राजस्थान विद्यापीठ के अंग्रेजी विभाग की ओर से विस्तार व्याख्यान
उदयपुर। वर्तमान वैश्वीकरण सूचना प्रौद्योगिकी के कारण अधिक तेजी से फैला व इसके परिणाम स्वरूप न सिर्फ राष्ट्रों के मध्य नए समीकरण बने अपितु परिवारों की संरचना पर भी असर पड़ा। वैश्वीकरण प्रभाव से स्थानीय भाषाओं पर संकट बढ़ा है व स्वयं अग्रेजी भाषा में भी अनेक परिर्वतन आए है।
ये विचार प्रो. एन.कृष्णास्वामी ने सोमवार को राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग की ओर माणिक्य लाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय में आयोजित विस्तार व्याख्यान में व्यक्त किये। उन्हों्ने कहा कि वैश्वीकरण वर्तमान स्वरूप में महज पश्चिम का अंधानुकरण व स्थानीय देशज संसाधनों पर पूंजीवादी शक्तियों का एकाधिकार है। वैश्वीकरण के विश्व में अनेक दौर आए। चीन व दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म का प्रसार, यूरोपीय उपनिवेशवाद, विश्वयुद्धों के बाद अमरीकी व रूसी विस्तारवाद तथा अंतिम दौर में सोवियत संघ पतन के बाद अमरीकी साम्राज्यवाद।
प्रो. कृष्णस्वामी ने कहा कि अमरीकी विस्तारवाद के कारण ही इस्लामिक राष्ट्रों में हिंसक प्रतिरोध करने वाले संगठनों की संख्या बढ़ी हे। धार्मिक कठमुल्लावाद वैश्वीकरण का सही जवाब नहीं हो सकता। देशज अस्मिताओं की रक्षा व आधुनिक तकनीक के समन्वयक से ही वैश्वीकरण का मुकाबला किया जा सकता है। पूरे विश्व में एक ही भाषा व राष्ट्रीयता की कल्पना को सिरे से खारिज करते हुए प्रो. कृष्णास्वामी ने कहा कि हजारों रंग-बिरंगे फूलों से ही बगिया सुन्दर बनती है, एक ही रंग के फूलों से नहीं। इससे पूर्व विषय प्रवेश के रूप में अपने विचार रखते हुए प्रो. हेमेद्र चण्डालिया ने कहा कि वैश्वीकरण का अर्थ ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ नहीं है। यह तो कुटुम्ब का विघटन करने वाला व संबंधों को बाजारीकृत कर देने वाला विचार है । उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के प्रयोग से वैश्वीकरण की निर्णायक शक्तियों ने सारे विश्व के संसाधनों का कब्जा करने का काम किया है। देशज व स्थानीय भाषाओं, संस्कृतियों व जीवन मूल्यों का वैश्वीकरण विस्थापित कर दिया है।
प्रारंभ में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. मुक्ता शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया। अध्यक्षता करते हुए सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकाय की अधिष्ठाता प्रो. सुमन पामेचा ने कहा कि वैश्वीकरण में भाषाओं के परिवर्तनों पर विचार करना अत्यन्त रोचक है। वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रो. सी.पी. अग्रवाल ने कहा कि अंग्रेजी विश्व व्यापार व वाणिज्य भाषा है। इसके माध्यम से ज्ञान के नए वातायन खुलते हैं। कार्यक्रम में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के के प्रो. प्रदीप त्रिखा, प्रो. नफीसा हातिमी, सिंघानिया विश्वविद्यालय की डॉ. शिबानी बनर्जी, डॉ. मानोबी बोस टैगोर, जैन विश्वभारती, लाडनू के डॉ. संजय गोयल, डॉ. मोनिका आनन्द, डॉ. रेखा विारी, श्वेता माहेश्वरी, डॉ. दिग्विजय पण्ड्या, सारिका गुर्जर आदि उपिस्थत थे। कार्यक्रम का संचालन मेहजुबीन सादड़ीवाला ने किया।