उदयपुर। श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि ने कहा कि मानव ही नहीं विश्व की समस्त आत्माओं का स्वरुप मूलत: परमात्मा स्वरूप ही है। पशु-पक्षी सहित अन्य प्राणियों में वह इतना गहरा छुपा हुआ है कि उसे प्राकट्य नहीं कर सकते।
वे आज पंचायती नोहरे में चातुर्मासिक प्रवचन के तहत आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मानव एक मात्र ऐसा प्राणी है जो अपने चैतन्य में स्थित परमात्मा भाव को बहुत कुछ अंशो में जागृत कर सकता है। धर्म का भी मुख्य यही कार्य हैं। स्वयं में स्थित परमात्मा को जागृत करने हेतु धर्म मात्र एक साधन स्वरूप हैं। धर्म से जुड़ी हुई सारी क्रियाओं का लक्ष्य भी यही हैं। हमें धर्म को इसी अर्थ में समझना चाहिये।
उन्होंने कहा कि सभी धर्म दर्शन की धुरी तो आत्मा ही है। आत्मा ऐसा द्रव्य है जिसमें चैतन्य हैं। विश्व में पदार्थ और भी है लेकिन उनमें चैतन्य भाव नहीं हैं। समाज परिवार और राष्ट्र का निर्माण मानव से ही होता हैं। मानव मूर्त है शेष सभी अमूर्त है। अत: मानव में परिवर्तन आएगा तो वहीं परिवर्तन समाज और राष्ट्र में भी आएगा। उन्होंने बताया कि विनोबा जी ने सर्वोदय जैसा एक प्यारा सा शब्द दिया था। इसका अर्थ सभी का उदय, आनंद, मंगल, लेकिन एक तथ्य यह भी समझना चाहिये कि आत्मोदय बिना सर्वोदय कैसा होगा। मानव स्वयं अपनी चेतना के स्तर पर अभ्युदय साधे स्वयं उत्तम और श्रेष्ठ भावनाओं से परिपूर्ण बन कर रहेद्य इस तरह स्वयं पर मंगल साधे तभी तो सर्वोदय भी सधेगा।
मुनिश्री ने स्पष्ट किया कि आज सबसे ज्यादा दूषित मानव का मन हैं। उसमे इष्र्याएं द्वेष, क्रोध और अशिष्टता भरी हुई हैं। सभी पाप वही से प्रारम्भ होते रहे हैं। आत्मोदय का अर्थ ही यही है कि व्यक्ति स्वयं अपनी मानसकिता की पवित्र बनायेंद्य अंतिम सत्य तो मानव की चेतना ही है और उसकी सर्जन क्षमता उसके मन के आधार पर चलती हैं। विश्व में जितने महापुरुष हुए हैं। वे मानसिक उदारता से महान बने है, सभा को विकसित महाश्रमण प्रवर्तक मदन मुनि ने भी संबोधित किया। दिल्ली तथा सूरत से विभिन्न संघों के हुए पदाधिकारियों का स्वागत मंत्री एडवोकेट रोशनलाल जैन ने किया। कार्यक्रम का संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बडा़ला ने किया।