हाट बाजार में खूब हुई खरीद-फरोख्त
उदयपुर। ‘शिल्पग्राम उत्सव 2014’ का सतरंगा समापन मंगलवार शाम रंगमंचीय प्रस्तुतियों से हुआ जिसमें लोक वाद्यों से अलंकृत ‘झंकार’ प्रमुख आकर्षण रहा। गुजरात के सिद्दि कलाकारों ने धमाल नृत्य में कलाकारों ने थिरकते झूमते हुए नारियल फोड़ते हुए उत्सव को अलविदा कहा।
लोक कला एवं शिल्प परंपरा के प्रोत्साहन तथा कलाओं की पहुंच आम आदमी तक करवाने के ध्येय से आयोजित इस उत्सव में 21 राज्यों से तकरीबन एक हजार कलाकारों व शिल्पकारों ने शिरकत की। दस दिन तक चले इस उत्सव में सुबह से ले कर रात ढलने तक समूचे कलाग्राम में कहीं शिल्प सृजन करते शिल्पी, कहीं शिल्प वस्तुओं की खरीददारी तो कहीं लोक वाद्यों पर नाचते थिरकते लोक कलाकार, कहीं खाने-पीने के चटखारे लेते मेलार्थी, मेले को मोबाइल व कैमरे में कैद करते लोग, ऊँट और घोड़े पर सवारी का आनन्द उठाते लोगों के दृश्य नजर आये।
उत्सव के आखिरी दिन शहर से भारी संख्या में लोग शिल्पग्राम पहुंचे तथा हाट बाजार में खरीददारी का सिलसिला शुरू हुआ। हाट बाजार में लोगों का हुजूम सा हो गया। हर कोई शिल्पकारों की बनाई चीज़ अपने घर ले जाने को आतुर था। किसी ने मिट्टी का सजावटी सामान खरीदा, तो किसी ने धातु की कला कृतियाँ खरीदी। कपड़ों के शौकीनों ने अपने पसंदीदा कपड़े खरीदे तो कइयों ने लकड़ी, सीप, नारियल, बांस, चीनी मिट्टी, मोम इत्यादि से सृजित वस्तुएँ खरीदी। गांव देहात में लगने वाले किसी मेले की तर्ज पर आयोजित इस उत्सव में विकास आयुक्त हस्त शिल्प नई दिल्ली, विकास आयुक्त हथकरघा नई दिल्ली, नेशनल जूट डेवलपमेन्ट बोर्ड, ट्राइफेड जैसी संस्थाओं ने अपने शिल्पकार प्रायोजित किये। दस दिवसीय उत्सव की आखिरी शाम मुक्ताकाशी रंगमंच ‘‘कालंगन’’ पर लोक प्रस्तुतियों ने एक बार फिर अपनी सतरंगी छटा बिखेरते हुए उत्सव को अलविदा कहा। यहां कार्यक्रम की शुरूआत गैर नृत्य से हुई। इस अवसर पर मांगणियार लोक गायकों ने धोरों में गूंजने वाले गीतों को सुना कर दाद बटोरी। इसके बाद कावड़ी कड़गम की नृत्यांगनाओं ने शीश पर कावड़ी संतुलित करते हुए अपने नृत्य में निहित करतबों का प्रदर्शन उत्कृष्ट ढंग से किया।
समापन पर ‘झंकार’ में तकरीबन 55 लोक वाद्यों के स्वर दर्शकों के लिये यादगार बने। केन्द्र के कार्यक्रम अधिकारी तनेरात सिंह सोढ़ा द्वारा संरचित झंकार में कमायचा, खड़ताल, ढोलक, मुगरवान, ढोलकी, पेंपा, गोगोना, सरनाई, ताशा, तविल, शंख आदि वाद्य यंत्र शामिल किए गए। धीमी गति से प्रारम्भ हुए झंकार ने चरम पर तीव्र लयकारी के साथ अपने कर्कश और सुरीले सुरों से समां सा बांध दिया। आखिरी में मणिपुर के ढोल वादकों ने ढोल वादन से दर्शकों को अभिभूत सा कर दिया।
गुजरात से आये अफ्रीकी मूल से सिद्दि कलाकारों ने इस अवसर पर बाबा गौर की उपासना में की जाने वाली धमाल से दर्शकों का दिल जीत लिया। ढोल, मुगरवान की लयकारी पर ‘‘शोबिला ए शोबिला…..’’ गाते व शंख बजाते नर्तकोें ने अपनी भंगिमाओं से दर्शकों को लुभाया। दर्शक दीर्घा में मौजूद दर्शक उस समय झूम उठे जब सिद्दि नर्तकों ने हवा में नारियल उछाल कर सिर से फोड़ना शुरू किया और एक के बाद एक करके नारियल हवा में उछलता व फूटता जनर आता तो समूचा दर्शक समूह तालियां बजा कर उनका अभिवादन करता नजर आया।