दूसरों से अपेक्षा करते हैं स्वयं से नहीं, यही दुखों का मूल कारण : कटारिया
उदयपुर। श्रमणसंघीय आचार्य डा. शिवमुनि ने कहा कि आचार्य अरिहन्त और सिद्धों के बीच में सेतु का कार्य करते हैं। जिसका आचरण और ज्ञान एक होता है, जो आकाश की भांति विराट हृदय के निर्मल और स्वच्छ होते हैं, जो श्रद्धावान, ज्ञानवान और आस्थावान वो ही आचार्य कहलाते हैं।
वे आज शिवाचार्य समवसरण में श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आचार्य आठ सम्पदाओं के धनी होते हैं, 36 गुणों से परिपूर्ण होते हैं, उनके पास पांच महाव्रत होते हैं। आचार्य सभी के साथ समान व्यवहार करते हैं, आचार्य कभी भी शंकवान नहीं होते हैं। आचार्यों की चित्त एक, वाणी एक और तीर्थंकर के प्रति अटूट श्रद्धा होती है। वह कागज के फूलों की तरह नहीं बल्कि गुलाब के फुलों की तरह हमेशा ज्ञान की खुशबू महकाते रहते हैं। आचार्यों के लिए सत्य ही सब कुछ होते है। वह प्रज्ञा बुद्धि समपन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सुधर्म स्चामी और जम्बू स्वामी नहीं होते तो भगवान महावीर स्वामी कीवाणी का कभी भी संकलन नहीं हो पाता और आज हम उसे सुन नहीं पाते।
आचार्य सम्राट ने कई महान आचार्यों के बारे में बताते हुए खासकर आचार्यश्री आत्मानन्द जी की महानता के बारे में श्रावकों को स्मरण कराया। उन्होंने कहा कि आचार्यों के समक्ष क्लेश का कोई स्थान नहीं होता है। आचार्य जैसे भीतर होते हैं उनका बाहरी आचरण भी वैसा ही होता है। सभी को आचार्यों के जीवन से प्रेरणा और सीख लेना चाहिये।
युवाचार्य महेन्द्र ऋषि महाराज ने धर्मसभा में सामाजिक समभाव के बारे में श्रावकों को बताते हुए कहा कि इसे बचाने के लिए हमें हमारा कर्तव्य बोध होना चाहियेचाहे वो समाज के प्रति हो, संघ के प्रति हो या परिवार के प्रति हो। कभी कभी परिस्थितियों के वशीभूत कुछ कटुताएंसमाज में आ जाती है, भूलवश कोई गलतियां भी हो जाती है लेकिन उनकी हमेशां के लिए गांठ नहीं बान्धना चाहिये, उन्हें समय रहते ही सुधार लेना चाहिये और सामाजिक समरसता की ओर बढ़ना चाहिये। यदि सभी अपने जीवन में कर्तव्य बोध का पालन करते हुए चलेंगे तो जीवन में कभी भी कटुता और संकट नहंी आएंगी और जीवन मंगलमयी होगा।
मुख्य अतिथि प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यक्ति स्वयं अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करने लग जाएगा तो जीवन में कटुता और क्लेश का कोई स्थान ही नहीं बचेगा। हम दूसरों से तो अपेक्षाएं खूब करते हैं लेकिन स्वयं कुछ नहीं करते हैं और यही जीवन में दुखों का मूल कारण है। हम जो दूसरों से चाहते हैं पहले हम स्वयं को पूरी तत्परता और ईमानदारी से करके दिखाना चाहिये। उसी की वाणी का प्रभाव होता है जिसका आचरण और चरित्र शुद्ध हो।
श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के संरक्षक कन्हैयालाल मेहता ने बताया कि ने धर्मसभा में रीना तातेड़ के अठाई तप करने पर सम्मान किया गया। उन्होंने बताया कि आगामी 31 अगस्त को महाप्रज्ञ विहार में बेसिक ध्यान शिविर और 1 सितम्बर से 4 सितम्बर तक चार दिवसीय गम्भीर ध्यान शिविर का आयोजन होगा। भोजन व्यवस्था समिति के अध्यक्ष बसन्तीलाल कोठिफोड़ा ने बताया कि आचार्य की प्रेरणा से आज समिति सदस्यों ने आशाधाम में 350 लोगों को भोजन कराया।