उदयपुर टेल्स 2017 का दूसरा दिन
उदयपुर। मां माई एंकर फाउंडेशन द्वारा ब्रिक्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज एवं राजस्थान पर्यटन विभाग की सहभागिता से गुलाबबाग एवं अम्बामाता स्थित होटल ट्रिब्यूट में ’उदयपुर टेल्स‘ त्रिदिवसीय अर्न्तराष्ट्रीय कहानी महोत्सव उदयपुर टेल्स 2017 के दूसरे दिन प्रेम, जीवन और अंर्तगता की कहानियों से सरोबार रहा।
कहानीकारों ने 400 से अधिक स्कूली बच्चों को टक-टकी बांधकर देखने और मंत्रमुग्ध होकर सुनने पर विवश कर दिया। सीमा चक्रवर्ती द्वारा ऊर्जावान बातचीत के जरिए गुलाबबाग में उपस्थित बच्चों को जहां कहानी की सरिता में बहा डाला वहीं कठपुतलीयों के जरीए वरूण नायर ने मछुआरें और उसकी आत्मा के संवाद को प्रस्तुत कर उन्हें भावात्मकता से जोड कर सबकों मंर्त्मुग्ध कर डाला।
श्रोता, मधुसुदन द्वारा भावपूर्ण बाउल संगीत की प्रस्तुति तथा राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दुर्गा बाई और प्रकाश व्याम द्वारा गोंड कला की प्रस्तुति आकर्षक रही। सांयकालीन सत्र विख्यात रंगमंचकर्मी जो की मुकानिभय कला में महारत रखते है की उदार व्याख्यात्मक प्रस्तुति ने सभी को अपने रंग में रंग डाला। यह प्रस्तुति वर्षों तक पश्चिम सांस्कृति क्षेत्र से जुडे विलास जानवे की थी।
के.सलील मुखिया द्वारा प्रस्तुति कहानी में जादुई परंपरा का नाटकीय प्रस्तुतिकरण को अजय सिंह के सहयोग से प्रस्तुत किया गया। अजय सिंह थियेटर के लब्ध प्रतिष्ठित कलाकार है। उन्होने यह प्रस्तुति होटल ट्रिब्युट में दी। तेजदार जुनेद व टीम और मैथेस डुरनाड व फखरूद्दीन गफारी की मौजूदगी में अतिम दो दिन संगीत-कहानियों के संतुलन ने सबको मोहित कर दिया। कथाकारों के अलावा पारम्परिक काव्य और कथावाचन प्रतियोगिताओं ने दर्शको को बांधे रखा।
उदयपुर टेल्स की निदेशिका श्रीमती सुष्मिता शेखर ने इस अवसर पर कहा कि हमें आयोजित कार्यक्रम की पूर्ण रूप से प्रतिक्रिया मिल रही है तथा हम सही दिशा में बढते हुए दर्शकों की भावात्मकता, मनन चिंतन का पूर्ण लाभ उठा रहे है। श्रीमती शेखर ने प्रताप से सम्बधित नाट्याभिव्यक्ति की चर्चा करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप न सिर्फ मेवाड अंचल के वरन सम्पूर्ण विश्व में प्रेरणाश्रोत है उनसे संबधित कहानियां, कथाएं और नाट्य सदियों तक प्रेरणा देते रहेगें।
रविवार को उदयपुर टेल्स 2017 को अंतिम दिन है। जिसमें मुख्य रूप से स्वयं प्रकाश, कोरियन कथाकार क्वनू गो, शान्तनु गुहा रे और एमएस धोनी, वाद्ययंत्र संगीतकार और शंशाक शेखर की प्रस्तुति होगी। इसके अतिरिक्त रूसीयन कहानीकार, एवं गजल गायक शंशाक शेखर भी अपनी प्रस्तुति देगें।
अंतर्राष्ट्रीय कहानी महोत्सव का दूसरा दिन गुलाबबाग में बच्चों के शोर-गुल और उनके भरपूर रोमांच के नाम रहा। कहानीकारों ने मंच पर बच्चे बन कर अपनी प्रस्तुतियां दी। जिससे बच्चों को समझने में भी आसानी रही और उन्हें मजा भी आया। आमतौर पर इस जमाने में बच्चे ऐसी कहानियां- किस्से टीवी पर देखते और सुनते हैं लेकिन इस कहानी फेस्टिवल में जब उन्होंने उनके सामने यह सब कहानी- किस्से कहते हुए बड़ों को सुना तो उनके रोमांच का ठिकाना नहीं रहा।
श्रीमती सीमा ने बच्चों को दो कहानियां सुनाई। दोनों ही कहानियां शिक्षा प्रद होने के साथ- साथ बच्चों के लिए मनोरंजन से भरपूर थी। पहली कहानी कंगारू, डोगी, ड्रेगन और चिड़िया को केन्द्र में रख कर रची गई थी जिसमें सन्देश था कि सभी अलग अलग प्रजाति के होने के बावजूद एक दूसरे की कैसे मदद करते थे और मिल-जुल कर रहते थे। दूसरी कहानी मागुड़ी कस्बे के एक स्कूल की थी जिसमें बच्चे पढ़ रहे हैं और अचानक एक टाईगर उसमें घुस जाता है। इस कहानी में सस्पेंस और रोमांच को महसूस कर बच्चे मस्त हो गये।
मध्यप्रदेश के जनजाति बहुल इलाके से आये दम्पत्ति सुभाष सिंग एवं दुर्गाबाई व्याम की कहानी ने सभी को रोमंाचित किया। उन्होंने एक गरीब बढ़ई परिवार की ऐसी मार्मिक कहानी सुनाई कि वहां का महौल काफी मार्मिक हो गया। हालांकि दुर्गादेवी बिल्कुल भी पढ़ी लिखी नहीं है फिर भी अपने नाना-नानी और दादा-दादी से कई कहानियां सुनी जिनमें से उन्हें कई कहानियां जुबानी याद है।
अनपढ़ दुर्गादेवी विदेश जा चुकी है, कई पुरस्कार जीत कर आई-
मध्यप्रदेश के जनजातिबहुल इलाके से अपने पति सुभाष के साथ आई दुर्गाबाई ने बातचीत में बताया कि वह अनपढ़ है। उन्हें उनकी गांव की भाषा के अलावा कोई भाषा समझ में नहीं आती है इसलिए वह कहीं भी आती जाती है तो वह अपने पति को साथ रखती है ताकि बातचीत को समझने और समझाने में आसानी रहे।
पति सुभाष ने बताया कि उनका कारोबार ही पेंटिंग का है। लेकिन वह पारम्परिक या शादी- ब्याह में घरों की दीवालों पर पेंटिंग नहीं बनाते हैं। वह किसी भी कहानी के आधार पर पेटिंग बनाते हैं। उन्हें कोई भी कहानी सुना दीजिये वह कहानी के आधार पर पात्र रच कर आसानी से कुछ ही समय में पेंटिंग तैयार कर देते हैं। लोग उनकी पेटिंग को देखकर कहानी समझ लेते हैं। उनकी इस कला को देश ही नहीं विदेशों में भी कई कद्रदान मिल हैं। वह उनकी पत्नी के साथ विदेशी धरती लन्दन, जर्मनी, दुबई और इटली तक जा चुके है और वहां से कई पुरस्कार जीत कर लाये हैं। सुभाष ने दावा किया कि बाबा साहेब अम्बेडकर पर उन्होंने पेंटिंग की किताब बनाई जो अब तक विश्व की 11 भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।