सुविवि और तेरापंथी सभा के साझे में आचार्य महाप्रज्ञ व्याख्यानमाला
उदयपुर। परिवार का अहिंसा से गहरा सम्बन्ध है। परिवार तो अहिंसा की पहली प्रयोगषाला है। अहिंसा का धर्म केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि किसी के विचारों का अतिक्रमण करना भी हिंसा है। समज और समाज जिस तरह पषुओं के समूह को समज और मनुष्यों के समाज को समाज कहते हैं। इसमें सिर्फ आ की मात्रा यानी अहिंसा का ही फर्क है।
ये विचार शासन श्री मुनि राकेष कुमार ने रविवार को अण्रवत चौक स्थित तेरापंथ भवन में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा और मोहनलाल सुखाड़िया विष्वविद्यालय के साझे में परिवार और अहिंसा विषयक पंचम आचार्य श्री महाप्रज्ञ व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सह अस्तित्व की प्रगति भी विकसित होनी चाहिए। हाथ की सभी अंगुलियां समान नहीं होती लेकिन अगर एक भी अंगुली कम हो तो काम अटक जाता है। सभी का अपना-अपना महत्व है। रूचि अलग-अलग हो सकती है लेकिन साथ में रहकर सामंजस्य से काम करते हैं, वहीं अहिंसा है। सह अस्तित्व की व्यापक दृष्टि बननी चाहिए। जितनी मंगल कामना करेंगे, भविष्य उतना ही स्पष्ट होगा। मनुष्य में मतभेद स्वाभाविक है लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए। विरोधियों को भी उदारता से सुनें। आज छोटे छोटे बच्चे भी तुनकमिजाजी हो रहे हैं। बात बात में मूड ऑफ हो जाता है। मूड के गुलाम न बनें।
मुख्य वक्ता के रूप में सुविवि संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. नीरज ने कहा कि धर्म ही हमें पषुता और मनुष्यता का फर्क सिखाता है। धर्म की प्रतिष्ठा के साथ सत्य, सहिष्णुता, तप, त्याग का पाठ पढ़ाता है। अगर धर्म की यह परिभाषा हम अपने जीवन में घटित नहीं कर पाए तो परिवार विखण्डित हो जाएंगे। न सिर्फ आजीविका, प्रजनन के लिए बल्कि देष, समाज के लिए भी परिवार विस्तार जरूरी है। आज का जीवन वर्चुअल हो गया है। सोषल साइट्स पर हजारों फ्रेंड्स हैं लेकिन आसपास रहने वाले मित्रों से बोलचाल बंद है। भक्ति ही है जो हमें यहां अनुषासित रूप से बैठने को मजबूर करती है। समता का गुण सीख लिया तो जीवन सफल हो जाएगा। सुख-शांति का सम्बन्धी अपने भीतर से है न कि भौतिक सुविधाओं से। शरीर का सम्बन्ध भौतिक सुविधा से हो सकता है लेकिन सुख का सम्बन्ध तो आत्मा से है।
मुनि सुधाकर ने कहा कि परिवार अहिंसा से ही बनता है। भगवान महावीर ने अहिंसा की विवेचना की। किसी के विचारों का शोषण भी अहिंसा है। हर आत्मा का समान अस्तित्व है। अस्तित्व स्वतंत्र है। परिवार टूट रहे हैं। रिष्ते बिखर रहे हैं। एक समय था जब परिवार में पता ही नहीं चलता था कि कौन किसका लड़का है। आज बच्चे घर कब आते हैं और कब निकल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। आंगन में दीवार क्यों उठे क्यांेकि मैं सुखी रहूं बस यह स्वार्थ का धागा ही इनका मूल है। अनेकांतवाद की चेतना जगाएं। ही और भी का अंतर सीख जाएं, फिर कभी कोई परेषानी नहीं होगी।
मुनि दीप कुमार ने कहा कि परिवार और अहिंसा एक-दूसरे के पर्याय हैं। अहिंसा के बिना समूह में रहना संभव नहीं है। घरों में ही समस्याओं का समाधान हो सकता है, फिर क्यों बाहर जाकर ढूूंढें? जहां असहिष्णुता होगी, वहां हिंसा बढ़ेगी। हिंसा रोकने के लिए सहिष्णुता का विकास करना होगा।
तेरापंथी सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि वर्ष 2011 में आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में सुविवि ऑडिटोरियम में आचार्य महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ था। उसी क्रम में यह व्याख्यानमाला हो रही है। इस अवसर पर शंकरलाल पोरवाल एवं श्रीमती चम्पादेवी मरोठी का 11-11 उपवास करने पर उनकी अनुमोदना की गई। फत्तावत एवं लक्ष्मणसिंह कर्णावट ने साहित्य भेंटकर सम्मान किया।
कार्यषाला का आरंभ राकेष मुनि के नमस्कार महामंत्र से हुआ। संचालन सभा मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने किया। आभार उपाध्यक्ष अर्जुन खोखावत ने जताया। अतिथियों का उपरणा, साहित्य एवं स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मान किया गया।