साइबर क्राइम सिक्योरेटी विषयक पर व्याख्यान
उदयपुर। तकनीकी युग में साइबर क्राइम की दिनों दिन संख्या बढ़ती जा रही है और इनका बेस इंटरनेट है। इसका बहुत बड़ा कारण पहले आम व्यक्ति का काम काज कम्प्यूटर तक सीमित थी, लेकिन आज के समय में कम्प्यूटर का माईक्रो डिवाइस मोबाइल के रूप में सदैव हमारे साथ रहता है और मोबाइल कम्पनी हमें चौबीसों घंटे डेटा प्रोवाइड करती है।
हम पहले कभी कभार इंटरनेट काम में लिया करते थे और आज चौबीसों घंटे इसका उपयोग करते है जिसे मोबाइल पर विभिन्न प्रकार की ऐप्स काम में लेते हैं जिसके द्वारा हमारा बहुत सा व्यक्तिगत डेटा एवं जानकारी ऐप्स के द्वारा निजी हाथों में पहुंच जाती है जिससे साइब्रर क्रिमिनल के द्वारा आम व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है इसलिए आज के तकनीकी युग में हमें सावधानी बरतते, सिक्युरिटी टूल्स काम को काम में लेकर चलेंगे तो नुकसान से बचा जा सकता है।
ये विचार शुक्रवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, एमडीएस विवि, यूजीसी एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में प्रतापनगर स्थित कम्प्यूटर एंड आईटी विभाग के सभागार में आयोजित साईबर क्राईम सिक्योरेटी विषयक पर जयपुर साइब्रर सिक्योरेटी के डीसीपी गौरव श्रीवास्तव ने मुख्य वक्ता के रूप में कही। उन्होंने कहा कि आज पल पल साइबर क्राइम बढ़ रहा है आवश्येकता है सजग रहने की। उन्होंने कहा कि आम व्यक्ति को अपना पासवर्ड सुरक्षित एवं ऐसा हो जो आम व्यक्ति की समझ के बाहर हो। उन्होने कहा कि आम व्यक्ति अपना पासवर्ड अपना नाम, जन्म तिथि या परिवार के सदस्य के नाम पर बना लेता है जिससे साइब्रर क्राइम करने वाला व्यक्ति आसानी से इसे हैंग कर व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए पासवर्ड को तोड मरोड़ कर बनाना चाहिए। प्रारंभ में कोर्स समन्वयक प्रो. प्रदीप पंजाबी ने अतिथियों का स्वागत किया। अध्यक्षता कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने की। रजिस्ट्रार प्रो. सीपी अग्रवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ. धीरज प्रकाश जोशी ने किया जबकि धन्यवाद सहसमन्वयक डॉ. युवराजसिंह राठौड़ ने ज्ञापित किया।
भूकम्प का होगा पूर्वानुमान : दूसरे तकनीकी सत्र में भूवैज्ञानिक डॉ. गोविंद सिंह भारद्वाज ने कहा कि भूकम्प एवं भूस्खलन से होने वाले जनहानि एवं अन्य नुकसान को कम करने के लिए इसका 90 घंटे पहले चेतावनी जारी कर किया जा सकेगा। उन्होने कहा कि स्लॉप एंड अर्थ क्वेक फेलियर अर्ली वार्निंग प्रणाली को विकसित किया गया है जिसका कई वर्षो तक अरावली की पहाड़ियो का अध्ययन किया हैै। यह प्रणाली भूकंप व भूस्खलन के दायरे, आवृति, क्षेत्रीय विस्तार के साथ ही मूल स्थान की अक्षांष एवं देशांतर की जानकारी उपलब्ध कराने में सहायक है।