उदयपुर। वासुपूज्य स्थित दादावाड़ी में साध्वी नीलांजना श्रीजी ने कहा कि विदेश घूमने, बाहर जाने, खरीददारी करने का काम हम बड़े शौक से करते हैं लेकिन कभी एक दिन भी सोचा कि साधु जीवन व्यतीत करने का पुरुषार्थ करूं। पुरुषार्थ तो करते हैं लेकिन सही दिशा में नही होने से उसका लाभ नही मिलता।
उन्होंने कहा कि तीर्थंकर ने सबसे पहले विहार करने का पुरुषार्थ किया। आप विहार भले ही न करो लेकिन उनके सान्निध्य में तो रह सकते हैं, जिनवाणी तो सुन सकते हैं। भूखे नही रह सकते लेकिन उपवास तो कर सकते हैं। साधु के जितना नही चलें लेकिन उनके साथ कुछ समय तो चल सकते हैं। चलकर देखो तो पता चलेगा कि महावीर कैसे बनते हैं। हम महावीर नही वीर बनने की तो कोशिश कर ही सकते हैं। परमात्मा की जीवन शैली अपनाने में हमें परेशानी होती है लेकिन एक आदमी का पहना हुआ सूट खरीदने के लिए करोड़ों की बोलियां लग जाती है। घर में बड़े भाई का कपड़ा पहनने में शर्म आती है। हम किस ओर जा रहे हैं, सोचने की जरूरत है।
तपस्या करने के लिए हमें कषायों से मुक्त होना होगा तभी सम्यकत्व और मोक्ष की पालना कर सकेंगे। गलती है तो सुनने की तैयारी रखो और गलती नही होने के बावजूद सुनाया जा रहा है तो इसका मतलब पूर्व जन्म का बदला चुकाया जा रहा है। क्रोध करने वाला खुद को सजा देता है।
ट्रस्ट के सचिव प्रतापसिंह चेलावत ने बताया कि रविवार को साध्वी श्री की पावन निश्रा में सामूहिक सामायिक का कार्यक्रम होगा जिसमें करीब 200 से अधिक श्रावक श्राविकाओं ने अब तक अपने नाम लिखवाए हैं।