आठ दिनी मीठे प्रवचन के चौथे दिन कहा आचार्य शांतिसागर ने
उदयपुर। आचार्य शान्तिसागर ने कहा कि जीवन में तीन बातें हमेशा याद रखनी चाहिये। चिता, चिन्ता और चिन्तन। चिता मुर्दे को जला देती है, चिन्ता जिंदा को जला देती है जबकि चिन्तन जिला देती है यानि चिन्तन से जीवन सुधर जाता है, जीना आ जाता है।
दिखावे के तौर पर व्याक्ति परिवार के साथ रहता है लेकिन वह उनके नहीं चिन्ता के साथ जीता है। वे अष्ठ दिवसीय मीठे प्रवचन की श्रृंखला के चौथे दिन नगर निगम प्रांगण में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।
किसको किसकी चिन्ता : आचार्य ने कहा कि दुनिया में चिन्ताएं भी कई तरह की होती है। अलग- अलग लोगों की चिन्ताएं भी अलग- अलग होती है जैसे नाविक को तूफान की, कन्जूस को मेहमान की, कायर को जान की, अमीर को शान की, वीरों को आन की, कमजोर को बलवान की, खिलाड़ी कारे मैदान की, बड़ों को सम्मान की, पायलट को विमान की, व्यापारी को नुकसान की जबकि गुरू- सन्त और भगवान को दुनिया की चिन्ता होती है। जो समय की कद्र नहीं करता है समय भी उसकी कद्र नहीं करता है।
आचार्य ने आज की युवा पीढ़ी के सन्दर्भ में कहा कि यह धीरे- धीरे धर्म-ध्यान से दूर होती जा रही है। समझ लेना जिस घर में के बच्चे धर्म- ध्यान से दूर होते जा रहे हैं, उनके माता- पिता का बुढ़ापा बिगडऩा तय है। क्योंकि संस्कार धर्म-ध्यान और धर्मसभाओं में ही मिलते हैं। इसलिए ईश्वर से दूर नहीं उसके पास आने की कोशिश करो।
लोग कहते हैं ईश्वर है कहां, वह दिखता क्यूं नहीं, ईश्वर देता है क्या है? आचार्यश्री ने कहा कि जिस तरह दूध में मक्खन नहीं दिख पाता, उसे प्राप्त करने के लिए कई सारे उपक्रम करने पड़ते हैं, उसी प्रकार ईश्वर तो कण- कण में हैं लेकिन देखने के लिए भक्ति भाव में तपना पड़ता है। दुनिया में जो कुछ भी है वह ईश्वर की देन हैं। जब ईश्वर देता है तो रंक को राजा बना देता है और जब लेता है तो राजा को भी रंक बना देता है।
बुधवार को चित्र अनावरण, पाद प्रक्षालन, मंगल दीप प्रज्वलन, मंगल कलश स्थापन के पुण्यार्जक शकुन्तलादेवी धर्मपत्नी कल्याणमल कारवा, मांगीलाल देवड़ा नागदा, एन. पी. कोटडिय़ा थे। अतिथियों में जिला प्रमुख मधु मेहता, पूर्व एडीशनल एसपी भारतसिंह, गुणवन्तसिंह झाला, राज कुमार फत्तावत, जसवन्त गन्ना तथा दिनेश मेहता थे। धर्मसभा के श्रेष्ठीजनों में सेठ शान्तिलाल नागदा, नाथूलाल खलूडिया, चन्दनलाल छाप्या, देवेन्द्र छाप्या, सुमतिलाल दुदावत, जनकराज सोनी, सुरेश पद्मावत, अशोक शाह आदि थे। धर्मसभा का आगाज मंगलाचरण से हुआ। इस दौरान विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी हुई।