एपिस्टोमोलॉजी ऑफ सोशल लिबर्टी: ए क्रिटिकल रिअप्रेसल ऑफ दी थॉट्स ऑफ विवेकानन्द, ज्योतिराव फूले एण्ड दयानन्द सरस्वती
उदयपुर। अपने गौरवशाली अतीत के पुनर्निर्माण एवं भविष्य की सुखद परिवाचना से ही भारतीय समाज का कायाकल्प निश्चित था। स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द एवं ज्योतिबा फूले तीनों सदी के नायक थे। तीनों सामाजिक नवजागरण के पुरोधा थे जिन्होंने धार्मिक, सामाजिक नवजागरण से भारतीय समाज का पुनर्निर्माण किया।
ये विचार सीएसडीएस, नई दिल्ली के निदेशक अभय कुमार दुबे ने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किए। उन्होंकने कहा कि भारतीय सामाजिक नवजागरण में उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की गोधूलिवेला एक नवजागरण का संकेत करती है।
मुख्य वक्ता जामिया मिलिया इस्लामिया के आधुनिक इतिहास के प्रख्यात विद्वान प्रो. अमिया पी. सेन ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द, ज्योतिबा फूले एवं स्वामी दयानन्द सरस्वती तीनों अपने देश काल परिस्थितियों की देन है। विवेकानन्द की ज्ञानमीमांसा को इंगित करते हुए माना है कि वह व्यावहारिक धरातल पर और आचरण में आने से ही समाज का कल्याण होगा। स्वामीजी ने व्यापक चिन्तन से राष्ट्रधर्म से मानवतावादी धर्म की आधारशिला रखी जो मानवमात्र के लिए कल्याणकारी होगी। इसी प्रकार ज्योतिराव फूले ने सामाजिक क्रान्ति की व्यावहारिक परिणति पर बल दिया और समाज के दलित एवं शोषित वर्ग में नवजागरण किया, वहीं स्वामी दयानन्द सरस्वती का राष्ट्रवादी चिन्तन ने अतीत की सम्पदा रक्षण एवं शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति का सूत्रपात किया। विशिष्टी अतिथि राजीव गांधी जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति टी. सी. डामोर ने कहा कि यह तीनों जननायक अपने समय की समस्याओं पर ही नहीं अपितु भारत के निर्माण की व्यापक सम्भावना पर भी महत्वपूर्ण दृष्टि प्रदान करते हैं। आज सामाजिक क्षेत्र में इन पर नवीन दृष्टियों से अनुसंधान होना चाहिए। अध्यक्षता करते हुए कला महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. शरद श्रीवास्तव ने कहा कि तीनों ही चिंतकों के आधुनिक समाज एवं भारत के निर्माण में उनके अवदान का मूल्यांकन आज की स्थितियों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। दर्शनशास्त्र की प्रो. निर्मला जैन ने धन्यवाद दिया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात् ‘‘ज्योतिबा फूले की सामाजिक मुक्ति दृष्टि’’ पर दिल्ली के प्रसिद्ध समाजचिंतक एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता सुभाष गताड़े ने व्याख्यान भाषण में स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती और ज्योतिबा फूले के आन्दोलन, संघर्ष एवं सफलता को इंगित करते हुए अमेरिका में स्वामीजी के अभिभाषण और भारतीय आध्यात्मिकता का जो परचम लहराया, उसकी सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत की साथ ही ज्योतिबा फूले और उनका साहित्य और समाज में उसकी प्रक्रिया से एक क्रान्ति विकसित हुई और समाज में व्यक्ति मुक्ति एवं स्त्री मुक्ति को नवीन आयाम मिले। विस्तार व्याख्यान में समाज की तात्कालिक परिस्थितियों का सूक्ष्म चिन्तन प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् दो तकनीकी सत्रों में विवेकानन्द, दयानन्द व फूले के चिंतन, व्यक्तित्व, कृतित्व के बहुआयामी पक्षों पर प्रो. आभासिंह (पटना), प्रो. मुजफ्फर अली (दिल्ली), डॉ. दिलीप चारण (अहमदाबाद), डॉ. युक्ति याज्ञनिक (अहमदाबाद), सुप्रिया चेतन (नागपुर) ने पर्चे पढ़े।