राजस्थानी भाषा को मान्यता की जरूरत
उदयपुर। राष्ट्र भाषा का उपयोग गौरवान्वित करता है, किन्तु मातृभाषा का भूल जाना दुखद है। बालक की प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिये। ये विचार राजस्थानी मोट्यार परिषद व डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित अंतर राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के मुख्य अतिथि डॉ ज्योतिपुंज पंड्या ने व्यक्त किये।
डॉ. ज्योतिपुंज ने कहा कि मातृभाषा के महा कवि बावजी चतुर सिंहजी, मावजी महाराज का राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यकारों में समावेश नही होना राजस्थानियों को अखरता है । मोट्यार परिषद के प्रदेशाध्यक्ष शिवदान सिंह जोलावास ने राजस्थानी भाषा की राष्ट्रीय मान्यता की जरूरत बतलाते हुए कहा कि भाषा प्रदेश के विकास, आमजन की समझ, बेहतर शिक्षा, और सांस्कृतिक थाती को संजोने सवारने का सुदृढ़ माध्यम है।
साहित्यकार डॉ अनुश्री राठौड़ ने कहा कि मातृभाषा की महत्ता को समझते हुए वर्ष 2008 में बांग्लादेश के प्रयासों से 21 फ़रवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित हुआ है। डॉ. राठौड़ ने कहा कि मायड़ भाषा वो जो बालक जन्म से बोले। अनुश्री ने मातृभाषा की महत्ता को परिभाषित करते हुए एक रचना प्रस्तुत की। युगधारा के लालदास पर्जन्य ने राजस्थानी भाषा को समृद्ध भाषा बतलाया। संवाद की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार रामदयाल ने कहा कि मातृ भाषा का सम्बन्ध मनोविज्ञान से है। बच्चों का मानसिक विकास मातृभाषा में जल्दी होता है। दयाल ने बेटियो को समर्पित राजस्थानी कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि मातृभाषा में जीवन सार है, लोरी है, संस्कार है, सम्वाद है, प्रीत है, झिड़की है।
कार्यक्रम में भारतसिंह बम्बोरा, राहुल सिंह भाटी, हाजी सरदार मोहम्मद, अनिल मलसरिया, विभा चौबीसा, भीष्मा रानी आमेटा, मीनाक्षी शुक्ला, सीता कुमारी, ऋषिराज यादव, जगदीश भोई, आकाश अग्रवाल, नितेश सिंह ने भी मातृभाषा में विचार व्यक्त किये। कौशल्या चुण्डावत ने राजस्थानी भजन प्रस्तुत किया। संयोजन करते हुए नन्द किशोर शर्मा ने राजस्थानी भाषा के उत्कृष्ट गद्य एवं पद्य पर प्रकाश डाला तथा मेवाड़ी रचनाधर्मी स्व दयाल चन्द्र सोनी के दोहे प्रस्तुत किये।