तीन दिवसीय अध्यापक अभिनवन शिविर “सिंहनाद 2017”
उदयपुर। वक्त बदला, षिक्षा भी बदली और षिक्षण भी बदला। परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है। षिक्षक ने राश्ट्र की उन्नति में हमेषा सहयोग दिया है। उक्त विचार आज षिक्षाविद् डॉ. प्रदीप कुमावत ने आलोक संस्थान में आयोजित तीन दिवसीय अध्यापक अभिनवन षिविर सिंहनाद 2017 के दूसरे दिन सभी अध्यापक-अध्यापिकाओं के बीच कहे।
इस अवसर पर डॉ. प्रदीप कुमावत ने षिक्षक के दो प्रकार बताते हुये कहा कि एक षिक्षक वो है जिसमें जन्म से ही नैसर्गिक गुण होते है जबकि दूसरा षिक्षक वह है जो परिस्थितिवष षिक्षक बन जाते है। परिस्थितिवष बने षिक्षक अपने संस्थान, कक्षा, विद्यालय, विर्द्यािर्थयों के साथ न्याय नहीं कर पाते। उनके लिये षिक्षक मात्र पद है गुण नहीं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती है कि अध्यापक दिखावे का आवरण ओढ़ लेते है। अध्यापकों को स्वयं को आवरण से बचना होगा और बच्चों के आवरण को हटाना होगा।
विष्व योग दिवस की पूर्व संध्या पर गोवर्धन सागर पर हुआ ध्यान, लाफ्टर व योग
इस अवसर पर विष्व योग दिवस की पूर्व संध्या पर आज यहाँ गोवर्धन सागर की पाल पर आलोक संस्थान द्वारा विषेश ध्यान सभा, हास्य योग, ध्यान योग व लाफ्टर योग का आयोजन डॉ. प्रदीप कुमावत के नेतृत्व में किया गया।
इस अवसर पर बोलते हुये डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहा कि अश्टांग योग जीवन जीने की कला है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, समाधि के बीच में आसन आता है। अधिकांष लोग आसनों को ही योग समझ बैठे है। अन्तर्राश्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर हमको अश्टांग योग जो पतंजलि द्वारा प्रतिपादित है उन अश्टांग योग के सभी तत्वों पर ध्यान देना चाहिये।