ध्यानोदय केन्द्र से प्रचार-प्रसार रथ ग्रामीण क्षेत्रों में रवाना
उदयपुर। गुरु मां गणिनी आर्यिका सुप्रकाषमति माताजी ने कहा कि श्रावण आता है, हरियाली आती है तब साधु-संत आते हैं और संस्कृति की बहार आती है। वह पेड़ किस काम का जिसकी जड़ें ही बड़ी हों। उस पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए कितना ही पानी डालो, पत्तों पर पानी छिड़को तब भी वह पेड़ एक दिन सूख ही जाता है। जीवन को सुरक्षित रखने के लिए संस्कार आवष्यक है।
वे आज हिरणमगरी सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ जैन मंदिर में धर्मसभा को संबेाधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि जीवन को सुरक्षित रखने के लिए संस्कार आवष्यक है। संस्कार विलीन होते जा रहे हैं। सभी के परिवार में संघर्ष और घर्षण का मूल कारण संस्कारों का नहीं होना है। मंदिर और गुरु द्वार सूने हो गए इसका अर्थ संस्कार धीरे धीरे विलीन होते जा रहे हैं।
मानव जीवन प्राकृतिक है। पहले लोग जंगलों में रहते थे। अब घर के आगे छोटा सा गार्डन बनाकर प्रकृति के साथ जीने का प्रयास कर रहे हैं। ताकि उन पौधों से पॉजीटिव उर्जा मिल सके। एक पत्थर है मार्बल जो हमारे बल को मार देता है। लोग पहले मिट्टी के मकानों में रहते थे तब कोई बीमारी नहीं होती थी। वर्तमान में सभी घुटनों और ऐड़ियों के दर्द से परेषान हैं। शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए प्राणायाम, योग, ध्यान अवष्य करना चाहिए। अन्यथा समय से पहले बीमारियां हो जाएगी। स्वस्थ रहने के लिए खुली हवा की जरूरत है। गार्डन में बैठकर या खुली छत पर बैठकर ध्यान, प्राणायाम करें।
परिवार संस्कार यात्रा का आज सुबह आदिनाथ दिगम्बर जैन चेरिटेबल संस्था की ओर से भव्य स्वागत किया गया। संस्था अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद कोठारी ने बताया कि पहले एक दिन का ही प्रवास था लेकिन श्रावकों के आग्रह पर एक दिन का प्रवास और बढ़ाया गया। संस्कार यात्रा अब 26 मार्च को सुबह 8 बजे बलीचा के लिए प्रस्थान करेगी।
ध्यानोदय संस्कार रथ रवाना: ध्यानोदय क्षेत्र के अष्ट द्वार स्थापना महोत्सव के प्रचार-प्रसार रथ को गुरु मां सुप्रकाषमति माताजी ने प्रचार-प्रसार के लिए हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया। रथ झाड़ोल, खाखड़, मगवास, बड़ाना, बिछीवाड़ा, फलासिया, सोम, कोटड़ा, पानरवा, केसरियाजी, चावण्ड आदि में होता हुआ 28 मार्च को वापस उदयपुर पहुंचेगा। ध्यानोदय क्षेत्र का निर्माण बलीचा स्थित सुप्रकाषमति ध्यान केन्द्र में हो रहा है।