तेरापंथ समाज ने मनाया वाणी संयम दिवस
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण महापर्व के तहत मंगलवार को वाणी संयम दिवस मनाया गया।
शासन श्री मुनि सुखलाल ने कहा कि आदमी को बोलना तो पड़ता है। आदमी की ही यह विशेषता है कि सजे पास भाषा है। वोकल सिस्टम से भाषा का उदभव होता है। इसका सबसे पहले प्रभाव हमारे खुद पर पड़ता है। उपवास करो या नही, लेकिन दिन में 15 मिनट का मौन अवश्य रखो। साधना की दृष्टि से आगे बढ़ना है तो मौन रखना सीखो। आपके स्वभाव में अंतर स्वतः दिखाई देगा। प्रतिदिन अवश्य 15 मिनट का मौन करें और एक वर्ष बाद खुद में बदलाव देखें। उन्होंने भगवान महावीर की अध्यात्म साधना का विवेचन भी किया। उन्होंने 18 वें भव की व्याख्या की।
मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि भाषा पर विवेक का आगमों में भी संकेत दिया गया है। जब दीक्षित होता है तो सबसे पहले आचार विचार की दृष्टि से सूत्र बना हुआ है। चार प्रकार होते हैं सत्य, असत्य, व्यवहार और सत। भाषा से संबंधों का विकास होता है, विचारों का आदान प्रदान होता है। यह ऐसी शक्ति है जिससे हम संबंधों को विकसित कर सकते हैं तो तोड़ भी सकते हैं। संयमित बोलने वाला व्यक्ति जीवन में सफल होता है वहीं अत्यधिक बोलने वाला व्यक्ति नाश को प्राप्त होता है। भाषा पर नियंत्रण जरूरी है। हमारा वोकल कोड हमेशा स्पंदित रहता है जो वातावरण को प्रभावित करता है। जो मौन ने कहा वो रह गया, वाणी ने कहा वो बह गया। अधिक बोल के वाले कि बात स्वीकार नही होती। संयम से बोलने वाला, वाणी का व्यवहार, भाषा का विवेक होना चाहिए। परीक्षित भाषा होनी चाहिए। कब और क्या बोलना चाहिए, इस पर संयम जरूरी है। सोचकर ही बोलें, बोलकर नही सोचें। मौन करें लेकिन उससे पहले बोलो तो ऐसा कि तौलकर बोलो। भाषा समृद्ध होनी चाहिए। इसका संयम किया तो विवाद ही खत्म हो जाये। मौन की आराधना करें लेकिन कभी कभी भाषा का भी संयम करें। तोप और तलवार का घाव भर जाता है लेकिन वाणी का घाव नही भरता। बरसों बरस के संबंध खत्म हो जाते हैं। वाणी के सम्यक प्रयोग से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
मुनि भव्य कुमार ने कहा कि सबसे पहले ज्ञान और फिर तप की आराधना की जाती है। दीक्षा चाहे कैसी भी हो लेकिन दीक्षा लेने वाला योग्य होना चाहिए। तपस्या मासखमण और वर्षीतप जैसी भी होती है।
बाल मुनि जयेश कुमार ने कहा कि साधना की सिद्धि निर्विचार होने में ही है। कुएं से पानी निकाल दो तो भी कोई असर नही पड़ता। यही असर है। मौन रहने में जो संकल्प और विकल्प का प्रभाव वहीं रहता है। धीरे धीरे मौन व्यक्ति निर्विचार की ओर बढ़ जाता है। कायोत्सर्ग और ध्यान के लिए मौन आवश्यक है। मौनं सर्वार्थ साधनम। अधिकतम विवाद बोलने के कारण ही होती है। अपने परायों को साधने वाला ही साधु होता है।