योग पर शिविर
उदयपुर। परंपरागत भारतीय जीवन पद्धति व भगवान धन्वन्तरि प्रदत्त आयुर्वेद के मूल भाग उपयुक्त आहार चर्या का पालन कर आप निरोगी व शतायु रह सकते हैं जिसमें विरुद्ध आहार का ध्यान रखना पहली प्राथमिकता है।
ये विचार प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्सक एवं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम के जिला संयोजक वैद्य डॉ शोभालाल औदिच्य ने विवेकानंद युवा परिषद् नाई व पतंजलि योग समिति उदयपुर द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कर्यक्रम के तहत आयोजित 8 दिवसीय निःशुल्क योग विज्ञान शिविर को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। औदीच्य ने कहा की हम सूर्योदय से एक घंटे पूर्व उठकर पर्याप्त जल पीकर भी असंख्य बीमारियों से बच सकते है साथ ही विरुद्ध आहार का सेवन करना स्वतः कई रोगों को निमंत्रण देने के सामान है।उन्होंने कहा कि महंगी व रोगोत्पन्नकरक अलोपथी दवाइयों की बजाय सस्ती व दोषरहित आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपनाकर हम सुखमय निरोग जीवन व्यतीत कर सकते है।
श्री औदीच्य ने दैनिक जीवन ने रोग व विकार मुक्ति हेतु नित्य उपयोगी सामग्री हल्दी, हींग, लहसुन, निम्बू, दही, गूलर, अर्जुन छाल, गिलोय, नीम, आंवला, अलोएवेरा, तुलसी, लोंग, इलाइची, काली मिर्च आदि का प्रयोग व सावधानियों के बार में विस्तारपूर्वक बताया। परिषद् संयोजक कृष्णकांत शर्मा ने बताया कि इससे पूर्व योग प्रशिक्षक अशोक जैन ने योगिक व्यायाम, सूर्य नमस्कार व 35 मिनट के कार्यक्रम का अभ्यास कराया। स्वागत् परिषद महामंत्री महेंद्र नागदा व भंवर प्रजापत ने किया। कार्यक्रम में अध्यक्ष चंद्रशेखर आमेटा, बद्रीलाल चौधरी, अटल नागदा सहित सेंकडो गणमान्य व योगार्थी उपस्थित थे।
योगासन से लाभ संभव : सोसाइटी फॉर माइक्रोवायता रिसर्च एंड इंटीग्रेटेड मेडिसिन की ओर से चल रहे सात दिवसीय योग सेमिनार में उपरोक्त्त वक्तव्य सेमिनार के मुख्य प्रवक्ता डॉ. एस. के. वर्मा ने दिया. उन्होंने कहा की योगासन से समुचित लाभ प्राप्त करने में आहार का भी बड़ा महत्त्व है. उन्होंने कहा की यदि एक व्यक्ति तामसिक आहार जैसे अंडा, मांस, मछली, प्याज, लहसुन का सेवन करता है और साथ ही योगासन का अभ्यास भी करता है, तो उसे योगासन का उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना की सात्विक आहार सेवन करने वाले व्यक्ति को मिलेगा क्योंकि जिस तरह आसन का असर शरीर के ग्रंथि चक्रों पर पड़ता है उसी तरह आहार का प्रभाव भी शरीर की प्रत्येक कोशिका पर पड़ता है और दोनों का सम्मिलित प्रभाव शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है और सात्विक आहार वह होता है जो शरीर और मन दोनों के लिए हितकारी है जैसे दूध, फल- सब्जी, अनाज। सात्विक आहार के साथ ही उन्होंने प्रमिताहार की भूमिका भी बताते हुए कहा की भोजन सदैव संतुलित तथा सुपाच्य होना चाहिए और दिन में चार बार से अधिक और एक बार में चार खाद्य वस्तुओं से अधिक का सेवन योगाभ्यास करने वालों के लिए वर्जनीय है. इसके साथ ही डॉ वर्मा ने भोजन की शुरुआत मीठे से करने की प्रचलित भ्रान्ति का निराकरण करते हुए बताया की आयुर्वेद के अनुसार शरीर में निर्धारित छह रसों के अनुकूल भोजन की शुरआत सदैव कसैले, फिर तीक्ष्ण, और अंत मीठे से करना चाहिए. इसकी वैज्ञानिक प्रमाणिकता बताते हुए उन्होंने कहा की भोजन के शुरुआत में कटु और तीक्ष्ण खाद्य पदार्थ पाचक रसों के स्त्रवण में सहायता करते हैं जबकि मीठे खाद्य पदार्थ पाचक रसों के स्त्राव को कम कर पाचन क्रिया को मंद कर देते हैं। सोसायटी सचिव डॉ. वर्तिका जैन ने बताया की सेमिनार के तीसरे दिन डॉ वर्मा ने आहार और योगासन से संबधित विज्ञान और उसका शरीर पर प्रभाव की विस्तृत चर्चा की और मुख्य प्रशिक्षक आचार्य ललितकृष्णानद अवधूत ने सभी प्रतिभागियों को अनुकूल योगासनों का अभ्यास कराया. सेमिनार का समापन रविवार को होगा।