उदयपुर। करुणा और प्रेम जीवन की महत्त्वपूर्ण पूँजी है। युग और परिस्थितियों के अनुसार प्रेम का स्वरूप बदला है। प्रेम का कोई बना बनाया नियम नहीं है। ये विचार केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर के अधिष्ठाता प्रो. आलोक गुप्त ने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में व्यक्त किए।
नई सदी की हिंदी कहानियों में प्रेम विषय पर बोलते हुए प्रो. गुप्त ने कहा कि शुरुआत में हिंदी कहानियों में प्रेम का स्वरूप अलग था। धीरे-धीरे कहानीकारों ने प्रेम के साथ देह को भी जोड़ा और अब नई सदी की कहानियों में उसका स्वरूप कुछ और बदला है। प्रो. गुप्त ने महिला कथाकारों की कहानियों के उदाहरण देकर नए दौर में बदलते स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध आयामों का जिक्र किया।
मुख्य अतिथि प्रो. सीमा मलिक, अध्यक्ष मानविकी संकाय ने कहा कि कहानियां नित प्रति अपना स्वरूप बदल रही है। प्रेम मानव जीवन की महती आवश्यकता है और हमें प्रेम के एकांगी स्वरूप को न देखते हुए उसके व्यापक स्वरूप पर ध्यान देना चाहिए। विभागाध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने कहा कि हिंदी की आरंभिक कहानियों में प्रेम एक रेखीय हुआ करता था। इन दिनों प्रेम संबंधों की कहानियों में जटिलता के कई आयाम सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि प्रो. केंद्रीय हिंदी निदेशालय दिल्ली की व्याख्यान की योजना में प्रो. आलोक गुप्त ने विश्वविद्यालय में तीन विविध विषयों पर व्याख्यान पर व्याख्यान दिया। नई कविता और मुक्तिबोध विषयक व्याख्यान में प्रो. आलोक गुप्त ने कहा कि हिन्दी की नई कविता की संरचना पर मुक्तिबोध का गहरा प्रभाव है। उन्होंने बताया कि मुक्तिबोध की काव्य संवेदना आम आदमी और उसके संघर्ष के प्रति पूरी ईमानदारी का व्यवहार करती है। इसी कारण मुक्तिबोध सच्चे अर्थों में आधुनिक संवेदना के कवि हैं। व्याख्यानमाला में शोधार्थियों ने अनेक सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासा को शांत किया। कार्यक्रम में संकाय सदस्य, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे। संचालन नीतू परिहार ने किया और डॉ. आशीष सिसोदिया ने धन्यवाद दिया।