राम के आदर्शों को जीवन में उतारने के आह्वान के साथ विश्वास स्वरुपम विश्वार्पण महोत्सव सम्पन्न
कथा विराम में भर आईं आंखें, मानो भरत का राम से हुआ बिछोह
नाथद्वारा।‘जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन होई। करुणा सागर कीजिये सोई।।’ श्रीराम के अयोध्या लौटा लाने के लिए भ्राता भरत जब चित्रकूट जाते हैं, तो वे अपनी भावना थोपते नहीं, बल्कि प्रभु श्रीराम से निवेदन करते हैं कि जिस तरह से प्रभु प्रसन्न हों उस प्रकार से करुणा बरसाएं। भ्राता भरत ने करुणामयी भाव में जीवन का आधार मांगा। इसके बाद ‘प्रभु करि कृपा पांवरी दीन्हीं’ में तुलसीदासजी कहते हैं प्रभु ने भावों को समझा और अपनी पादुकाएं प्रदान की।
शीतल संत मुरारी बापू ने रविवार को श्रीराम और भ्राता भरत के बिछोह का ऐसा भावूपर्ण वर्णन करते हुए कहा कि भ्राता भरत ने भगवान राम की इस कृपा से संतोष की अनुभूति की, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि जहां पादुका होगी वहां पद (चरण) को कभी न कभी आना ही पड़ेगा। यही विश्वास का अप्रतिम स्वरूप है। उनके इस प्रसंग के साथ जब कथा विराम की घोषणा हुई तो श्रोताओं की आंखें भी इसी भाव से भर आईं मानो भरत से भगवान श्रीराम का बिछोह हो रहा हो।
नाथद्वारा में स्थापित विश्व के सबसे ऊंची शिव प्रतिमा के विश्वार्पण के साथ शुरू हुई संत मुरारी बापू की रामकथा ने रविवार को 9वें दिन विराम लिया। कथा विराम की वेला बड़ी ही भावविह्वल हो उठी। बापू ने कहा कि जिस तरह से भरत को भगवान राम की पादुकाओं का आधार मिला, वैसे ही हमारे पास विश्वास स्वरूपम का आधार है।
कथा को जीवन में उतारने का आह्वान करते हुए बापू ने व्यासपीठ से जनमानस, समाज, देश और पृथ्वी के कल्याण की कामना की तथा सबको सन्मति दे भगवान कहकर प्रभु से प्रार्थना की। आयोजन की शालीनता, उमड़े जनज्वार और कथा में रस वर्षा के अनंत अपूर्व प्रवाह से उत्साहित मुरारी बापू ने मानस की इस कथा को विश्वास स्वरूपम को समर्पित किया। उन्होंने कहा कि प्रभु स्वयं विश्वास हैं और महादेव का विश्व में वास है। कथा को विराम देते हुए ‘जय सिया राम’ के उच्चारण के बाद बापू ने कहा कि धर्मक्षेत्र के बाद अब कुरूक्षेत्र में मिलेंगे। बापू की अगली कथा कुरूक्षेत्र में 19 नवम्बर से शुरू हो रही है। बापू ने आयोजन के अकर्ता परिवार के प्रति प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इस कथा को अनूठा बताया।
विश्वास स्वरूपम के पांच मुख
बापू ने विश्वास स्वरूपम शिव के पंच मुख बताए। पहला मुख सन्मुख बताया जो किसी के विरुद्ध नहीं जाता, बल्कि सबका कल्याण करता है। दूसरा गुरु मुख है। विद्या गुरु मुख से ही मिलती है। तीसरा वेद मुख है, महादेव की वाणी वेद मुख है। चौथे और पांचवें दो गौ मुख हैं जिनमें एक से गंगा निकली और दूसरा गौ मुख भोलेनाथ के गौ माता की तरह भोले होने के अर्थ से है।
राम ने दिया अंतिम व्यक्ति को विशिष्ट मान
बापू ने कहा कि जब अंतिम व्यक्ति को विशेष मान दिया जाता है, उसे विमान कहते हैं। प्रभु श्रीराम ने केवट से कहा कि मैं कुछ देना चाहता हूं, काफी कहने के बाद केवट ने विनती की कि मैंने आपको नाव में बिठाया था, आप मुझे विमान में बिठाकर ले चलियेे। प्रभु श्रीराम ने केवट को विमान में बिठाकर विशिष्ट सम्मान दिया। इसी तरह, बापू ने हनुमान जी द्वारा लंका दहन के प्रसंग में कहा कि समाज भजन करने वाले की पूंछ ही जलाता है। सामना नहीं कर सकते, इसलिए पीछे से ही निंदा करते हैं।
राम के आठ वास
बापू ने मानस के संदर्भ में राम के आठ वास बताए। उन्होंने बताया कि बालकाण्ड में महत्व का वास होता है। अयोध्या में अवधवास तो सर्व विदित है। जनकपुर में सदनवास, अयोध्या काण्ड में भवन वास, अरण्यकाण्ड में वनवास, किष्किन्धा काण्ड में गिरि वास, सुन्दर काण्ड में सागर तट पर महत्व का वास, लंका काण्ड में सुबेर वास, लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर अयोध्यावास और सभी लीलाओं की पूर्णाहुति के बाद सरयू वास राम के आठ वास हैं।
लौटे बापू, श्रद्धालु
मुरारी बापू रविवार को कथा के विराम के बाद कुछ देर विश्राम के पश्चात महुआ के लिए रवाना हो गए। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के अन्य जिलों से आये श्रोतागणों के लौटने का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया।
एक झलक और आशीष मिल जाए
रामकथा के आखरी दिन हर कोई बापू की एक झलक पाने और उनसे आशीष लेने को आतुर था। पाण्डाल में जनसमुदाय का एक रैला सा चल रहा था। पाण्डाल से सड़कों तक, सड़क से लेकर दिल तक और दिल से लेकर नैत्रों तक सब कुछ आस्था से ओतप्रोत था। हर कोई सजल नैत्रों से अश्रु धरा बहाते हुए बापू के प्रति अपने आस्था के भाव को प्रकट कर रहा था। हर दिल की यही ख्वाहिश थी कि बापू श्रीजी की नगरी को छोड़कर ना जाएं, विगत नौ दिनों की तरह बापू मेरी आंखों से ओझल ना हों। असंख्य, अदभुत जनसैलाब भावुक हो उठा, जैसे अपना कोई बिछड़ रहा हो। हर कोई करुणामय स्थिति में था। हरेक चुप था, लेकिन आंखों के अश्रु सबकुछ कह रहे थे, अश्रुओं की स्याही यही लिख रही थी…… बापू मत जाओ। बापू ने सभी आशीष प्रदान किया और भावपूर्ण वातावरण में विदा मांगी।
रविवार को मानस विश्वास स्वरूपम के विराम के दौरान महामण्डलेश्वर शरणानंद महाराज, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी, संस्थान के ट्रस्टी मदन पालीवाल, पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिन्धिया, केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत, विप्र कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष महेश शर्मा, राजसमंद विधायक दीप्ति किरण माहेश्वरी, मंत्रराज पालीवाल, रवीन्द्र जोशी, रूपेश व्यास, विकास पुरोहित, विष्णु दत्त, प्रकाश पुरोहित, प्रशासनिक अधिकारियों सहित बोहरा समुदाय के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।