जीतो उदयपुर चैप्टर की मोटीवेशनल सेमिनार
उदयपुर। इक्कीसवीं सदी के युवाओं के लिए बुद्ध की बातें सटीक हैं जिन्हें अपने जीवन में उतारने की जरूरत है। यह तब अधिक सोचने की जरूरत है जब वर्ष 2015 में शहीद हुए सैनिकों से दुगुने पैरा मिलिट्री फोर्स के जवानों ने तनाव के कारण आत्महत्या कर ली। यह आधिकारिक आंकड़ा केन्द्र सरकार की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है।
ये विचार उज्जैन के मोटीवेशनल स्पीकर डॉ. विक्रांतसिंह तोमर ने व्यक्त किए। वे यहां जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (जीतो) के तत्वावधान में जीतो लेडिज विंग एवं यूथ विंग के सहयोग से आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध से किसी ने पूछा कि बुद्ध कौन। बुद्ध यानी तथागत जो तथ्यों से अवगत हो, उस क्षेत्र में जिसमें आप कार्यरत हैं या आपको कार्य करना है, वह आपके लिए बुद्ध है, जिसने अपने बाल सफेद किए हैं। बुद्ध कोई भी हो सकता है। कभी कभी तो आपकी 4 वर्ष की बेटी भी जो आपको अनजाने ही जीवन का बड़ा मैसेज दे देती है। हर व्यक्ति के जीवन में ऐसा कोई भी एक बुद्ध होना चाहिए। अच्छी-बुरी, हर प्रकार की। अगर ऐसा कोई व्यक्ति आपके जीवन में नहीं है तो वे बातें अंदर ही रह जाती हैं और फिर वे सपनों के रूप में सामने आती है। हर व्यक्ति के जीवन में एक काश जरूर होता है। घर में आते जाते ठोकर लगना भी मन की बात किसी से शेयर नहीं करना साबित करता है।
तोमर ने कई उदाहरणों से समझाया कि बुद्ध कुछ करेगा नहीं लेकिन उसके साथ बांटने से आपको कुछ न कुछ बल अवश्य मिलेगा और आप काम करने की ओर अग्रसर हो पाएंगे। काम तो आपको ही करना पड़ेगा। महाभारत में अर्जुन की जगह श्रीकृष्ण ने युद्ध नहीं लड़ा। युद्ध तो अर्जुन को ही लड़ना पड़ा लेकिन उसे समझाने के लिए 18 अध्याय की एक श्रीमद्भगवदगीता की रचना हो गई। यह अर्थ है बुद्धं शरणं गच्छामि का। अगर बुद्ध नहीं मिले तो उसके मैसेज फॉलो करें। मैसेज श्रीमद्भगवदगीता, कुरान, उपनिषद, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ साहिब के रूप् में उपलब्ध हैं अर्थात प्रतिमाह एक बुक पढ़ने की आदत डालें। यह है धम्मं शरणं गच्छामि। अगर बुक भी नहीं पढ़ सकते तो राइट माइंडेड लोगों के साथ रहें। ऐसा दोस्त जिससे प्रतिदिन आप बात करें। अगर नहीं करते हैं तो बनाएं लेकिन दोस्त सोच-समझकर बनाएं। इसका अर्थ है कि मृदुभाषी बनंे। यह अर्थ है संघं शरणं गच्छामि का। इसके बाद अंतिम संदेश था बुद्ध का अप्प दीपो भव। अगर उपरोक्त तीनों काम नहीं कर सकते हैं तो कोशिश करें कि खुद को जानें। खुद को पहचानें। अहिंसा हिसी को मन से भी तकलीफ देने की नहीं है। पूरी महाभारत में सिर्फ एक जगह यह आया है कि दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मुझे पता है, कल सुबह से होने वाले युद्ध में मैं हार जाउंगा। अपने प्रिय सखा कर्ण को भी खो दूंगा। कुरूवंश का नाश हो जाएगा। यहां तक कि मैं भी मारा जाउंगा लेकिन हे कृष्ण! सच को स्वीकार करने की शक्ति मुझमें नहीं है। आज भी यही हो रहा है। हर व्यक्ति के जीवन में अंदर एक दुर्योधन है जो रो रहा है क्योंकि जमाने से लड़ने की शक्ति उसमें नहीं है। बच्चे घर के सीसीटीवी होते हैं। बच्चे जैसा देखेंगे, वैसा करेंगे। उन्हें अगर आप कहेंगे तो वो वैसा नहीं करेंगे लेकिन जैसा देखेंगे, वैसा करेंगे।
उन्होंने कहा कि अपने उद्देश्यों में स्पष्टता रखें। सोच स्पष्ट होनी चाहिए। मैं उस परमात्मा की सेवा करता हूं जिसे लोग मनुष्य कहते हैं। खुशी स्टेज ऑफ द माइंड है। हर समय खुश रहना सीखें। बदलती परिस्थितियों में भी शांत रहते हैं, वे पार्थ कहलाते हैं। क्षीरसागर पर विराजित उपर शेषनाग का फन। कभी भी कुछ भी हो सकता है लेकिन ऐसे में भी जो व्यक्ति शांत बैठा रहे, वही नर नारायण हो सकता है और लक्ष्मी उसी के पांव दबाती है। यदि आप श्रेष्ठ हैं तो आपको अपनी श्रेष्ठता हमेशा सिद्ध करनी होगी। अच्छे कामों का कभी तत्काल पुरस्कार नहीं मिलेगा। एबिलिटी इज टू बाउंस बेक। नॉट मीटिंग द डेडलाइन बट बीटिंग द डेडलाइन।
महाभारत के अंतिम श्लोक का उद्धरण करते हुए तोमर ने कहा कि यत्र योगेश्वर यानी मन वचन, कर्म से एक हों, तभी सफलता मिलेगी। कृष्ण यानी नजरिया जिसे सम्यक दर्शन भी कहा जा सकता है। पार्थ यानी धैर्य और धनुर्धर यानी अपने विचारों को एग्जीक्यूट करें। उन्हें अपने व्यवहार में लाएं। जीवन इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है।
इससे पूर्व आरंभ में जीतो उदयपुर चैप्टर के महासचिव राजकुमार फत्तावत ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन विजयलक्ष्मी गलुण्डिया ने किया। सेमिनार आयोजन में कपिल इंटोदिया, अभिषेक संचेती का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। तोमर का प्रतीक नाहर, चिराग कोठारी, रितु मारू ने पगड़ी पहना उपरणा ओढ़ा स्मृति चिन्ह भेंट कर अभिनंदन किया।