संतों का शहर में धूमधाम से प्रवेश
उदयपुर। राष्ट्र-संत ललितप्रभ सागर ने कहा कि पांव की मोच और दिमाग की छोटी सोच इंसान को कभी आगे बढ़ने नहीं देती। ऊँची सोच के मालिक बनें। ऊँची सोच इंसान की सबसे बड़ी ताकत है।
वे रविवार को श्री जैन श्वे।ताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ द्वारा टाउन हॉल मैदान में आयोजित प्रवचनमाला में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सोच दो तरह की होती है – सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच। जहां नकारात्मक सोच नरक का निर्माण करती है वहीं सकारात्मक सोच स्वर्ग का सेतू बनती है। हमारे धर्म-कर्म, दान-पुण्य भी तभी परिणाम देंगे जब हमारी सोच सकारात्मक होगी।
नफरत के बदले प्यार ही सकारात्मकता : सकारात्मक सोच की व्याख्या करते हुए संतप्रवर ने कहा कि किसी के द्वारा अपमानित किये जाने के बावजूद उसे अपनी ओर से सम्मान देने के लिए तैयार हो जाने के नाम सकारात्मक सोच है। प्यार के बदले प्यार और नफरत के बदले नफरत लौटाना सामान्य सोच है, पर नफरत करने वाले को भी प्यार लौटा देना इसी का नाम है सकारात्मक सोच।
सोच को सकारात्मक बनाने के दिए मंत्र-सोच को सकारात्मक बनाने के मंत्र देते हुए संतप्रवर ने कहा कि हमेशा आधा गिलास भरा हुआ देखें, खामियों की बजाय औरों की खासियत पर गौर करें, प्रगतिशील विचारों के मालिक बनें और सद्विचारों का लेनदेन करें।
शहर में प्रवेश : इससे पूर्व संत ललितप्रभ, संत चन्द्रप्रभ और डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर ने हाथीपोल मंदिर से शोभायात्रा के साथ टाउन हॉल मैदान में धूमधाम से प्रवेश किया। मार्ग में भक्तों ने गुरुदेव के जयकारे लगाए वहीं दूसरी ओर जगह-जगह श्रद्धालुओं ने अक्षतों से संतों का बधावणा किया।