उदयपुर। पहाड़ों से ही नदियों का उदगम होता है और झीलों तक पानी पहुंचता है। पहाड़ों का नाश सर्वनाश का कारण बनेगा। उदयपुर के मास्टर प्लान को पहाड़ संरक्षण, नदी संरक्षण, झील संरक्षण -घाटी संरक्षण आधारित बनाने के लिए मौजूदा मास्टर प्लान का तुरंत पूर्व निरिक्षण होना चाहिए।
ये विचार झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति एवं डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित श्रमदान संवाद में व्यक्त किये गए। झील संरक्षण समिति के डॉ अनिल मेहता ने कहा कि जल विज्ञान की दृष्टि से पहाड़ , नदियो व झीलों के पिता है। जल उदगम स्थल है। पहाड़ों, पेड़ों को काटना, बदहाल करना जीवन दायिनी जल वाहिनियों को नष्ट करना है।
झील मित्र संस्थान के तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि पहाड़ो को उजाड़ने , नदियों-झीलों को पाटने तथा वनो को काटने से उदयपुर घाटी पर गंभीर जल संकट अवश्यम्भावी है। इससे भयावह पारिस्थितीय व पर्यावरणीय नुकसान होंगे। पहाड़ो के क्षरण से नदियों और झीलों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरिया के नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि अरावली सर्वाधिक पुरानी पर्वत श्रंखला है। यह प्राकृतिक, ऐतिहासिक व भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भू-संरचना है। नागरिको की जागरूकता ही अरावली व इसमें बसे उदयपुर को बचा सकती है अन्यथा जल विहीन झीलों की नगरी होने में अधिक समय नहीं लगेगा। संवाद से पूर्व रंग सागर पिछोला के बारीघाट क्षेत्र से श्रमदान द्वारा जलीय घास, पोलिथिन की थैलिया, घरेलू अनुपयोगी सामग्री, शराब की बोतले निकाली। श्रमदान में रमेश चन्द्र राजपूत, रामलाल गहलोत, ललित पालीवाल, कुलदीपक पालीवाल, अजय सोनी, बीएल पालीवाल, हर्षुल कुमावत, कमलेश पुरोहित, भावेश, रिद्धेष, तेज शंकर पालीवाल, डॉ. अनिल मेहता व नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया।