चातुर्मास प्रवचन
उदयपुर। हिरणमगरी सेक्टर 4 स्थित शांतिनाथ सोमचंद्र आराधना भवन में विराजित मुनि प्रवर हितरति विजय मसा ने प्रवचनरूपी प्रायोगिक प्रशिक्षण में कहा कि किसी मंदिर में प्रवेश करते समय तीन बार नि:सही शब्द का उच्चारण करने का अर्थ है, मैं संसार के विचार, वचन और वर्तन का त्याग कर प्रभु के सामने उपस्थित हूं।
मस्तक पर तिलक लगाने का अर्थ प्रभु के वचनों को शिरोधार्य करना है। प्रभु पूजा के प्रथम चरण में प्रभु का दूध व शुद्ध जल से अभिषेक कर प्रतिमा को स्वच्छ व निर्मल करते हुए यह भाव होना चाहिए कि मैं इसके द्वारा अपनी आत्मा की शुद्धि कर रहा हूं। प्रतिमा के प्रक्षाल के बाद अंग लुंछण कर विलेपन पूजा (चंदन, केसर, बरास, कस्तूरी, अंबर आदि सुगंधित द्रव्यों के मिश्रण) करने से पूजन करने वाले के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण एवं कर्मों की आग से झुलसे प्राणी में शीतलता का भाव जाग्रत होना चाहिए। प्रभु की अष्ट प्रकारी पूजन में प्रक्षाल व विलेपन के बाद पुष्प पूजा, सद्गुणों से सुगंधित जीवन व किसी को भी पुष्प की तरह पीड़ा न देने का भाव, धूप पूजा से आत्मा के धुएं की तरह उध्र्वगामी होने, जीवन को सद्गुणों से सुवासित करने का भाव, दीपक पूजन में स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में प्रकाश भरने का भाव, अक्षत पूजन में जन्म मरण के चक्र से दूर होने का भाव, नैवेद्य में क्षुधा निवारण का भाव व फल पूजन में मोक्षफल प्राप्ति एवं जीवन में सफलता का भाव होना चाहिए। द्रव्य पूजा के पश्चात् प्रभु की भाव पूजा द्वारा परमात्मा से अपनी आत्मा के जुड़ाव का प्रयत्न करना चाहिए। संघ अध्यक्ष सुशील बांठिया ने बताया कि परमात्मा की पूजा अर्चना विधि में 350 श्रावक श्राविकाओं ने हिस्सा लिया।
राष्ट्र सुरक्षित तो धर्म व संस्कृति सुरक्षित
श्रमण संघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि राष्ट्र धर्म, धर्म का एक अंग है। राष्ट्र सुरक्षित है तो सारे धर्म और संस्कृति भी सुरक्षित रह सकते है। ये मंदिर, स्थानक, गुरूद्वारे, साधु-संत, शास्त्र सिद्धान्त सभी सुरक्षित राष्ट्र में पनपते हैं। वे पंचायती नोहरे में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होनें कहा कि राष्ट्र के प्रति उतना ही सजग रहना है जितना कि धर्म और संस्कारों के प्रति। सभी नागरिकों का कर्तव्य हैं कि वे राष्ट्र रक्षा के हित में आपने आपको समर्पित करे। वाणी मानव कि स्वाधीन विशेषता है, इस पर किसी का बन्धन नही होता। वह चाहे तो अपनी वाणी को अमृत का स्वरूप प्रदान करे और वह चाहे तो वाणी से विष ही घोल दे। इसलिये वाणी के सयंम के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रशिक्षित होना पड़ेगा। कैसे बोले? यह कोई और नही बताएगा। स्वयं को ही निर्णय करता होता है कि क्या बोले और कैसे बोले। श्रमण मुनि ने भी प्रवचन सभा को सम्बोधित किया। संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।