ऑन डिमांड बिकती है नंदलाल की उपज
जलवायु, मिट्टी और परिवेश सब एक समान और आर्थिक सामाजिक स्थितियां भी एक जैसी। फिर सामान्य किसान नन्दलाल के खेती में क्या खास है बात जो अन्य किसानों से उसे बिलकुल अलग बनाती है। युवा नंदलाल ऐसा किसान है कि उसकी उपज ऑन डिमाण्ड उसके तय भावों पर बड़े नगरों की पांच सितारा होटलों में खपती है।
सामान्य मण्डियों में नहीं बिकने जाती। उसकी शिमला लाल, पीली और हरी मिर्च याने मुम्बीई, ओरोविले और इन्दिरा किस्में जापान तक का सफर भी तय कर चुकी है। अभी उदयपुर-जयपुर के आढ़तियों के माध्यम से वहां के नामी होटलों में जायका बनाती है। जी हां, ‘पहले मारे सो मीर’ ‘जो जागे सो पावै मुहावरे चित्तौड़गढ़ के जयसिंहपुरा के खेतिहर नन्दलाल जाट पर अक्षरशः लागू होते हैं। वह पहले जागा और पहले पहल कर दी। कृषि वैज्ञानिकों का दुखड़ा है कि उनकी बात कोई सुनता नहीं पर जनाब! जिसे सुनाई-दिखाई पड़ता है, वह श्रेष्ठता के परवान चढ़ जाता है। धोती-कुर्ते के लिबास में संस्कृत और हिन्दी में एम.ए. कम्प्यूटर के पीजीडीसी नन्दलाल का यही हिसाब है। उसने अपने ज्ञान को दस साल सरपंचगिरी के अनुभवों के घोल में डूबोकर जगह-जगह से अनुभव बटोर पिछले तीन साल पहले खेती में पैर जमाए और मात्र आधा बीघा भूमि में 60 क्विंटल शिमला मिर्च पैदा कर तथा एक लाख का खर्च निकाल कर 2 लाख 60 हजार का शुद्ध मुनाफा कमाया। इस करिश्माई उपलब्धि को देखने-जानने-परखने अन्य जिलों के किसानों के जत्थे आते हैं और सूझबूझ से की जा रही खेती को देखकर वे दांतों तले अगुंली दबाते हैं। कृषि वैज्ञानिक और विभाग इस खेतीहर पर इठलाते हैं।
चित्तौड़गढ़ से 30 किलोमीटर दूर कोटा मार्ग पर लगभग पांचसो किसानों की बस्ती का एक गांव है जयसिंहपुरा। सरपंच रहते हुए नन्दलाल को खेती और विकास के मॉडल देखने के कई अवसर मिले। पूणे, नांदेड़, औरंगाबाद, अहमदनगर, बीड़, सोलापुर, लालना, कोल्हापुर, सतारा, कुलथाणा, नागपुर, बैंगलोर, मैसूर, आनन्द और करनाल आदि किसानों के यहां और सरकारी-गैर सरकारी उन्नत फार्मों को उसने खुली नज़रों से और खुले दिमाग से देखा-समझा। वह भारत सरकार की ओर से उन्नत खेती देखने के लिए मलेशिया का भी सफर पूरा कर चुका है।
सपने साकार करने के लिए रुपए-पैसों का जुगाड़ शनैः शनैः सरकारी फंड और बैंकों से सुलटता चला गया। छूट और अनुदान के घोषित लाभ मिले। जो समझा, उसे जमीन पर उतारा। हां उसे अब थोड़ी उम्मीद नज़र आई है। महज तीन साल पहले शुरु की उन्नत खेती पहले वर्ष में ही मुकाम पर पहुंच गई। उसने पॉली हाऊस बनाया। उम्दा खाद-मिट्टी के मिश्रण से धोरे बनाए और सिर्फ तीस ग्राम शिमला मिर्च बीजों की पौध से 3000 पौधे 45-45 सेमी व लाइन से लाइन 50 सेमी की दूरी पर रोपे। एक बेड पर दो लाइनें और हर पौधे पर 10-12 फीट क्लिप के साथ धागे बांधे गए ताकि मिर्चियों के वजन को पौधे झेल सके और ऊपर से ऊपर बढ़ते जाएं ताकि अधिक फल लग सके। हर फसल की जरूरत के अनुसार केलशियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट, बोरोन, जिंक, आयरन, एनपीके खाद ड्रिप से दिया जाता है जबकि देसी खाद की आपूर्ति तीन वर्ष में एक बार प्रारंभ में की जाती है। हर फसल चक्र के बाद कतारों (बेड्स) का स्थान परिवर्तन किया जाता है।
पाइप लाइन माइक्रो स्प्रिंकलर्स, ड्रीपर्स, फोगर्स की सहायता से व बूंद-बूंद सिंचाई से नियंत्रित तापमान में खेती की गई। 35 दिन बाद फूल, 90 दिन में (फल), यही 200 ग्राम की एक-एक मिर्ची। प्रत्येक पौधे पर औसतन 5-6 मिर्चियां और वजन एक किलो से अधिक। औसत भाव 60 रूपए किलो। अधिक से अधिक 120 और कम से कम 25 रुपए किलो मिर्ची का भाव मिला। 10 माह के एक फसल चक्र में 60 क्विंटल शिमला मिर्च का उत्पादन। यह मिर्च सर्दियों में 15 दिन, बरसात में 10 दिन और गर्मियों में 5 दिन तक ताजी रहती हैं। ऐसा कभी नहीं अुआ कि उत्पादित मिर्च बिक्री से रह गई हो।
अपनी सोच से उत्साह से भरे इस किसान ने इस वर्ष कुछ और नायाब प्रयोग किए। उसने पॉली हाऊस में शिमला मिर्च आधी करदी और चौथाई हिस्से में बेल पर लगने वाले टमाटर तथा विशिष्ट् प्रकार की मिर्ची लगाई। धागों के सहारे टमाटर की बेलें 20-20 फीट चढ़ने के बाद अब 20 फीट और नीचे की तरफ रूख कर रही हैं और जगह-जगह बेलें टमाटरों की देशी किस्मों से अटीपटी है जो स्थानीय बाजार में अच्छे दामों बिकते हैं। यही नहीं नन्दलाल ने कोरिया की सब्जी जुकुनी और ब्राजील की ब्रोकली नाम की सब्जियों सहित बैंगनी रंग की पत्ता गोभी भी खेतों में लगाई है जिसकी उपज शिमला मिर्चियों के साथ पांच सितारा होटलों में जाती है। इस किसान ने सब्जियों के पेकिंग के लिए अलग से एक बड़ा तापमान नियंत्रित ‘पेक’ हाऊस बनाया है जहां तोड़ी गई सब्जियों की सफाई और पैकिंग होती है। किसी किसान के खेत पर जिले भर में अपनी तरह का यह पहला ‘पेक हाऊस’ है।
पॉली हाऊस के बाहर खुले खेतों में फलों, सब्जियों, जिन्स और चारे की खेती में वह केवल उम्दा और प्रामाणिक बीजों से फसल लेता है। इस समय दस बीघा में गेंहू के राज 4037, राज 3765, लोक1, चार बीघा में पायोनियर 42 नम्बर सरसों, तीन बीघा में आर आर डी 2052 जौ, डेड बीघा में जी 282 लहसुन और ऊटी लहसुन, तीन बीघा में रिजका, बरसीम और नेपीयर घास, और अभिनव सिन्जेटा, स्वीट सिन्जेटा कोर्न व बेबी कोर्न सीना ताने खड़े हैं। मौसमनुसार वह लौकी-तिरोही-करेला-भिण्डी-कद्दू, खीरा, तर ककड़ी, तरबूज आदि सब्जियां बखूबी उगाता है। आठ वेराइटीज किस्म वाला उम्दा सीताफल तीन बीघा बगीचे की गाथा भी न्यारी ही है। इन पौधों के बीच में लकदक पपीतों की फसल लहलहा रही है। और तो और अपनी खेती और जरूरतों के फलों व सब्जियों के लिए एक हाई टेक छोटी सी नर्सरी तैयार की गई है जिसमें किस्म-किस्म के फलों और सब्जियों की पौध शुद्ध वैज्ञानिक विधि से स्पेशल ट्रेज में तैयार हो रही है।
नन्दलाल का मानना है अकेला चना भाड़ नहीं झोंक सकता है। उसके तीन भाई-भामियां, मां-बाप और दो-एक खेतिहर सहयोगी इस तमाम कामों, पॉलीहऊस, डेयरी, गोबर गैस प्लाण्ट, दुधारू पशुओं की हेल्थ हाइजिन, खेत-खलिहानों तथा नर्सरी कामों को देखते और सम्भालते हैं। सभी भाईयों और 60 वर्षीय पिता ने भी जगह-जगह जाकर खेती के तौर-तरीकों का वैज्ञानिक प्रशिक्षण लिया है तो परिवार की महिलाएं न सोच में और न मेहनत में पुरूष किसानों से कम दिखलाई पड़ती हैं। सभी के बच्चे बेहतर स्कूलों में तालीम ले रहे हैं। डेयरी और खेती पूर्ण वैज्ञानिक तरीकों से हौसले के साथ साल-दर-साल नये-नये प्रभावी प्रयोगों के चलते कर रहे हैं। इन सबके लिए आधारभूत सुविधाओं का एक स्थान पर समायोजित करना और इन्टीग्रेटेड प्रयास की सोच व क्रियान्वयन इस किसान में है। सामान्यतः अन्यत्र नहीं दिखलाई पड़ती है। यहां खेती के संसाधनों का एकीकरण है, एक जगह जमाव है। पशुओं का वेस्ट मटेरियल खेत में और खेतों का घासफूस पशुओं के लिए सहज उपलब्ध है। फलों और जिंसों में देशी खाद की व्यापक उपलब्धता तथा गोबर गैस की स्लरी और भरपूर वर्मी कम्पोस्ट खाद तथा गायों के मूत्र से पौध सरंक्षण के प्रयोग से रासायनिक दवाओं और खादों का प्रयोग न्यूनतम हो गये हैं जिससे उपज गुणवत्ता वाली हो रही है। मात्र तीन साल की अवधि में वह ट्रेनी से ट्रेनर बन गया है। किसानी जत्थों के अवलोकन के लिए जैसे इनकी खेती ओब्जरवेट्री हो गई है।
वह अपनी थोड़ी-बहुत सफलता का श्रेय कृषि विज्ञान केन्द्र चित्तौड़गढ़ और उद्यान विभाग को देता हुआ बताता है कि उसने इस सबसे उत्साहित होकर पशुओं के लिए विशाल गोदाम भी बनाया गया है। डेयरी, पॉली हाऊस, पेक हाऊस, भूसा गोदामों का ज्यादातर ऋण चुकता हो चुका है और अच्छे उत्पादन और प्रयोगों के लिए फिर से ऋण लेते रहने भी उन्हें गुरेज नहीं। स्पष्ट है बेहतर उत्पादन के लिए समूचा परिवार आत्मविश्वास से सराबोर है।
नवाचारों के सुखद परिणामों से लबरेज नन्दलाल बताता हैं कि सरकारी और निजी क्षेत्र में चलने वाले प्रयोगों को देख-परख कर हमने सबसे पहले एक डेयरी लगाई जिसमें दो दर्जन से अधिक संकर, गिर गायें और मुर्रा भैंसे हैं जिनका औसतन 70-75 किलो दूध जो आमतौर पर 15 फेट का होता है, सरस डेयरी में जाता है। पशु मजे से कुट्टी, सरस का बांटा, खेत पर पैदा की जा रही नेपियर, बरसीम, मैथी, जई, ज्वार आदि उन्नत घास खाते हैं। पशुओं के लिए टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, पेट के कीड़े मारने पर तथा केलशियम ओर नमक आदि देने पर पूण ध्यान रहता है। खेती के लिए गोबर गैस से निकलने वाली स्लरी के अलावा बर्मी कम्पोस्ट खाद विशेषतौर से खेती के लिए तैयार की जाती है। अब पंप चलाने व अन्य कार्यों के लिए सोलर प्लाण्ट की तैयारी है। नन्दलाल के निजी प्रभाव से आसपास दहीखेड़ा, प्रतापपुरा, तुम्बड़िया, धौली, आकोडिया, दूधा खेड़ा गांवों में लगाए गए कई दर्जन गोबर गैस प्लाण्ट गांवों की दशा-दिशा बदले के लिए काफी हैं।
नटवर त्रिपाठी