पांचवे दिन उमडा़ जनसैलाब, शाम को जमा मुशायरा गंगाजल से मैं वजू कर लूं, तू जम-जम में नहा…
चित्तौड़गढ़। अलौकिक अनुराग में डूबे व्यासपीठ के केन्द्रीय भाव से मानस मीरा के एक एक शब्द संभालने, सहेजने और समां लेने को आतुर व स्वर लहरियों का सहगायन कर लेने की बेसब्री, अनुरोध प्रेम का, त्याग अविश्वास और क्रोध का मुरारी बापू की मीरा की नगरी चित्तौड में रामकथा के पांचवे दिन यही भाव साकार हुआ। कथा के पांचवे दिन सुबह आठ बजें से ही जन समुदाय का महारैला उमड़ पड़ा।
रामकथा के पांचवे दिन व्यासपीठ से श्रोताओं के जनसैलाब को आशीर्वचन प्रदत्त करते हुए मुरारी बापू ने कहा कि भक्ति नारी रूपा होने के कारण जैसे स्त्री के शरीर पर आभूषण शोभा देते हैं ठीक उसी प्रकार भक्ति भी शोभा देती है। अलंकार की संख्या क्षमता के आधार पर होती है। जिसकी जितनी क्षमता होती है वह उतने ही अलंकार धारण करती है। भक्ति रूपी नारी में 16 श्रृंगार की क्षमता का प्रश्नल ही नहीं उठता। श्रृंगार ग्रंथों में 16 अलंकारों की चर्चा की गई है तथा रामचरितमानस में नव सप्त यानि 16 श्रृंगार की चर्चा की गई है।
बापू ने कहा कि धर्म व नीति शास्त्र आदमी के जन्म को और आध्यात्मिकता मृत्यु को सुधार देती है। हरि इच्छा सब कुछ करती है और सबसे श्रेश्ठ इच्छा गुरू की होती है। गुरू जो लिखे और कहे वही मार्ग है। शिष्यी के पास बुद्धि होती है और सदगुरू के पास कुंजी होती है। साधू कुंजी वाला होता है क्योंकि जो स्वयं बंधन मुक्त हो, उसे स्वयं को खोलने की जरूरत नही होती है। मानव जीवन को असमंजसता के समय चाबी वालों की अत्यन्त आवश्यरकता होती है। दहशत से कुछ नही होता है, मेहनत से कुछ कुछ होता है और रहमत से सब कुछ होता है। शिष्या के पास बाण और गुरु के पास वाणी होती है। महाभारत का युद्ध कृष्ण। के बाण से नहीं बल्कि गोविन्द की वाणी से जीता। हमारा गुरु जो कहे वही हमारा मार्ग है। गुरु बार-बार हमें अवसर प्रदान करता है और कभी भी शिष्यु को सामान्य नहीं समझता। ज्ञान कभी भी पक्षपात नहीं कर सकता है।
भक्ति के सात श्रृंगार : मीरा भक्ति का अवतार है जिसके पास ज्ञान की मशाल, प्रेम की ज्योति, वैराग्य की धूणी है और यदि इसे मानस की भाषा में ले तो मीरा के पास ज्ञान का दीपक है, भक्ति की मणि है और वैराग्य की विभूति है। जमाना भीड़ चाहता है और साधना एकांत चाहती है। माया भक्ति रूपी नारी पर कभी प्रभाव नहीं डाल सकती है। सादगी अपने आप में सर्वोत्तम सौन्दर्य है।
भक्ति कभी भी बूढ़ी नही होती है जबकि ज्ञान, वैराग्य बुढ़े हो जाते है और इन्हे सचेत रखना है तो भगवान की भक्ति करो। भक्ति के सात श्रृंगार राम प्रताप, नाम प्रताप, महेश प्रताप, भूज प्रताप, तेज प्रताप, भजन प्रताप, भक्ति प्रताप है। जैसे पीड़ा सबकी एक होती है ठीक उसी प्रकार पीर भी सबका एक होता है। मीरा ने अपने भजनों में दर्द लिया और दर्द पांच प्रकार के देह दर्द, दिमाग का दर्द, दिल का दर्द, दुनिया का दर्द एवं छोटे-बड़े का दर्द होते है। चाकरी में दर्शन पाऊ, सिमरण पाऊ खरची मीरा के पदों में कृष्ण के प्रति समर्पण इस रूप में देखने को मिलता है। रामकथा के पांचवे दिन कथा के समापन पर बापू प्रभु प्रसाद के पाण्डाल में भी पहुंचे।
शायरी तो सिर्फ बहाना : कथा के दौरान बापू कभी शायरी, कभी गीत और कभी गजल गुनगुनाते रहे। बापू ने स्पष्टप भी किया कि ‘शायरी तो सिर्फ बहाना है, असली मकसद तो हरि को पाना हैं।’ उन्होंने कहा कि यहां सब कुछ चलता है, कोई परहेज नही है। मैं सब कुछ कहता हूं बस भाव श्री हरि का होना चाहिए। इस दौरान बापू ने राजस्थानी गीत हैलो सुणोंजी रामा पीर… भी सुनाया।
विदेशी पर्यटकों ने किया श्रवण : मुरारी बापू की रामकथा के पांचवे दिन विदेशी पर्यटकों ने भी रामकथा का श्रवण किया। पेरिस से आये पर्यटकों का एक दल चित्रकूट धाम स्थित कथा स्थल पर पहुंचा तथा संपूर्ण कथा के दौरान कथा का श्रवण किया।
देर शाम तक जमा मुशायरे का आयोजन
चित्तौड़गढ़। संत कृपा सनातन संस्थान द्वारा आयोजित साध्य उत्सव की तीसरी षाम को चित्रकूट धाम इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित मुशायरे को सुनने अपार जनसैलाब उमडा़। मुषायरे ने रामकथा के मंच पर साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की। मुशायरे को सुनने हर वर्ग व हर जाति की उपस्थिति रही जिसमें ख्यातनाम शायरों एवं गजल गायकों ने शब्दों के यज्ञ में अपनी आहुतियां दी।
कार्यक्रम का आगाज करते हुए मशहूर शायर महकश अजमेरी ने ‘ले लो मालिक के प्यारे जो दुआ देते है, ये फकीरों को भी सुल्तान बना देते है’ के साथ किया। अजमेरी ने कहा कि यह फख्र की बात है कि आज बापू जैसी शख्सियत के सान्निध्य में इस मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है। ‘कर लिया है तलाश जब से तुझे सारी दुनिया मेरी तलाश में है…’’, ‘‘ इस जमीं पर है शहीदों के लहू की खुशबू, यह जमीं मीरा की भक्ति का है पावन स्थल, शक्ति भक्ति के मंजर में अब भी इस मिट्टी का बना रखा है काजल…’ ‘गंगाजल से मैं वजू कर लू, तू जम-जम में नहा, फिर लडे़ उनसे जो है हमें लडा़ने वाला’ पर खूब दाद पाई। अजमेरी ने मानवीय मूल्यों के हास पर ‘जहां मेहमान सा लाया गया है, उसी घर में वो ठुकराया गया है’’ भी सुनाया। मुशायरे में राष्ट्रीाय कवि रमेश शर्मा ने रिश्तों की संवेदनाओं पर अपनी चिर परिचित रचनायें सुनाई। उन्होंने ‘‘मकई की मोटी मोटी रोटियां, गोल कैसे बन जाती है…’’, बिटिया की मां से शिकायत पर आधारित ‘‘सांझी धूप मुझसे रखते मुझको भी चलने देते, कच्ची पक्की डगर पर संग संग कुछ दिन चलने देते…’ सुनाई। इंदौर से आये इशाक असर ने ‘आतिश नही ये आग है, इसका कहां जवाब है…’, ‘ये इश्कस की शराब है पीकर तो देखिये…’, उदयपुर से आये प्रेम भण्डारी ने ‘‘मेरी आंखों को सदाकत का नगीना देना, मेरे माथे पर मशक्कत का पसीना देना…’, ‘शुभ मुहूर्त और शुभ घड़ी देखे मंगल रोज, बिन मुर्हुत पैदा हुए दुनिया के सब लोग…’ ‘दिल है रहमों कर लब पे दुआ रखी है, पुरखों की दौलत को अब भी बचा रखी है…’’ दिल्ली से आयें षकील जमाली ने ‘‘सफर के लौट जाना चाहता हूं परिन्दा आशियाना चाहता हैं, कोई स्कूल की घंटी बजा दे, यह बच्चा मुस्कुराना चाहता है…’’, ‘‘ये जो खुष होने का दावा करते है दिन में चार दफा समझौता करते है, छोटी मोटी चोटे सबको लगती है लेकिन हम अहसास ज्यादा करते है…’ सुनाया। इसी के साथ शीन कॉफ निजाम ने भी देर तक श्रोताओं को शायराना अंदाज से लोगों को बांधे रखा।
मंच का संचालन कर रहे जोधपुर के दिनेश सिंदल ने ‘सुर्ख फूलों में किसी त्यौहार को जिन्दा किया, एक बिजली ने सभी के प्यार को जिन्दा किया.’, ‘सब पेड़ फल वाले गिराये जायेंगे, एक है निशाना और नजर में तू है… सुनाया। पुस्तक का विमोचन : जोधपुर के दिनेश सिन्दल की पुस्तक ‘चन्द्रमुखी तुम कहां हो’ का शुक्रवार शाम को मुशायरे के प्रारंभ में मुरारी बापू ने विमोचन किया।