। उसी परम्परा के तहत देश में जनतंत्र पर 1975 में जो हमला हुआ और कांग्रेस ने जो बर्बर दमन किया। मीसा जैसे गैर जनतंत्रीय कानून को थौप कर हजारों लोगों को जेल में डाल दिया। न वकील, न दलील के साथ प्रेस का भी गला घोंटा, उसमें अन्य लोगों के साथ ही माकपा के भी देश में हजारों कार्यकर्ता जेल में बंदी बनाये गये। राजस्थान में भी सभी नेता बंद कर दिये गये। उन सभी ने जनतंत्र की पवित्र रक्षा के लिए हंसते हुए बिना माफी मांगे जेल जीवन काटा। सबने पार्टी की परम्परा के आधार पर मुआवजा ठुकरा दिया। मध्य प्रदेश में भी एक भी माकपा कार्यकर्ता ने अभी तक पेंश नहीं ली है न राजस्थान में ही लेंगे।
माकपा जिला सचिव ने राज्य सरकार द्वारा जनतंत्र की रक्षा में जेल में रहे नेताओं को पेंशन देने का जो फैसला इस महंगाई के दौर में लिया है, उसे ठीक नहीं मानते हुए कहा कि कम से कम आपातकाल में जिन लोगों ने माफी मांग कर आपातकाल का समर्थन कर जेल से बाहर आये, उनकी तो जांच करवा फर्जी मीसा बंदियों को तो पेंशन नहीं देनी चाहिये।