लंदन फिल्म फेस्टिवल से वीडियो कॉफ्रेंसिंग
उदयपुर। उदयपुर फिल्मोत्सव के दूसरे दिन सुबह का सत्र बच्चों के नाम रहा। प्रख्यात किस्सागों संजय मट्टू ने फूली पूरी की कहानी जब अपने चिरपरिचित मजेदार अंदाज में सुनाई तो बच्चे कभी गुदगुदाये तो कभी हंसते-हंसते लोटपोट हो गए। सत्र में 15 स्कूलों के 350 से अधिक बच्चे शामिल हुए।
नियमित सत्र में पहली फिल्म ‘निणर्य’ थी जो एक युवा फिल्मकार पुष्पा रावत द्वारा अपने जीवन और परिवेश पर ही बनाई गई है। इसमें पुष्पा ने एक युवा द्वारा अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने के सवालों और इन सवालों के सामने अपने परिवेश गत चुनौतियों को दर्शाया है। देश भर के कई महत्वपूर्ण समारोहों में प्रशंसित इस फिल्म की निदेशक पुष्पा रावत से दर्शकों में बैठ युवा वर्ग ने बहुत जीवंत बातचीत की।
पुष्पा ने इस अवसर पर कहा कि यही एक सफलता है कि देश के हर कोने में युवा को इसमें अपनी ही कहानी नजर आती है। यह उनकी अपनी ही नहीं सबकी कहानी है।
दोपहर बाद तरूण मिश्रा द्वारा निर्देशित दस्तावेजी फिल्म ‘रेफरेंडम’ दिखाई गई। उड़ीसा में नियमगिरी क्षेत्र के आदिवासियों द्वारा अपनी ग्राम सभाओं में प्रस्ताव पारित कर खनन कंपनी वेदांता को खनन से रोका गया था, इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को इस फिल्म में दर्ज किया गया है। ‘रेफरेंडम’ के बाद राजस्थान में खनन और आदिवासियों के विस्थापन के संबंध में एक विशेष परिचर्चा सत्र आयोजित किया गया। इसमें झूंझनूं खेतड़ी क्षेत्र में हिन्दुस्तान कॉपर लि. के अवैध खनन के खिलाफ एक दशक से लम्बी लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ता कैलाश मीणा ने अपने संघर्ष की जानकारी देते हुए कहा कि कानून की रक्षा करने के लिए खड़े लोगों को ‘राजकार्य में बाधा’ के मुकदमें लगाकर जेल में डाला जाता है जबकि कानून का सरेआम उलंघन कर रही खनन कंपनियों का सरकार का छिपा संरक्षण मिलता है। प्रख्यात वकील रमेश नंदवाना ने कहा कि ‘पैसा कानून’ और नवीनतम ‘वनाधिकार कानून’ लम्बी लड़ाई इन्हें ठीक से लागू करवाने की ही है।
राजस्थान विकास संगठन के चंद्रदेव ओला ने ग्राम सभाओं की अनियमितता और कागज पर ही सभा हो जाने के षड़यंत्र को उजागर किया। विख्यात वकील राजेश सिंघवी ने कानून में आदिवासियों को प्रापत अधिकारों और उनमें सेंध के तरीकों को तो बताया ही, साथ ही श्रम कानूनों में आए नए बदलाव कितने मजदूर विरोधी है यह भी बताया। पूर्व विधायक मेघराज तावह ने कहा कि जंगल और आदिवासी एक दूसरे के पूरक है। यदि एक को उजाड़ा गया तो दूसरा भी नहीं बचेगा।
बांगला फिल्म ‘उचलु’ भी दिखाई गई।
साथ ही संजय मट्टू और सनन हबील की मंचीय प्रस्तुति ‘आसमां हिलता है जब गाते है हम’ भी हुई।
लंदन में हुआ फेस्टिवल का आगाज
उदयपुर की तरह लंदन में भी शनिवार को फिल्म फेस्टिवल का आगाज हुआ जिसमें फिल्में दिखाई गई एवं उन पर चर्चा भी की गई। फिल्म फेस्टिवल के दौरान उदयपुर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी की गई। कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान निर्णय फिल्म और मुज्जफरनगर बाकी है के निर्देशक पुष्पा रावत और नकुल शाहनी से बातचीत की गई।