उदयपुर। आचार्य महाश्रमण के सलाहकार मंडल बहुश्रुत परिषद् की सदस्या विदुषी साध्वी कनकश्रीजी ने कहा कि स्वाध्याय में एक विशिष्टता है। स्वाध्यायी व्यक्ति दूसरों की आलोचना से, बुरे विचारों से खुद को बचा सकता है। स्वाध्याय करते -करते व्यक्ति ध्यान की सिद्धि में प्रवेश कर जाता है जिससे आत्मा निर्मल हो जाती है।
वे शनिवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण के दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने स्वाध्याय की प्रेरणा दी। स्वाध्याय से बुद्धि की धार पैनी होती है। अगर आपके पास धार्मिक सम्पदा नहीं है तो आप सदैव गरीब ही रहेंगे। जैन धर्म का सिद्धान्त है कि प्रत्येक आत्मा अपूर्ण से पूर्ण, असत्य से सत्य होकर आत्मा से परमात्मा बन सकती है।
साध्वीश्री कनकश्रीजी ने श्रावक-श्राविकाओं को भगवान महावीर के जन्म लेने के पश्चात् आध्यात्मिक विकास, चेतना विकास, सम्यकत्व का प्रकाश और भगवान महावीर के परमात्मा को प्राप्त करने सम्बन्धी प्रसंगों की जानकारी दी।
तेरापंथ सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि पर्युषण के तीसरे दिन साध्वीश्री कनकश्रीजी के सानिध्य में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं को अभिनव सामायिक के प्रयोग बताए जाएंगे। इससे पूर्व आचार्य तुलसी के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री का पावर पाइंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से प्रदर्शन किया जाएगा। आरंभ में नमस्कार महामंत्र का जाप हुआ एवं मंगला चरण चन्द्रा बोहरा व बहनों ने प्रस्तुत किया।
इससे पूर्व शुक्रवार देर शाम तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आयोजित एकल गीत प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। संयोजक विनोद मांडोत ने बताया कि इस अवसर पर दो वर्गों में हुई एकल गीत प्रतियोगिता में कनिष्ठ वर्ग में प्रेक्षा बोहरा, जया फत्तावत, प्रियल मेहता तथा वरिष्ठ वर्ग में रवि बोहरा, मोनिका कोठारी तथा रिची सिंघवी क्रमश: प्रथम, द्वितीय व तृतीय रहे। स्वागत परिषद के अध्यक्ष अभिषेक पोखरना ने किया। आभार सोहन मेहता ने व्यक्त किया। प्रतियोगिता के प्रायोजक लक्ष्मण भावना शाह थे।
साम्प्रदायिकता की परिधि में नहीं ‘पर्युषण’
उदयपुर। श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण की आराधना साधना के पीछे जो दृष्टिकोण है वे सार्वभौम है। उन्हें मात्र जैन समाज तक सीमित रखना उचित नही। यह पर्व में कहीं भी साम्प्रदायिकता की परिधि नहीं है और न हीं कोई साम्प्रदायिक विशेष क्रिया काण्ड़ है। यह आत्म जागरण और जीवन शुद्धि का पर्व है। विश्वमैत्री का स्वर इसकी सम्पूर्ण आराधना में निहित है।
वे पंचायती नोहरे में आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन यापन करते हुए अनेक कलुषताएं जीवन में प्रवेश कर जाती है, उनका निराकरण कर जीवन को एक स्वच्छ जीवन का स्वरूप प्रदान करना ही पर्युषण का लक्ष्य है। पर्वाधिराज अष्ट दिवसीय साधना का पर्व है। अष्ट दिवसीय आराधना में श्रीावक को नियमित रूप से असंयम मुक्ति (अन्त: जागृति ) दिवस,बन्धन मुक्ति (आत्म स्वातन्त्र्य) दिवस,गुप्ति आराधना दिवस,कषाय मुक्ति एवं सद्ध्यान आराधना दिवस, समिति आराधना दिवस, अनुकम्पा (करूणा) दिवस, भय मुक्ति (निर्भयता) दिवस,आलोचना (आत्म शुद्धि) दिवस मनाते हुए इन दिनों में प्रात: 6 बजे अविराम नमस्कार महामंत्र का जाप, प्रात: साढ़े आठ बजे श्री मद् अन्त: कृद्दशांग सूत्र स्वाध्याय का वाचन, प्रात: 10 बजे तद् दिवसीय विषयाधारित प्रवचन करें, दोपहर ढाई बजे पुच्छी सुणं (वीर स्तुति) का सामुहिक पाठ करें, दोपहर 3 बजे महावीर जीवन संक्षिप्त विवेचन एवं संाय साढ़े छ: बजे सामुहिक प्रतिक्रमण करें। शुभारम्भ महाश्रमण मेवाड़ प्रवर्तक मदन मुनि ने किया तथा संचालन श्रावक संघ के अध्यक्ष वीरेन्द्र डांगी व मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।