विद्यापीठ में शोध आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन
उदयपुर। अध्यापक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। जरूरी है कि इसमें अधिक से अधिक शोध हो इसी माध्यम से अध्यापक शिक्षा में परिवर्तन संभव है। जितने अधिक शोध होंगे उतने ही अधिक इसके परिणाम भी होंगे।
ये विचार प्रो. करूणेश सक्सेना ने रविवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सीटीई प्रायोजना के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय शोध आधारित राष्ट्रीय कार्यशाला समापन सत्र में अपने उद्बोधन में कहे।
अध्यक्षता करते हुए एसआईईआरटी की निदेशक विनिता बोहरा ने कहा कि किसी भी संस्था का वर्चस्व तभी होता है जब वहां का शिक्षक प्रभावी भूमिका निभाता हो। उन्होंने कहा शोध उच्चस्तरीय उद्धेश्यपरक बौद्धिक प्रक्रिया है क्योंकि शोध योजना जितनी सशक्त होगी उतना ही शोध प्रभावी व सार्थक होगा। व्यक्तिगत मार्गदर्शन के बजाय शोध की सांख्यिकी मानक पुस्तकों पर आश्रित होनी चाहिये। विशिष्ट अतिथि एन.सी.ई.आर.टी. के प्रो. एल.सी.सिंह ने कहा कि शोध का पुनः परीक्षण वर्तमान आवश्यकता है, वैश्वीकरण के संदर्भ में शोध में नवाचार को अपनाने पर कहा। अमेटी विश्वविद्यालय के प्रो. एच.सी.त्यागी ने कहा कि शोध का विषय स्थानीय समस्याओं, ग्रामीण एवं कौशल विकास तथा देश के विकास में योगदान देने वाला होना चाहिये। प्रारम्भ में प्राचार्या डॉ. शशि चित्तौड़ा ने दो दिवसीय कार्यशाला की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की संचालन कार्यशाला प्रभारी डॉ. देवेन्द्रा आमेटा ने किया जबकि धन्यवाद डॉ. सरोज गर्ग ने दिया। सीटीई समन्वयक डॉ. भूरालाल श्रीमाली ने बताया कि राष्ट्रीय कार्यशाला में देशभर के 153 शिक्षाविदों ने भाग लिया।