कल सूर्योदय को अर्घ्यभ के साथ पूरा होगा अनुष्ठान
उदयपुर। उदयपुर में भी डाला छठ का पर्व उत्साहपूर्वक मनाया गया। अस्ता चलगामी भगवान भास्करर को अर्घ्ये दिया गया। इससे पूर्व सभी व्रती घाटों पर पहुंच गए। मान्यता है कि अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अघ्र्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है।
सूर्यदेव की उपासना का वैशाली में मनाया जाने वाला डाला छठ का पर्व अब सर्वमान्य हो गया है। या यूं कहा जाए कि बिहार के लोग अब सभी जगह बस गए हैं, इसलिए यह पर्व भी सभी जगह मनाया जाने लगा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं।
डूबते सूर्य को दिया गया अर्घ्य
नहाय-खाय के दिन दो समय और खरना के दिन एक समय प्रसाद ग्रहण करने के तीसरे दिन 36 घंटे का व्रत शुरू होता है। इस दिन नए कपड़े पहन कर व्रती भगवान भास्कर को अर्घ्यग देने के लिए प्रसाद तैयार करते हैं. सुबह से ठेकुआ, चावल के लडुआ आदि बनाये जाते हैं। प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर तैयार होगा. प्रसाद बनाने के बाद छठ की डाली सजाई जाती है।
उगते सूर्य को अर्घ देकर अनुष्ठान पूर्ण
कार्तिक शुक्ल सप्तमी यानी गुरुवार को उगते सूर्य को अर्घ्यक दिया जाएगा. तीन मिनट के सूर्योदय का इस दिन काफी महत्व होता है. सूर्य दर्शन के बाद व्रती पहले भगवान भास्कर की पूजा करते हैं. उसके बाद दोबारा तमाम प्रसाद का अर्घ्यप दिया जाता है. इसके बाद व्रती भगवान भास्कर से संबंधित कथा सुनती है. 30 अक्तूबर को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
बंद कमरे में व्रती करते हैं खरना का प्रसाद ग्रहण
नहाय-खाय के दूसरे दिन लोहंडा को सभी व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। सुबह से व्रत के साथ इसी दिन गेहूं आदि को धोकर सुखाया जाता है. दिन भर व्रत के बाद शाम को पूजा करने के बाद व्रती खरना या लोहंडा करते हैं. इस दिन गुड़ की बनी हुई चावल की खीर और घी में तैयार रोटी व्रती ग्रहण करेंगे. कई जगहों पर खरना प्रसाद के रूप में अरवा चावल, दाल, सब्जी आदि भगवान भास्कर को भोग लगाया जाता है. इसके अलावा केला, पानी सिंघाड़ा आदि भी प्रसाद के रूप में भगवान आदित्य को भोग लगाया जाता है. खरना का प्रसाद सबसे पहले व्रती खुद बंद कमरे में ग्रहण करते हैं. खरना का प्रसाद मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है।