बावजी चतर सिंह की 136वीं जयंती पर संगोष्ठी
उदयपुर। समाज व राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निष्ठा, तथा संस्कार के भाव को भावी पीढ़ी में जागृत करना होगा तथा साथ ही विश्वविद्यालयी शिक्षा इस तरह की होनी चाहिए जो युवा समाज, देश एवं राष्ट्र का निर्माण करें तथा बावजी चतर सिंह जी के बताये अध्यात्मिक, सामाजिक दायित्वों को अपनाएं।
ये विचार कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने शनिवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से मेवाड़ के लोकसंत, कवि, दार्शनिक बावजी चतर सिंह जी की 136 वीं जयंति पूर्व संध्या पर पर आयोजित समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में व्यीक्त किए। कुलपति ने कहा कि बावजी ने जनता के लिए उस गुड़ ज्ञान को सुलभ कराया वे आधुनिक राजस्थानी के महान कवि थे। बावजी ने मानव मित्र, राम चरित्र के नाम से रामायण लिखी, इस तरह से करीब दो दर्जन ग्रंथ बावजी के लिखे मिलते है। अध्यक्षता करते हुए कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर बताया कि बावजी एक संत, कवि, भक्त योगी थे। बावजी ने गंभीर साहित्यिक ग्रंथों का सरल राजस्थान में अनुवाद किया। उन्होने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध में जब पूरे देश में भटकाव की स्थिति थी उस समय चतर सिंह जी बावजी का जन्म हुआ। उन्होंने मेवाड को नई राह दिखाने का काम किया। इस अवसर डॉ. महेश आमेटा, डॉ. प्रिदर्शी ओझा, डॉ. कुल शेखर व्यास, डॉ. धर्मनारायण सनाढ्य, भरत आचार्य, विष्णु पालीवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ कुलशेखर ने किया तथा धन्यवाद संगीता जैन ने दिया।