उदयपुर। जन संस्कृति मंच एवं उदयपुर फिल्म सोसायटी के संयुक्त तत्वारवधान में तीन दिवसीय दूसरा उदयपुर फिल्मोत्सव 5 सितम्बर से महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के सभागार में शुरू होगा।
उदयपुर फिल्म सोसायटी के संयोजक शैलेन्द्र प्रताप सिंह भाटी ने बताया कि इस बार फिल्मोत्सव तीन दिन का रखा गया है। प्रमुख आकर्षण में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त मराठी फीचर फिल्म ‘फंड्री’, अंतरराष्ट्रीय स्टार पर चर्चित-प्रशंसित दस्तावेजी फिल्म ‘रेड एन्ट ड्रीम’/‘माटी के लाल’ और सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक रजत कपूर की बनायी फीचर फिल्म ‘आखों देखी’ शामिल है।
फिल्म उत्सव सुप्रसिद्ध चित्रकार जैनुल आबेदिन (जिनका यह जन्म शताब्दी वर्ष है), सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक-लेखक और पटकथा लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास (जिनका भी यह जन्म शताब्दी वर्ष है ) अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल और बांग्ला के कवि नबारुण भट्टाचार्य (ये दोनों हाल ही में हमें छोड़ गए) को समर्पित है. चालीस के दशक में पड़े बंगाल के भीषण अकाल पर जैनुल आबेदिन के बनाए कालजयी चित्रों की शृंखला भी प्रदर्शित की जायेगी और प्रसिद्द चित्रकार अशोक भौमिक, जैनुल आबेदीन के बनाए चित्रों के ऐतिहासिक अवदान पर ‘अकाल की कला’ शीर्षक से एक दृश्यात्मक प्रस्तुति भी देंगे। ज़ोहरा सहगल पर रंगकर्मी एमके रैना और अनन्त रैना द्वारा बनाई गयी दस्तावेजी फिल्म ‘जोहरा सहगल’ भी प्रदर्शित की जायेगी। सहगल के सौ साल का होने पर बनाई गई इस फिल्म में जोहरा सहगल की ज़िंदगी की यादें, उनकी दुर्लभ तस्वीरें, उनका बचपन-जवानी, उदय शंकर का ट्रूप, पृथ्वी थियेटर, परिवार और फ़िल्में सबको समेटते हुए एक यादगार ज़िंदगी की यादगार तस्वीर उकेरी गई है।
ख्वाजा अहमद अब्बास की सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली फिल्म ‘धरती के लाल’ ( 1946 ई. ) भी इस अवसर पर दिखाई जायेगी. ‘धरती के लाल’ उन फिल्मों में से थी जिन्होंने भारतीय यथार्थवादी सिनेमा की नींव डाली. यह इन्डियन पीपुल्स थियेटर्स एसोसियेशन ( IPTA) का एकमात्र औपचारिक निर्माण है . यह ख्वाजा अहमद अब्बास की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी. बलराज साहनी – दमयंती साहनी दम्पति और बांग्ला थियेटर के नामचीन शम्भू मित्रा – तृप्ति मित्रा दम्पति ने इसमें अभिनय किया था. यह जोहरा सहगल की भी बतौर अभिनेता पहली फिल्म थी. फिल्म में संगीत पंडित रविशंकर ने दिया था और फिल्म के गीत अली सरदार जाफरी, वामिक जौनपुरी, प्रेम धवन और नेमिचंद्र जैन ने लिखे थे. यह फिल्म बिजोन भट्टाचार्य के दो नाटकों ‘नबान्न’ और ‘जबानबंदी’ एवं कृशन चंदर की कहानी ‘अन्नदाता’ से प्रेरित थी. यह एक दुर्लभ और अप्राप्य फिल्म है जो भारत में गिने चुने लोगों के व्यक्तिगत संग्रह में ही है। समारोह में ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ शीर्षक से नबारुण भटाचार्य की कविताओं की प्रस्तुति उदयपुर फिल्म सोसाइटी के सदस्यों द्वारा दी जाएगी।