विद्यापीठ में वित्तीय मुद्दे तथा आर्थिक सुधार पर राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रारंभ
आर्थिक प्रबंधन के लिए हो ठोस नीतियां
उदयपुर। ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री गुलाबचन्द्र कटारिया ने कहा कि शिक्षा ऐसी हो जो मनुष्य को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखा सके तो स्वतः ही आर्थिक सुधार आ जाएगा। आज राष्ट्र के प्रति समर्पण तथा समाज के प्रति देखने का नजरिया बदलें। शिक्षा को संस्कार और जीवन मूल्यों से जोड़ना चाहिए।
वे शनिवार को माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘‘वित्तीय मुद्दे तथा आर्थिक सुधार’’ विषयक पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आजादी के 65 वर्ष बाद भी करोड़ों लोग रात को भूखे सोते हैं तथा उनके पास मकान नहीं हैं। आर्थिक सुधारों पर हमें मनुष्य को केन्द्रित कर सोचना होगा। योजनाएं बनाने के लिए निष्णात व्यक्तियों का सहयोग लेना होगा। हर क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति विशेषज्ञ नहीं हो सकता, अतः उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से परामर्ष कर योजनाएं बनाना तथा क्रियान्वित कराना अपेक्षित है। उन्होंने टैक्स के सरलीकरण तथा घाटे का बजट नहीं बनाने की बात कही।
संगोष्ठी निदेशक डॉ. सुमन पामेचा ने बताया कि सेमिनार के मुख्य वक्ता राजस्थान विश्वदविद्यालय जयपुर के प्रो. सतीश बतरा ने कहा कि आर्थिक विकास के साथ सामाजिक विकास जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि सच बात यह है कि विकास का लाभ समाज या समाज के सामान्य व्यक्ति को इसका लाभ नहीं मिलता है तो ऐसा विकास अस्थायी होता है तथा यह समाज में असंतोष पैदा करता है। वास्तव में यदि हम यह चाहते हैं कि सामान्य जन इस विकास का भागीदार बने तो पहलुओं को बदलना होगा तथा इसके बिन्दुओं का विश्ले्षण करना होगा। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि विकास में मनुष्य हमारा केन्द्र बिन्दू हो न कि भौतिक साधन व पूंजी।
विशिष्टो अतिथि प्रो. भवानीशंकर गर्ग ने कहा कि भारत में आज बहुत आर्थिक विकास हो चुका है और भारत वित्तीय दृष्टि से एक सुदृढ़ राष्ट्र है जहां बड़े-बड़े उद्योग है जिनको बड़ी मात्रा में वित्तीय साधनों की आवश्येकता होती है जिनको उपलब्ध करवाने के लिए राष्ट्र प्रयास कर रहा है परन्तु मुझे इस बात का भी दुख होता है कि इस बड़े पैमाने के उद्योगों ने हमारे कुटीर उद्योगों व लघु उद्योगों को समाप्त सा कर दिया है। महात्मा गांधी का सपना था कि पूरा भारत गांवों से मिलकर बना है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि बढ़ती गरीबी, मूल्य वृद्धि तथा बेरोजगारी पर हमें लगाम लगानी होगी। हम आज देखते है कि पोस्ट ग्रेज्युयेट बेरोजगारों की संख्यॉ देष में 10 प्रतिषत है और बिना पड़े लिखे लोगों का प्रतिषत 1.6 प्रतिशत है। यह विकराल समस्या है। युवाओं को डिग्री प्राप्त होनी जा रही और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। विशिष्ट अतिथि राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. पी. के. दशोरा ने कहा कि आज हमें महात्मा गांधी ग्राम स्वराज को अपनाना होगा और गांधी के अर्थ शास्त्र के सिद्धांतों पर चलना हेागा। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता के बाद अपनायी गई आर्थिक नीतियों की समीक्षा करते हुए कहा कि संविधान में आर्थिक नीतियों का उल्लेख नहीं है। तथापि हमारी वैश्विक व्यवस्था बीमा तथा मोद्रिक व्यवस्था एवं कर प्रणाली में सामयिक परिप्रेक्ष्य में सुधार की जरूरत है। संयोजन सीमा चम्पावत ने किया। इस अवसर पर प्रो. सी. एस. बरला, प्रो. अंजू कोहली, प्रो. फरीदा शाह, प्रो. कुमुद दवे, प्रो. तपन चोरे, प्रो. जीवन सिंह राणावत, प्रो. एन.एस. राव, प्रो. आर. आर. भास्कर ने भी विचार व्यक्त किए।
तकनीकी सत्र : आयोजन सचिव डॉ. पारस जैन ने बताया कि सेमीनार में दो तकनीकी समानान्तर सत्रों में वैश्वीनककरण के आर्थिक प्रभावों, राजस्थान की अर्थ व्यवस्था की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य की संभावनाओं के अन्तर्गत जल संकट, उर्जा संकट, आधारभूत संरचना के निर्माण जैसी समस्याओं पर विचार किया।
सोविनियर तथा पुस्तक का विमोचन : आयोजन सचिव डॉ. पारस जैन ने बताया कि महाविद्यालय द्वारा प्रकाशित सोविनियर तथा वित्तीय एवं अर्थ सुधार पर पुस्तक का विमोचन अतिथियों ने किया।