तीन दिवसीय राजस्थानी नाट्य समारोह
उदयपुर। शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में आयोजित तीन दिवसीय राजस्थानी नाट्य समारोह के दूसरे दिन मंचित नाटक ‘‘भोलो भेरू’’ में भोले और चालाक मित्रों की लोक कथा का मंचन रोचक अंदाज में किया गया जिनके विवाद को सुलझानें के लिये भेरू की शरण लेनी पड़ी। तीन दिवसीय नाट्योत्सव के समापन पर रविवार शाम नाटक ‘‘सफेद जवारा’’ का मंचन होगा।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र तथा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय ‘‘राजस्थानी नाट्य समारोह’’ के अंतर्गत शनिवार को स्व. निर्मोही व्यास की कथा पर आधारित एवं सुधेश व्यास द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘भोलो भेरू’’ का मंचन अनुराग कला केन्द्र के रंगकर्मियों द्वारा किया गया। नाटक का कथानक कालिया और भेरिया नामक दो चरित्रों पर केन्द्रित था जो स्वभाव से एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं। भेरिया जहां स्वभाव से भोला व मासूम है वहीं कालिया एक चालाक व चतुर। गांव में भेरिया भोलेपन के चलते एक आदमी का कर्ज उतारने का वचन देता है। इसके बाद वह रूपये कमाने के लिये अपने दोस्त कालिया के साथ शहर निकल जाता है। शहर में कठपुतली प्रदर्शन कर कर्ज उतारने लायक पैसा इकट्ठा कर लेता है तथा दोनों वापस गांव लौटते हैं। रास्ते में एक जगह विश्राम के लिये रूकते हैं तो रूपये सरक्षित रखने के लिये रूपयों का पीपा जमीन में गाड़ देते हैं। किन्तु सुबह उठने पर रूपयों का पीपा गायब पाते हैं और दोनो एक दूसरे पर चोरी का शक करते हुए झगड़ पड़ते हैं।
गांव लौटकर मान्यता अनुसार दानों भेरू के मंदिर में न्याय की गुहार लगाते हैं और तब भेरू उनके राज को पर्दाफाश करते हैं। नाटक समाज में रहने वाले अच्छे और बुरे लोगों के प्रति सावचेत करने के साथ-साथ आस्थाओं और परंपराओं के प्रति जागृति पैदा करता है। कलाकारों में भेरिया की भूमिका में सुनील जोशी व कालिया के किरदार में दिनेश रंग का अभिनय उत्कृष्ट बन सका। वहीं भोपा के रूप में नवल किशोर व्यास व भोपी के रूप में भगवती स्वामी का अभिनय दर्शकों द्वारा पसंद किया गया। नाटक में इसके अलावा पुजारी-अशोक व्यास, कानिये का बाप-सुरेन्द्र स्वामी, ग्रामीण विकास शर्मा, गुंडा व डुंगरियो-उत्तम सिंह, गूंगा-ठाकुरदास स्वामी का अभिनय सराहा गया। नाटक का संगीत राजेश झुंझ का था प्रकाश संयोजन राजशेखर शर्मा तथा वेशभूषा सुनील पडियार की थी।