नभ में गूंजी प्रताप के शौर्य की गाथाएं
उदयपुर। महाराणा प्रताप स्मारक समिति द्वारा मोती मगरी स्थित प्रताप चौक पर आयोजित कालजयी मेवाड़ नामक कवि सम्मेलन में महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथाएं नभ में गूंज उठी।
मेवाड़ के ख्यातनाम पं. नरेन्द्र मिश्र ने कवि सम्मेलन में अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि ये जौहर की भूमि प्रतापी आन,बान की है, परम्परा,पद्मिनि पन्ना के रक्तदान की है,आजादी के लिये लड़ी है ये तुफानों से, ये धरती राणा प्रताप के स्वभिमान की है…, वर्तमान में फिल्म पद्मावती पर चल रहे विवाद को देखते हुए अपनी रचना में कहा पदमिनि का कालजयी जौहर भारत माता की पंूजी है,ये वो धरती है जहंा कभी चेतक की टापें गंूजी है, जौहर की ज्योति न जलती तो सम्मान खाक में मिल जाता,रजपूती के पावन सत का अभिमान राख में मिल जाता…, नारी तन का अपमान बोध माथे पर अंकित हो जाता, गीता गायक का वह पावन संदेश कलंकित हो जाता.., पद्मिनि के अग्नि आचमन ने भीषण का विश्वास दिया, आने वाली संतानों को महिमा मंडित इतिहास दिया… जैसी रचनाओं से सभी की बाजुओं में जोश भर दिया।
हास्य कवि संजय झाला ने अपनी रचना में कहा कि विकृति से हास्य उत्पन्न होता है। अपनी छोटी-छोटी रचनाओं से सभी को हास्य से सराबोर कर दिया। जिस भ्रष्टाचार को हम समाप्त करना चाहते है। इसकी शुरूआत सागर मंथन से हुआ। पन्द्रह वां रत्न भ्रष्टाचार निकला। रचना कह कर सभी को हसंा-हसंा के लोटपोट कर दिया। अपनी अन्य रचना -मैं प्रलयकंर शिव के डमरू का रौद्र राग, मैं वडवानल जो है सागर में छुपी आग, मैं विरंचि विरचित सृष्टि का पूर्ण भाग, मैं धरा धार धरणी धारक हूं शेषनाग… जैसी सारगर्भित रचना पेश की।
राष्ट्र कवि बालकवि बैरागी ने अपनी रचना पेश करते हुए कहा कि देश में एक मात्र ऐसा पशु चेतक है जिसके स्मारक बने है, उन पर कविताएं सुनायी जाता है। अपनी अन्य रचना में कहा-वो कहती है मैं गीतों में चांद नहीं ला पाता हूं और सितारों की इसी दुनिया के पार ले जाता हूं, क्या समझाउ उस पगली को, जिसको यह भी पता नहीं,मै जिस धरती पर भार बना हूं ,गीत उसी के गाता हूं….., आज भले ही पत्थर बन कर तूं मुझको ठुकरायेगी, मुझे छोड़ कर किसी ओर के सपनों में आती है, मैं पनघट आया हूं, तू मरघट तक आयेगी…,। जिंदगी भर मैं लड़ूंगा कधजली अंधियार से, रोशनी नहीं लूगां आसामन से..। इस अवसर शायर अजंुम रहबर ने अपनी रचनायें पेश कर सभी को उसी में रमा दिया।
टीवी एंकर एवं ख्यातनाम कवि शैलेष लोढ़ा ने अपनी रचना भाग्यहीन है वे लोग फूलों को अपनी सुन्दरता पर गुमान हो गया और उसने माली को कहा कहंा तू जड़ों पर पानी डालता है हम पर पानी डाल हम और सुन्दर हो जायेंगे। हम अपनी जड़ों और अतीत को भूल कर फूलों पर पानी डाल रहे हो, जड़ों और अतीत को याद रखना हमारा गौरव है।
शैलेष ने संजय भ्ंासाली का नाम लिये बिना पद्मावती फिल्म पर अपने कटाक्ष करते हुए कहा पन्ना,गोरा बादल की कुर्बानी है मेवाड़, मृत्यु को ललकाराता है मेवाड़़,चेतक की टापों से गुजंाता है मेवाड़….,। अपनी अन्य रचना- जिस दिन तू शहीद हुआ,न जानें किस तरह तेरी मां सोयी होगी,मैं तो जानता हूं ,वो गोली भी तेरे सीने में उतरने से पहले रोयी होगी…, सच है कि इरादें हमारें विध्वसंक नहीं है और अकारण युद्ध के हम भी प्रशंसक नहीं है, अहिंसंा के पुजारी है,हम अहिसंक है लेकिन नपुंसक नहीं है…। दर्द पी कर दिखायें इस वतन के लिये हम मर कर दिखायेंगे, इस वतन के लिये आप मर कर दिखायें इस वतन के लिये।
इस अवसर शैलष लोढा ने हास्य की अनेक रचनायें पेश कर सभी को हसां-हसंा कर लोटपोट कर दिया। उन्होंने कहा कि भाषा समाप्त हो जायेगी तो ंसस्कृति समाप्त हो जायेगी।
इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष लक्ष्यराजसिंह मेवाड़,निवृत्ति कुमारी मेवाड़ , सचिव युद्धवीरसिंह शक्तावत,कमाण्डर ब्रिगेडियर एस.एस.पटिल सहित अनेक अतिथि एवं गणमान्य नागरिक मौजूद थे।