नॉन इनवेसिव वेन्टीलेशन उपचार ही एक मात्र उपाय
उदयपुर। विदेशों की तुलना में देश में पिछले कुछ वषों में श्वांस रोगी बढ़े है। विदेशों में सीओपीडी यानि फेफड़े संबंधित श्वास की बीमारी को टॉप 5 में स्थान मिला हुआ जबकि देश में तो यह बीमारी टॉप में है ही। अस्थमा से एक स्टेज एडवांस इस बीमारी के देश में सवा दो करोड़ रोगी है और उसमें से 40 लाख गंभीर श्वांस रोगी पाये गये है।
यह कहना था जयपुर स्थित मणिपाल हॉस्पीटल के क्रिटिकल केयर विभाग विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज आनन्द का जो फिलिप्स रेस्पीरोनिक्स द्वारा होटल गोल्डन ट्यूलिप में शहर के क्रिटिकल केयर, टीबी एण्ड चेस्ट, एमडी मेडिसिन, एनेस्थेसिया चिकित्सकों के लिए नॉन इनवेसिव वेन्टीलेशन के प्रयोग के प्रशिक्षण हेतु आयोजित एक दिवसीय सेमिनार में बोल रहे थे। इसमें शहर के 60 चिकित्सकों ने भाग लिया।
उन्होंने बताया कि देश में श्वास रोगी बढ़ऩे के पीछे मुख्य कारण मुख्यतया धूम्रपान, वायु प्रदूषण एवं गांवों में महिलाओं द्वारा चूल्हे पर पकाये जाने वाले खाने से निकलने वाला धुआं है। सीओपीडी एक फेंफड़ो की श्वास संबंधी एक बीमारी होती है। अस्थमा होने पर तो फेफड़ों की नलियां ऑक्सीजन लेने पर पुन: फूल जाती है लेकिन सीओपीडी होने पर नलियां फूल नहीं पाती है जिससे रोगी को श्वास लेने में काफी परेशानी होती है और उसका एक मात्र उपाय वेन्टीलेशन ही है। मरीज को इस बीमारी में वर्ष में करीब 4-5 बार हॉस्पीटल में भर्ती हो कर वेन्टीलेटर पर रहना पड़ता है।
जीबीएच अमेरीकन हॉस्पीटल के डॉ. पीयूष गर्ग ने बताया कि इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए मरीज अपने घर पर नॉन इनवेसिव वेन्टीलेशन उपकरण का प्रयेाग कर सकता है जिसमें रात्रि में 8-10 घंटे मुंह पर मॉस्क लगाकर पूरे दिन आसानी से रह सकता है। विदेशों में इस उपकरण का प्रयोग काफी हो रहा है जबकि भारत में इसके प्रति जागरूकता में कमी है। सही तरीके से मरीज को इस उपकरण को लगाने के लिए चिकित्सकों एंव नर्सेज को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
फिलिप्स रेस्पीरोनिक्स के महाप्रबन्धक संदीप ओबेराय ने बताया कि लगभग 5 वर्ष चलने वाला नॉन इनवेसिव वेन्टीलेशन घर पर भी लगाने से रोगी को श्वंास लेने में आसानी रहती है और वह अपना जीवन सामान्य एंव अधिक व्यतीत कर सकता है। सेमिनार में बोलते हुए फिलिप्स रेस्पीरोनिक्स के राजस्थान प्रभारी अभिषेक छाबड़ा ने बताया कि इस उपकरण का प्रचलन भीलवाड़ा, जैसलमेर सहित जैसे अन्य शहरों में बढऩे लगा है। जनता इसके प्रति अब जागरूक होने लगी है।
गीताजंली मेडिकल कॉलेज के टीबी एण्ड चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एसके लुहाडिय़ा ने बताया कि गंभीर श्वास रोग में रोगी की श्वांस की नलियां सिकुडऩे लगती है। यह अस्थमा से एक स्टेज एडवांस बीमारी है जिसका करीब 50 वर्ष पूर्व ही लगा है। 50 प्रतिशत मामलों में अस्थमा 5 वर्ष की उम्र से पूर्व ही प्रारम्भ हो जाता है जबकि सीओपीडी बीमारी 40 वर्ष की उम्र के बाद प्रारम्भ होती है। इसमें भी 80 प्रतिशत मामले धूम्रपान, ऑटोमोबाइल एंव औद्योगिक प्रदुषण के कारण पाये गये है। सेमिनार को जीबीएच अमेरिकन हॉस्पीटल के डॉ. पीयूष गर्ग ने भी संबोधित किया।