कोमल है कमजोर नहीं तू, शक्ति का नाम ही नारी है…
महावीर युवा मंच संस्थान और जीतो महिला विंग के साझे में 61 आदर्श सास-बहुओं का सम्मान
उदयपुर। सिर्फ कानून बनाने से ही महिला सशक्त नहीं हो सकती। उन कानूनों के प्रति जागरूकता कितनी महिलाओं में है। उन पर इम्प्लीमेंट कितना होता है, यह देखने की बात है। पुरुष मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक महिलाओं की स्थिति में बदलाव नहीं आ सकता।
कुछ ऐसे ही विचार उभरकर आए मंगलवार को महावीर युवा मंच संस्थान महिला प्रकोष्ठ एवं जीतो (जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन) महिला विंग के साझे में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तेरापंथ भवन में आयोजित आदर्श सास-बहुओं के सम्मान समारोह में। मुख्य अतिथि पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास थीं। अध्यक्षता महापौर चन्द्रसिंह कोठारी ने की। विशिष्ट अतिथि संस्थान के मुख्य संरक्षक राजकुमार फत्तावत एवं एडवोकेट प्रमोदिनी बक्षी थे।
मुख्य अतिथि डॉ. गिरिजा व्यास ने कहा कि महिला आयोग के अध्यक्षीय कार्यकाल में 56 कानून बने जिनमें 19 संसद में पारित भी हुए। जहां बेटियों का जन्म लेना भी दूभर था वहीं आज अदालतों के निर्णय भी महिलाओं के अधिकार बन जाते हैं। पंचायतीराज में सास-बहुओं में काफी परिवर्तन आया है। सास चुनी जाती है तो बहु उसकी मदद करती है और अगर बहु चुनी जाती है तो सास उसकी मदद करती है। आज महावीर युवा मंच संस्थान जैसे संगठनों की जरूरत है जो गांवों में जाकर नारी जागरूकता पर काम करे। शादी के 20-20 साल बाद भी तलाक के मामले सामने आते हैं तो दुख होता है। पुलिस आज भी अपना काम तरीके से नहीं करती। एफआईआर ही दर्ज नहीं होती।
अध्यक्षता करते हुए महापौर चन्द्रसिंह कोठारी ने कहा कि आज की नारी सब पर भारी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा कि महिला सशक्त है। अधिकारों के साथ हमें कर्तव्य की बात भी करनी होगी। दोतरफा मापदण्ड नहीं करें। बेटी के लिए अच्छा घर चाहते हैं तो बहू को भी अच्छा घर देने का कर्तव्य आपका है। नारी की पूजा तो बरसों से होती आ रही है। पैसा, शिक्षा, ताकत जो कुछ भी चाहिए, सभी के लिए देवियों की शरण में ही जाना पड़ता है।
नारी गौरव अलंकरण से सम्मानित पूर्व जिला प्रमुख मधु मेहता ने कहा कि सास-बहु का रिश्ता हर परिवार में अहम है। सामंजस्य, प्रेम और आत्मीयता अति आवश्यक है। समय के साथ रिश्ते बदलते जाते हैं। यह सम्मान मेरा नहीं बल्कि महावीर युवा मंच संस्थान का है जिन्होंने हर समय मुझे आगे बढ़ाया। उनके अलंकरण पत्र का वाचन आशा कोठारी ने किया।
विशिष्ट अतिथि मुख्य संरक्षक राजकुमार फत्तावत ने कहा कि महिलाएं आज भी सशक्त हैं। क्या घर में कोई भी काम महिलाओं की सहमति के बिना हो सकता है? आज के इस कार्यक्रम की ही बात करें तो पूरे कार्यक्रम की आयोजना ही महिलाओं ने की। गत वर्ष संस्थान ने सिर्फ बेटियों को जन्म देने वाली 600 महिलाओं का सम्मान किया था। इस वर्ष आदर्श सास-बहुओं का सम्मान किया गया है। अगले वर्ष पुनर्विवाह करने वाली विधवा बहनों का सम्मान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अमूमन झगड़ा महिला-पुरुष का माना जाता है लेकिन ऐसा होता नहीं है। झगड़े के मूल में नारी ही होती है। किसी भी विवाह, सामाजिक समारोह में 21 से अधिक आइटम नहीं बनाने का संकल्प करें ताकि निचले तबके को भी दो जून की रोटी मिल सके।
विशिष्ट अतिथि एडवोकेट प्रमोदिनी बक्षी ने कहा कि सिर्फ कानून बनाने से ही महिलाएं सशक्त नहीं हो जाती। विवादों को अपने स्तर पर, संगठन स्तर पर निबटाएं। कोर्ट में न आएं, तभी ऐसे कार्यक्रमों केा उद्देश्य सफल होगा। मेरे 45 वर्ष के अधिवक्ताकाल का अनुभव है कि कोई मामला जल्दी नहीं निबटता। न्यायिक प्रक्रिया काफी लम्बी है। संगठित होकर जाएं, काम जल्दी निबटेगा। पुरुष मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक महिलाओं की स्थिति में बदलाव नहीं आ सकता। कानून तो हैं लेकिन उनकी पालना के लिए जागरूकता लानी पड़ेगी।
स्वागत उद्बोधन में संस्थान के महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष विजयलक्ष्मी गलुण्डिया ने कहा कि जहां सास-बहू आदर्श है, वहां स्वर्ग है। नारी सशक्तीकरण का संदेश देते हुए हमने उन सास-बहुओं का चयन किया जो एक किचन में दस वर्षों से अधिक काम कर रही हों। हमने 51 सास-बहुओं का सम्मान करने का निर्णय किया था लेकिन ऐसे जोड़ों की संख्या 61 पहुंच गई। कई जगह तो 40 वर्षों से साथ काम करती भी मिलीं।
अतिथियों का मेवाड़ी पगड़ी, माल्यार्पण, तिलक लगा स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मान किया गया। सभी सास -बहुओं को मेवाड़ी पगड़ी पहना, तिलक लगा, श्रीफल भेंटकर स्मृति चिन्ह भेंट किए गए। सास को शॉल तथा बहुओं को लाल चूनड़ ओढ़ाई गई। आरंभ में सोनल सिंघवी एवं समूह ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया।
इनका सम्मान : सम्मानित होने वाली सास एवं बहुओं में क्रमशः आभादेवी-विजयलक्ष्मी गलुण्डिया, धापूबाई-सुनीता पगारिया, मंजू-श्वेता सिंघवी, सुशीला-अचला डांगी, बादामबाई-सविता पगारिया, झनकारबाई-हेमलता कूकड़ा, प्रकाश देवी-नलिना लोढ़ा, सुमित्रा-मीनल इंटोदिया, कुसुम-सुरभि जैन, संतोष देवी-हितेक्षा, पुष्पा-ममता बंबोरी, चंदरबाई-सरोज जैन, मीना-नीता छाजेड़, सुशीला-सोनिका छाजेड़, दिलखुश-सारिका बोहरा, भूरीबाई-सुमित्रा, मंजू-कुसुम डांगी, बसंतीदेवी-सरोज जैन, मिठूबाई-रेणु बोहरा, गोवर्धनदेवी-विभा, मंजुला-अर्चना समदड़िया, रतनदेवी-ऋतु, कुसुम-शशि चावत, सुशीला-डिम्पल पोरवाल, प्रेमलता-जयश्री दक, सुशीला-रेखा सांगानेरिया, दमयंती-मंजू भंडारी, सुंदरबाई-सरिता, विमला-चन्द्रकला बोल्या, जतनदेवी-कांता हड़पावत, उर्मिला-सोनल सरिया, शांतादेवी-दीप्ति जावरिया, कंकु बाई-केसर सुराणा, विमला-कुसुम चपलोत, निर्मलादेवी-सीमा मेहता, सम्पतदेवी-मंजू सेठ, कलादेवी-मनीषा अलावत, प्रकाशदेवी-सुमन चौहान, सुशीला-शांता सियाल, केसर-रूशिका तोतावत, रतनदेवी-प्रमिला नलवाया, कंचन-सूरज चावत, मंजू-नीलम पोरवाल, चन्द्रकला-ऋतु लोढ़ा, पुष्पा-निधि पोरवाल, कमला-अंजना टाया, पवनदेवी-ज्योति गन्ना, केसर-रंजू बोहरा, सम्पत-अंजना हिरण, चन्द्रकला-प्रियंका चित्तौड़ा, सौरभदेवी-लक्ष्मी कोठारी, ललिता-वनीता चोरडिया, शांतादेवी-पिस्ता चोरडिया, पुष्पा-श्वेता लोढ़ा, मंजू-नीलम खोखावत, कौशल्या-शिल्पा लोढ़ा, प्यारीदेवी-श्वेता सिंघवी, शांतादेवी-प्रीति जैन, लक्ष्मीदेवी-आरती चित्तौड़ा, कमलादेवी-सुमन कोठारी शामिल थे।