विद्यापीठ में डाक्ट्रल कान्फ्रेस का शुभारंभ
उदयपुर। नामीबिया विश्वविद्यालय की अधिष्ठाता प्रो. अनीशिया पिटर्स ने कहा कि आईटी सेक्टर में आने वाले दौर में काफी कुछ करना शेष है लेकिन इस सेक्टर में मेन पावर की कमी महसूस की जा रही है। इसके लिए जरूरी है आईटी सेक्टर में अधिक से अधिक रिसर्च हो तथा प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चों में आईटी के प्रति रूचि पैदा की जाए।
वे गुरूवार को राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक कम्प्यूटर साईंस एण्ड इन्फोरमेशन टेक्नोलॉजी एवं कम्प्यूटर सोसायटी ऑफ इंडिया उदयपुर चेप्टर व एसीएम उदयपुर चेप्टर के संयुक्त तत्वावधान के प्रथम डाक्ट्रल कान्फ्रेंस के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रही थीं। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अन्य यूरोपीय देशों में तो स्थिति ओर भी बेहतर है, लेकिन भारतीय परिदृश्य में यह एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आ रही है। प्रो. पिटर्स ने कहा कि उच्च शिक्षा में कम्प्यूटर एवं आईटी रिसर्च कम प्रभावी है। शोधार्थी ग्लोबल मार्केट के आधार पर रिसर्च को मजबूती दें। आईटी में विकास की अपूर्व संभावनाएं है।
अध्यक्षता करते हुए रजिस्ट्रार प्रो. सीपी अग्रवाल ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था तकनीकी आधारों से बहुत दूर है। इसके लिए जरूरी है कि हमें टेक्नोफ्रेण्डली होना होगा। तथा शिक्षा में नवीनतम अनुसंधान एवं शोध के साथ साथ नवाचारिक प्रयोग योजना बनाना भी जरूरी हो गया है। उच्च शिक्षा व्यवस्था में अधिक से अधिक शोध कार्यों को अपनाने की बात कही। क्वालिटी रिचर्स मेथोलॉजी को समझना जरूरी है। विशिष्टा अतिथि एसीएम उदयपुर के चेयरमेन डॉ. दुर्गेश कुमार मिश्रा ने कहा कि आईटी की बड़ी देन इंटरनेट युग की शुरूआत कही जा सकती है। 1970 से 80 में बाजार में कम्प्यूटर उपलब्ध होने से आम जीवन बदल गया। इंटरनेट युग आया और फिर फेसबुक, ट्वीटर, वाट्सप से छोटे बड़े का फर्क नही रहा। सीएसआई उदयपुर चेप्टर के डॉ. वाईसी भट्ट ने कहा कि छात्रों को कट पेस्ट से बचना चाहिए। आरंभ में डॉ. भारत सिंह देवड़ा ने सभी का स्वागत किया व एसीएम उदयपुर चेप्टर के सचिव अमित जोशी ने सेमीनार की रूपरेखा प्रस्तुत की। एसीएम उदयपुर चेप्टर के डॉ. दुर्गेश कुमार मिश्रा, प्रो. डीपी कोठारी, प्रो. एचआर विश्वकर्मा, प्रो एके पायक, डॉ. स्वागतम दास, प्रो. जेके मंडल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन शिवानी ने किया जबकि धन्याद निदेशक डॉ. मनीष श्रीमाली ने दिया। सेमीनार में 85 पत्रों का वाचन किया गया।