उदयपुर। लोक कला और शिल्प का कुंभ ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ शनैः शनैः समापन की ओर अग्रसरित हो रहा है किन्तु साथ ही कला और शिल्प का उन्माद अपने चरम पर है। उत्सव में शनिवार शाम लोक वाद्य यंत्रों की ‘झंकार’ में भारत के चुनीन्दा राज्योें के दो दर्जन वाद्य यंत्रों की अनुगूंज ने शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी मंच की दर्शक दीर्घा में बैठे कला रसिकों को एक सुर एक ताल के जरिये एक भारत श्रेष्ठ भारत का एहसास करवा दिया। वहीं लोगांे ने अन्य कला प्रस्तुतियों का आनन्द उठाया। जबकि शिल्प बाजार में लोगों का हुजूम सा नजर आया व शिल्प उत्पादों की खरीदी का दौर जमक कर चला।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ के नवें दिन एक तरफ जहां हाट बाजार दिन भर लोगों की आवाजाही व चहलकदमी से गुलज़्ाार रहा वहीं दूसरी तरफ रंगमंचीय कार्यक्रम में दर्शकोें की मौजूदगी उत्सव के प्रति लोगों के स्नेह का परिचायक बन गई। दर्शकों से खचाखच भरी दर्शक दीर्घा में आखिरी प्रस्तुति तक जमे रहे। कार्यक्रम की शुरूआत महाराष्ट्र के धनगरी गजा से हुई। महाराष्ट्र के चरवाहा समुदाय के कलाकारों ने त्यौहारों पर किया जाने वाला नृत्य धनगरी गजा प्रस्तुत कर अपनी संस्कृति से दर्शकों को रूबरू करवाया। इसके बाद राजस्थान के बाड़मेर के कलाकारों ने आंगी गैर पेश किया। लाल रंग का घेरदार बागा अर्थात आंगी व सिर पर साफा धारण किये कलाकारों ने ढोल की लय पर हाथों में डंडे ले कर मनोरम नृत्य से दर्शकों को मोहित सा कर दिया।
कार्यक्रम में मराठी लावणी नृत्यांगना रेशमा परितकर व उनकी सखियों ने लावणी में अपनी अदाओं और ठुमकों से दर्शकों को रिझाया। राजस्थान का प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य जहां कार्यक्रम की सुंदर प्रस्तुति रही वहीं गुजरात की वसावा जन जाति का होली नृत्य दर्शकों को खूब पसंद आया। इसके अलावा कर्नाटक का पूजा कुनीथा, आॅडीशा का संबलपुरी, केरल का कावड़ी कड़गम, पश्चिम बंगाल का पुरूलिया छाऊ तथा असम के बिहू नृत्य की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को लोक रसरंग से सराबोर सा कर दिया।
उत्सव के नवें दिन का प्रमुख आकर्षण फोक सिम्फनी ‘‘झंकार’’ रहा जिसमें कला रसिको को विभिन्न राज्यों के वाद्य यंत्रों एक साथ देखने, सुनने का अवसर मिला। झंकार की शुरूआत सुमधुर ढंग से हुई जिसमें कमायचा, सिन्धी सारंगी, मोरचंग, चैतारा, चिमटा, ढोल, थाली, मटका, पुंग ढोल चोलम, ढफ, नगाड़ा, बांसुरी, तुतारी, नाल, ढोलकी, मुगरवान, ताशा, निसान, नादस्वरम्, तविल, गिड़दा, पम्बई, मुरली, खड़ताल आदि वाद्य एक-एक कर जुड़ते रहे और लयकारी को गति मिलती गई। प्रस्तुति के चरम पर पहुंच कर आंगी गैर, लावणी, कालबेलिया, बिहू नर्तकियों व नर्तकों ने लयकारी पर थिरकन से प्रस्तुति के साथ-साथ लोक संस्कृति अनूठी मिसाल पेश की।
इससे पूर्व दोपहर से ले कर शाम तक हाट बाजार में लोगांे के हुजूम नजर आये किसी ने खरीददारी की तो किसी ने खान-पान का आनन्द उठाया। भीड़ में कोई सेल्फी ले रहा था तो कईयों ने सेल्फी स्टिक हाथ में ले कर खुद की और मेले को सोशल मीडिया पर लाइव किया। शिल्पग्राम में लगे विभिन्न शिल्प क्षेत्रों में लोगों ने खूब खरीददारी की।