विद्यापीठ में हिन्दी सप्ताह के दौरान व्याख्यानमाला
उदयपुर। किसी भी राष्ट्र का गौरव उसकी राष्ट्रभाषा से जुड़ा हुआ है। राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए राष्ट्रभाषा की महत्ती आवश्यकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारत को एक राष्ट्रभाषा से सुशोभित करने की बात आई तो इस बहुभाषी देश को कुछ कटु अनुभवों का सामना करना पड़ा।
जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संगठक माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में शुक्रवार को आयोजित हिन्दी सप्ताह के दौरान प्रसिद्ध साहित्यकार एवं मुख्य वक्ता प्रो. माधव हाड़ा ने बताया कि संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन कर दिया लेकिन विडम्बना यह है कि जो भाषा भारतीय स्वतत्रंता संग्राम में राष्ट्र चेतना का प्रतीक थी, वह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजभाषा बन गयी है और राजभाषा अधिनियम के बाद मात्र सम्पर्क भाषा के रूप में जानी जाने लगी है। आज तक हम इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिला पाए। भाषा अपना रास्ता खुद बना लेती है।
मुख्य अतिथि रजिस्ट्रार प्रो. सी. पी. अग्रवाल ने बताया कि जहां इस राष्ट्रभाषा हिन्दी की उपेक्षा कर अंग्रेजी का दासता स्वीकार कर रहे हैं वहीं विश्व के अनेक देश वेश्वीकरण के इस युग में भारत में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार एवं अपने आर्थिक महत्व को ध्यान में रखकर अपने लाभ के लिए एवं अपने उत्पादों को भारत में भेजने के लिए अपने यहां के अध्यययन एवं अध्यापन की व्यवस्था कर रहे हैं। अध्यक्षता करते हुए कला संकाय की डीन प्रो. सुमन पामेचा ने बताया कि राष्ट्रभाषा हिन्दी हमारे स्वाभिमान की भाषा है हिन्दी हमारी प्राण वायु व जीवनरस है । विशिष्ठ अतिथि प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया थे। महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. मलय पानेरी ने बताया कि भाषा संस्कृति से ही राष्ट्र ऊर्जावान होता है। संस्कृति राष्ट्र का स्वरूप है हिन्दी के साथ राष्ट्र की अन्य भाषा का भी सम्मान होना चाहिए। इस आयोजन पर छात्रों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। संचालन डॉ. राजेश शर्मा ने किया। धन्यवाद डॉ. ममता पानेरी ने ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रो. सुनिता सिंह, प्रो. प्रदीप पंजाबी, प्रो. आर.पी. नरानीवाल व डॉ. पंकज रावल उपस्थित थे।